Saturday, November 29, 2008

अहिंसा परमो धर्म है


गाँधी जी के पदचिन्हों
पर चल प्यारे,
दूसरा गाल भी
पाक के आगे कर प्यारे।
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अहिंसा परमो धर्म है
रटना तू प्यारे,
एक तमाचा और
जरदारी जब मारे।
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ये बटेर हाथ में तेरे
फ़िर नहीं आनी है,
लगे हाथ तू
देश का सौदा कर प्यारे।

3 comments:

seema gupta said...

गाँधी जी के पदचिन्हों
पर चल प्यारे,
दूसरा गाल भी
पाक के आगे कर प्यारे।
" यही तो कर रहें हैं..."

परमजीत सिहँ बाली said...

सही चोट मारी है।यही सब कुछ तो हो रहा है तभी तो यह हाल है।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

कहते हैं न, अहिंसा या क्षमा भी ताकतवरों को ही शोभा देती है।