Wednesday, December 29, 2010

अब तो हद हो गई बैंसला जी


श्रीगंगानगर--सुना भी है और पढ़ा भी है कि एक मछली पूरे तालाब को गन्दा कर देती है। पढाई और जिंदगी के अब तक के अनुभव में ये दूसरी बार देखा कि कोई एक किरोड़ी सिंह बैंसला किसी प्रदेश की सरकार के वजूद पर प्रश्न चिन्ह लगा लगा सकता है। लाखों देशवासियों की दिनचर्या को बाधित कर सकता है। वह इतना सक्षम है कि वो चाहेगा तो रेल चलेगी नहीं तो नहीं। ऐसा सक्षम की सरकार वहां आएगी जहाँ बैंसला जी चाहेंगे, वह भी घुटनों के बल। असहाय,निश्तेज और एक याचक की तरह। बैंसला जी को इस देश में आन्दोलन करने का हक़ है तो दूसरों को सामान्य जिंदगी जीने का अधिकार भी है। जो संविधान बैंसला को अपने समाज के हक़ के लिए आन्दोलन करने का अधिकार देता है वही संविधान दूसरों को बेखौफ जीवन बीतने का हक़ भी तो देता है। अफ़सोस, बैंसला जी ने शायद इसे अपनी मर्जी से प्रभाषित कर लिया और वोटों की खातिर पार्टियों ने उनका साथ दिया। डर सबको लगता है इसलिए कोई बोल नहीं रहा। खुद राज्य सरकार डरी,सहमी है। पटरी से उतरी , उतारी गई सरकार के दौड़ी दौड़ी पटरियों पर जाने का यही कारण है। ठीक है सरकार चलाने वालों में जन जन के प्रति विनम्रता होनी चाहिए किन्तु इसे ऐसे आदमी के समक्ष कमजोरी या कायर नहीं दिखना चाहिए जिसने लाखों लोगों की नाक में केवल इस लिए दम कर रखा हो कि उसकी नाक ऊँची हो जाये,ऊँची रहे। सबकी निगाहें श्रीमान बैंसला की तरफ है। जैसे वही इस सृष्टि को चला रहा हो। दस दिनों से प्रदेश के बहुत बड़े हिस्से में अशोक गहलोत की नहीं बैंसला की अपनी सरकार चल रही है। बैंसला आरक्षण के लिए अड़े हैं। सरकार वोटों के लोभ में वह नहीं कर रही जो उसका कर्तव्य और धर्म है। विपक्ष मानों ये कह रहा है, लो तुम भी चखो बैंसला के आन्दोलन का स्वाद। लोकतंत्र का यही सबसे बड़ा सुख है कि आपके पास भीड़ है तो आप कुछ भी कर सकने को स्वतंत्र हैं। आप जितने अधिक लोगों को परेशान करेंगे, सरकार को अंगूठा,जीभ दिखाकर चिढ़ायेंगे। उसको अपने समर्थकों के समक्ष घुटनों पर चलवाएंगे ,आप उतने ही बड़े लीडर का ख़िताब पाओगे । हम अपने फायदे के लिए दूसरों के परेशान करके खुश होते हैं। नाचते हैं। गाते हैं। मतलब यही ना कि बैंसला जी सरकार से लेकर अन्य लोगों का मजाक बना रहे हैं। अपना फायदा करना, उसके बारे में सोचना कोई गलत नहीं। मगर आप दूसरों को हैरान,परेशान,दुखी क्यों कर रहे हो। क्या इसलिए कि कोई आपके सामने नहीं हो रहा।देश को सही ढंग से चलाने के लिए चार स्तम्भों का ज़िक्र होता है। ये आन्दोलनकारी तो किसी स्तम्भ पर विश्वास करने को राजी नहीं लगते। बैंसला जी तो पढ़े लिखे आदमी बताए जाते हैं। पढ़ लिख कर आदमी ऐसा करता है। ये अचरज की बात है। सरकार की कोई ना कोई मज़बूरी होगी वरना सरकारें तो लुटने ,लुटाने के लिए ही होती है। कोई लूटने वाला चाहिए। नेताओं का जनता का माल किसी खास जाति,वर्ग की जनता को बांटने या लुटाने में क्या जाता है।

Tuesday, December 28, 2010

और भी रहते हैं

---- चुटकी----

राजस्थान में
गुर्जर ही नहीं
अन्य लोग भी
रहते हैं,
गहलोत जी
ये हम ही नहीं
और भी
कहते हैं।

हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई

हिन्दूस्तान का राष्ट्रपति हिन्दू। उप-राष्ट्रपति मुसलमान। प्रधानमंत्री सिख। यू पी ए की अध्यक्ष सोनिया जी पारसी/ईसाई। लो जी सार्थक हो गया हमारा नारा- हिन्दू,मुस्लिम,सिख, ईसाई , आपस में हैं भाई भाई।

Saturday, December 25, 2010

सी एम के मोहल्ले का आदमी

थानों में जब से डिजायर से नियुक्ति होने लगी है तब से टाइगर बिना दन्त और नाख़ून के हो गया। उस से केवल जनता डरती और घबराती है थाने वाले नहीं। एक थाना अधिकारी तो सी एम से नीचे बात ही नहीं करता। कहता है, मैं तो जोधपुर में सी एम के मोहल्ले में रहता हूँ। उनके रिश्तेदार के किसी बच्चे से फोन पर भी कुछ कहूँ तो मेरी बात सी एम तक पहुँच जाती है। लोग तो जयपुर जायेंगे, समय लेंगे तब कहीं अपना पक्ष रख पाएंगे, मेरा पक्ष यहाँ बैठे बैठे फोन पर ही उनके पास पहुँच जाता है। तो अब क्या किया जाये? नगर की जनता को कांग्रेस के नेताओं की चौखट पर जाने के स्थान पर इस थाना अधिकारी के पास जाना चाहिए। सी एम से इतनी सीधी और दमदार अप्रोच किसी कांग्रेसी की तो है नहीं। इलाका वासियों हमें इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए। गंगा हमारे घर चल के आई है। मेरी राय में तो एस पी के पास ज्ञापन लेकर जाने इस थाना अधिकारी के पास अपनी अलख जगाएं। नगर यू आई टी की अध्यक्षी के तलबगार भी प्लीज़ इस सुपरपावर थानाधिकारी से संपर्क करें। कुछ अधिक ही हो गया। रोजनामचे में रपट दाल दी तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। इसलिए श्री कैलाश दान जी को सॉरी बोलने में ही भलाई है। रवीन्द्र कृष्ण मजबूर कहते हैं--चलते जग के चलते खाते,मतलब निकले बदले नाते,"मजबूर" हकीकत कहते आये,बाकी रहा गुबार है। एसएमएस के डोडा का जो हिमाचल में रहते हैं। ताजी हवाओं में फूलों की महक हो, पहली किरण में चिड़ियों की चहक हो, जब भी खोलें आप अपनी पलक, उसमे बस खुशियों की झलक हो।

Monday, December 20, 2010

कचरा पट्टी, कलेक्टर को फोन करो

आज के इस युग में जब दमड़ी के बिना चमड़ी काम नहीं करती वहां डी एम एक एसएमएस पर कार्यवाही करवाता है। हम किसी और जिले के डी एम की नहीं हमारे जिले के डी एम सुबीर कुमार की चर्चा कर रहे हैं। किसी विनीत नाम के शख्स का एस एम एस जिला कलेक्टर को मिला-" बड़े दुःख की बात है कि रिद्धि सिद्धि के बाहर हनुमानगढ़ रोड पर गंदगी का साम्राज्य कायम है। कोलोनाइजर कालोनी की सारी गंदगी वहां पर रोजाना डाल रहे हैं।क्या सार्वजनिक स्थान पर प्राइवेट कालोनी वालों को इसकी छूट आपके राज में यूँही जारी रहेगी। पैनल्टी का कोई प्रावधान नहीं है क्या?क्या इसके लिए सी एम तक जाना पड़ेगा? कृपया इसे गंभीरता से लें।" कलेक्टर ने एस एम एस मिलते ही सम्बंधित विभाग को निर्देश दिए। विभाग के अधिकारियों,कर्मचारियों ने मौके पर जाकर जिला कलेक्टर को वस्तुस्थिति की जानकारी दी। ना कलेक्टर के पास के पास जाने की जरुरत ना अर्जी लिखवाने का झंझट। सीधा एस एमएस टू कलेक्टर और काम मिनट में। ऐसा होना उस जिले के लिए अच्छी बात है जहाँ सी एम सबसे अधिक करप्शन बताते हैं।---फ्लाई ओवर के कारण सम्पति के दाम में काफी फर्क पड़ने लगा है। एक सच्चे सौदे की जानकारी इसी संदर्भ में। लक्कड़ मंडी चौराहे पर एक दुकान का सौदा हुआ साढ़े तीन करोड़ का। दस लाख रूपये साई पेटे दिए गए। दोनों पार्टियाँ एकदम पायेदार,साफ सुथरी बिज़नस फैमिली। सौदा के समय फ्लाई ओवर का ज़िक्र नहीं था। बाद में सम्पति की कीमत कम आंकी गई। पहले वाला सौदा रद्द कर दिया गया। खरीदार ने साढ़े तीन करोड़ में दुकान लेने से इंकार कर दिया। बाद में यही दुकान उसी ने साढ़े दो मतलब ढाई करोड़ में ली। साई के दस लाख रूपये भी इसी अडजस्ट किये गए। फ्लाई ओवर ने एक को एक करोड़ की बचत करवा दी दूसरे को नुकसान। इस सौदे की पूरे बाजार में चर्चा है। वैसे फ्लाई ओवर के चक्कर में सूरतगढ़ रोड पर बनी लोहा मंडी में दुकानों के भाव एक दाम से ही बढ़ा दिए गए। लक्कड़ मंडी के पूर्व और पश्चिम की तरफ की सम्पतियों की देखभाल आरम्भ हो गई है।----प्याज बहुत महंगा है। लेकिन इसकी बात करने की बजाय चांदी की महंगाई पर चर्चा कर लेते हैं। शेयर बाजार और एनसीडीएक्स पर निगाह या रूचि रखने वाले कई दिनों से चांदी के भाव में काफी तेजी आने का एलान कर रहे हैं। इस प्रकार का कारोबार करने वाले चांदी की खरीदारी भी करने लगें हैं। मगर इसमें संभाल कर कदम बढ़ाने की आवश्यकता होती है। वरना सबकुछ सफ़ेद होते देर नहीं लगती। हाथ से रकम तो जाती ही है कई बार इज्जत भी चली जाती है। कई सप्ताह पहले ऐसा हो भी चुका है। एक जानदार,शानदार,दमदार परिवार के समझदार आदमी ने बड़ा सौदा कर लिया। जोर से झटका इस प्रकार लगा कि गूंज पूरी बिरादरी और बाजार में अभी तक सुनी जा रही है। किस्मत से जान बच गई। इसलिए जरा संभाल के। मजबूर का शेयर है--"इश्क है तो साथ ही चले चलो,प्रीत यादों से मेरी ना जताए कोई।" आनंद मायासुत का एसएमएस --एक सास अपने तीन दामादों को प्यार देखने के लिए दरिया में कूद गई। एक दामाद ने उसे बचा लिया, सास ने उसको कार दी । दूसरे दिन सास फिर दरिया में। दूसरे दामाद ने बचाया तो उसको मोटर साईकल मिली। तीसरे दिन वही कहानी । तीसरे दामाद ने सोचा अब तो साईकल ही बची है क्या फायदा। सास डूब गई। अगले दिन दिन ससुर ने उसको मर्सडीज कार और एक मकान दिया।

Tuesday, December 14, 2010

ऐसी भी हो सकती है सी एम की प्रेस वार्ता

श्रीगंगानगर--जयपुर का पिंक सिटी प्रेस क्लब। दोपहर का समय। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आ चुके है। गले में बेतरतीब सा मफलर ऐसे पड़ा है जैसे उनका मंत्री मंडल। खुश हैं। पत्रकारों की भरमार है। सबसे मिलते हुए उस ओर कदम बढ़ा रहे हैं जहाँ प्रेस वार्ता होनी है।उन्होंने जिस पत्रकार को नाम लेकर पुकारा उसने अपनी कॉलर ऊँची की। जिसका हाथ मिलाते हुए हाल चाल पूछा उसकी चाल बदल गई। जिस पत्रकार ने अपना परिचय खुद दिया उससे केवल यही कहा, अच्छा अच्छा और चलते रहे। कई मिनट के बाद मुख्यमंत्री जी और प्रेस दोनों आमने सामने थे। गहलोत जी ने एक नजर चारों तरफ दौड़ाई और कहा, पूछो क्या पूछना है। प्रेस बोली ,सर आप बताइए। हमारे पास बताने के लिए कुछ होता तो कब का बता चुके होते। हँसते हुए कहने लगे, बोलो तो सही। प्रेस को और तो कुछ सुझा नहीं, उपलब्धियां बताने को कहा। सी एम का चेहरा चमक गया। उपलब्धियां! सी एम बोलने लगे, उपलब्धियां बहुत है। सबसे बड़ी उपलब्धि तो ये कि हम ९६ से १०५ हो गए। हमारे व्यवहार, नीति, सदभाव और राज्य के प्रति प्रेम को देख पांच विधायकों ने कांग्रेस का झंडा पकड़ कर संख्या १०५ तक पहुंचा दी। कई निर्दलीय विधायकों को मंत्री बना कर समर्थन जुटाया। वर्तमान में जब भाई भाई का दुश्मन है, ऐसे में किसी को अपना बनाना कोई कम उपलब्धि नहीं है। आते समय जिसको गहलोत ने ज्यादा भाव नहीं दिया था उसने प्रश्न करने की कोशिश की तो वह पत्रकार बीच में आ गया जिसका हाल चाल मुख्यमंत्री ने पूछा था। कहने लगा,यार पहले गहलोत जी को बात तो पूरी कर लेने दो। हाँ सर आप क्या कह रहे थे। सी एम अपनी उपलब्धियां बता रहे थे। गोलमा को अपने साथ रखना, उसके नखरे सहना केवल हम ही जानते हैं। विपक्ष करके दिखाए ये सब। कितने ही मंत्री अपनी मन मर्जी करते हैं। ये हमारी उपेक्षा नहीं उनको दी गई स्वायतता है। करप्शन.... भीड़ में से दबी सी आवाज आई। वैरी गुड प्रश्न। सी एम ने कहा । वे बोले, आजकल तो बड़े पत्रकारों के नाम भी इसमें शामिल हो गए हैं। ये ख़ुशी की बात है। करप्शन का दायरा बढ़ा है। एक पत्रकार बोला, सर आपके राज में करप्शन की बात। बेकार के प्रश्न क्यों पूछते हो। वह पत्रकार बोला जिसे नाम लेकर सी एम ने बुलाया था। सी एम जारी थे, विपक्ष ने बहुत अधिक करप्शन किया। सबकी जांच चाल रही है। देखना नतीजा आएगा। सर कोई और उपलब्धि । कोई धीरे से बोला। हाँ हैं ना। सी एम ने कहा, हमें जैसे ही कहीं से किसी अधिकारी की शिकायत मिलती है हम उसका तबादला दूसरी जगह कर देते हैं। दूसरी से तीसरी जगह, इसी प्रकार चौथी,पांचवी.... । ऐसा किसी सरकार ने नहीं किया होगा। और कभी नहीं भी करते, एक पत्रकार दूसरे के कान में फुसफुसाया। गहलोत जी ने वातावरण अपने पक्ष में देख थोडा खुलना शुरू किया। कहने लगे, हमने सी पी जोशी की नजर के बावजूद अपनी कुर्सी बचाए रखी ताकि प्रदेश की सेवा कर सकूँ। आपको डर लगता है क्या जोशी से? एक पत्रकार ने हिम्मत दिखाई। गहलोत बोले, वे दिल्ली की बजाये राजस्थान में अधिक रहते हैं। इसके बाद भी हमने अपनी कुर्सी पर आंच नहीं आने दी। वैसे डर सबको लगता है गला सबका सूखता है....सी एम थोडा मुस्कराए। गला सबका सूखता है कि बात से सबको कुछ याद आ गया। प्रेस वार्ता समाप्त। जैसे जिसके सी एम से सम्बन्ध वैसी उसकी टिप्पणी। पिंक सिटी में उसके बाद क्या हुआ जरुर बताता। मगर इस बीच फोन की घंटी ने कल्पनाओं की प्रेस वार्ता की इतिश्री कर दी। हम तो यही सोचते रहे कि क्या ऐसा हो सकता है!
ओशो ने कहा है -आप बच्चे की सारी आवश्कताएं पूरी कर दें। उसे दुनियां की सभी आरामदायक चीजें दें। लेकिन यदि आप उसे आलिंगन नहीं करते तो उसका कभी सम्पूर्ण विकास नहीं हो पायेगा। अब एक एस एम एस नरेन् का--एक बच्चा चोकलेट खा रहा था। एक आदमी ने उसे टोका, बोला इतनी चोकलेट खाना ठीक नहीं। बच्चा बोला, मेरे दादा जी १०५ साल जिए। आदमी--वो चोकलेट खाते थे? बच्चा--नहीं, वो केवल अपने काम से काम रखते थे बस।
--- गोविंद गोयल

Monday, December 6, 2010

मुख्यमंत्री यूँ ही तो नहीं कहते

दुविधा भी है और डर भी। कहीं ऐसा ना हो जाये, कहीं वैसा ना हो जाये। आज के इस दौर में किसी बड़े अफसर के बारे में लिखना,छापना कम हिम्मत का काम नहीं है। सब को याद होगा कुछ दिन पहले मीडिया में श्रीगंगानगर जिले में करप्शन की स्थिति के बारे में छपा था। करप्शन इस देश के कण कण में है। जन्म से लेकर मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए कैश या काइंड के रूप में किसी ना किसी को कुछ देना पड़ता है। फिर सी एम ने यहीं के कलेक्टर क़ो क्यूँ इस बारे में कुछ कहा? कोई तो कारण जरुर होगा।। मुख्यमंत्री कोई बात बेवजह तो नहीं कहते। इसकी वजह है उनका श्रीगंगानगर में आना। उसके बाद यहाँ के प्रभावशाली नेताओं का सी एम के समक्ष रोना। सी एम को वह सब कुछ बताया गया जो नेताओं ने सुना था। सी एम ओ के एक बड़े अधिकारी के खास होने के कारण उनकी नियुक्ति हो गई तो हो गई। अब क्या हो सकता था। ऐसा कौन है जो उनको तुरंत वापिस भेजने की हिम्मत करता। इसलिए माँ -मायत के आगे रोया ही जा सकता था, रो लिए । वो जमाना और था जब तत्कालीन मंत्री गुरजंट सिंह बराड़ ने श्रीगंगानगर में एस पी का चार्ज लेनेआ रहे के एल शर्मा का चार्ज लेने से पहले ही तबादला करवा दिया था। श्री शर्मा तब सीकर ही पहुंचे थे कि उनकी जगह आलोक त्रिपाठी को एस पी लगाने के आदेश सरकार ने दिए। अब बात और है। मंत्री गुरमीत सिंह कुनर का इस मामले में अधिक मगजमारी नहीं करते । जो आ गया वही ठीक है। जब नियुक्तियों में उनका अधिक हस्तक्षेप नहीं है तो प्रशासन उनसे डरता भी नहीं। या यूँ कहें कि वे प्रशासन को डराते ही नहीं। मंत्री होने के बावजूद श्री कुनर के जिले में रहने का अधिकारियों पर कोई फर्क नहीं पड़ता। ना उनको मंत्री के घर जाना पड़ता है ना उनके आगमन पर सर्किट हाउस । वे खुद भी किसी को नहीं बुलाते। आजकल बिना बुलाये कोई आता भी नहीं। इस से भला मंत्री और कहाँ मिलेगा। इसलिए सब के सब मजे में है सिवाय आम जन के।
----अग्रवाल समाज की एक संस्था ने समाज के बुजुर्गों का सम्मान किया। अपने जिला कलेक्टर को भी बुलाया गया था। उनके पिता श्री को तो बुलाना ही था। कलेक्टर तो नहीं आये। उनके बिना ही कार्यक्रम करना पड़ा। कलेक्टर के गुणी पिताश्री मदन मोहन गुप्ता ने एक बात बड़े ही मार्के की कही। वे बोले, मुझे यहाँ इसलिए बुलाया गया है क्योंकि मेरा बेटा यहाँ का कलेक्टर है। वरना मुझे यहाँ कौन आमंत्रित करता। उन्होंने अपनी बात को विस्तार दिया, सभी को अपने बच्चों को पढ़ा कर इस लायक बनाना चाहिए ताकि परिवार को सम्मान मिल सके। बात तो सच्ची है। बेटा कलेक्टर है तभी तो मंच पर विराजे, नहीं तो उनके जैसे बुजुर्गों की श्रीगंगानगर में कोई कमी थोड़ी थी।
-----राज्य के मंत्री गुरमीत सिंह कुनर इस बारे जिले के लम्बे दौरे पर हैं। उनसे मिलना कोई मुश्किल नहीं है। जल्दी उठने वाले सुबह दस- साढ़े दस बजे तक उनसे गाँव में मिल सकते हैं। उसके बाद श्रीकरनपुर विधानसभा क्षेत्र में लगने वाले किसी शिविर में। जहाँ प्रशासन आया हुआ होता है। पता चला है कि श्री कुनर कम से कम एक सप्ताह तो यहाँ हैं ही।
इस बार पहले एस एम एस। भेजा है राकेश मितवा पत्रकार ने वह भी बिना एडिट किये--"बाबा साहेब के परिनिर्वाण दिवस पर कल पी आर ओ ऑफिस में एक प्रोग्राम होगा। प्लीज़ सभी मीडिया कर्मियों कोआमंत्रित करो ई टी वी सहित। मेरी पत्नी बाबा साहेब पर लेक्चर देगी।--कलेक्टर। " अब एक शेर शकील शमसी का--शाम के वक्त वो आते ही नहीं छत पै कभी, आपने इनको नहीं चाँद को देखा होगा।

Friday, December 3, 2010

दिल जोड़ने का मन किया

आज ना जाने क्यूँ
रोने को मन किया,
मां के आँचल में सर
छुपा के सोने का मन किया,
दुनिया की भाग दौड़ में
खो चुके रिश्ते सब,
आज उन रिश्तों को सिरे से
संजोने का मन किया,
किसी दिन भीड़ में
देखी थी किसी की आँखें ,
ना जाने क्यूँ आज उन आखों में
खो जाने का मन किया,
रोज सपनों से बातें
करता था मैं,
आज ना जाने क्यूँ उनसे
मुंह मोड़ने का मन किया,
झूठ बोलता हूँ
अपने आप से रोज मैं,
आज ना जाने क्यूँ खुद से
एक सच बोलने का मन किया,
दिल तोड़ता हूँ सबका
अपनी बातों से मैं,
आज एक टूटा हुआ दिल
जोड़ने का मन किया।
-----
यह कविता मेरे मित्र और साहित्यप्रेमी आनंद मायासुत ने भेजी थी एस एम एस के द्वारा। खुद शिक्षक हैं। इनके पिता श्री मोहन आलोक राजस्थानी के जाने माने साहित्यकार हैं।

Sunday, November 28, 2010

चालाक अफसर, शरीफ अफसर



पहले एक किस्सा,उसके बाद खबर। आज के सिस्टम को सालों पहले समझ लेने वाले एक अधिकारी को ऐसी जगह लगा दिया गया जहाँ पीने को पूरा पानी तक नहीं था। अफसर करियर के बारे में सचेत था। लिहाजा हर ताले की कुंजी उसके पास थी। उसने अपनी अंटी से लाखों रूपये खर्च कर प्रोजेक्ट बनाया। जिसमे ये बताया गया था कि इलाके में बाँध बनाया जाये तो पानी की समस्या का समाधान हो सकता है। जमीन फसल के रूप में सोना उगलेगी। अफसर सिस्टम का हिस्सा था। ले देकर अरबों रुपयों का प्रोजेक्ट सरकार से मंजूर करवा लिया। सब हजम । बाँध के नाम पर पिल्ली ईंट भी नहीं लगी। तीन साल बाद उसका तबादला हुआ तो नया अफसर आया। फ़ाइलें देखी,बांध नहीं दिखा। माजरा समझ गया। वह कौनसा कम था। उसने बांध की मरम्मत का प्रोजेक्ट बना स्वीकृत करवा लिया। इसने भी क्या करना था। बजट आपस में बांटा,मौज मारी। समय पर ट्रांसफर हो गया। तीसरा ऑफिसर आया। वह भी इसी व्यवस्था में रचा बसा था।कमाल देखा, फाइल में बाँध बना, मरम्मत भी हुई। मौके पर मोडल भी नहीं। उसने नई तरकीब निकली। सरकार को प्रोजेक्ट भेजा। कई साल पहले जो बाँध बना था वह नकारा हो गया। उसको हटाया जाना जरुरी है। वरना इलाका तबाह हो सकता है। साथ में उसने बाँध वाली जगह पर कालोनी और कमर्शियल कोम्प्लेक्स बनाने का प्रस्ताव भी भेज दिया। प्रस्ताव पास होना ही था। लिहाजा इलाके को बचाने के लिए बाँध हटा दिया गया। मतलब सब कुछ वैसा ही जैसा था। अरबों रूपये सिस्टम में बंट गए। अब खबर। श्रीगंगानगर जिले में ईंट भट्ठा मालिकों को नोटिस दिए गए। उसके बाद निजी कालोनियों को नोटिस देकर रिसीवर नियुक्त करने की कार्यवाही करवाई गई। हंगामा तो मचना ही था। बचने के लिए लाखों रुपयों का फंड बनाया गया। अभी तक इनमे से कोई कार्यवाही नोटिस से आगे नहीं बढ़ी। बढती दिखती भी नहीं। इलाके के लोगों को रोजी रोटी से महरूम और घर से बेघर कर बरबाद थोड़ी करना है। राजकीय अस्पताल में मेडिकल की दुकानों को कुछ जमीन देने का भरोसा दिया गया। जिनको कुछ मिलना था उन्होंने सिस्टम में शामिल होने के लिए रूपये इकट्ठे किये। नियमानुसार उनको जगह मिलने का सवाल ही पैदा नहीं होता। कमेटी ने अडंगा लगाया तो बात बिगड़ गई। अब साहब ने सड़क की तरफ उनकी दुकानों के दरवाजे खुलवाने का आश्वासन दिया बताते हैं।
अब बात एस पी की कर लें। रुपिंदर सिंह बहुत अच्छे, धर्म परायण इन्सान हैं। लेकिन एस पी के रूप में उनका कोई रोब कहीं न तो दिखता है ना महसूस होता है।एसपी के रूप में उनकी पकड़ कहीं नजर नहीं आती। कोई कुछ भी करने को स्वतंत्र है। पुलिस वाले भी और नियम कानून को अपनी उँगलियों पर नचाने वाले भी। जो कोई भी एस पी से मिलने गया , उसकी बात उन्होंने तसल्ली से सुनी, मिलने वाले को भरोसा भी हुआ। किन्तु उसका परिणाम कुछ नहीं निकलता। कुछ दिन पहले कांग्रेस पार्टी के नेता अपने मुख्यमंत्री से इस बारे में मिले थे। ये कहा और सुना जा रहा है कि एसपी रुपिंदर सिंह का तबादला होने वाला है। एस पी साहेब से इतना ही कहना है कि आपके दफ्तर में लगे एक बोर्ड पर वो नाम हैं जो आपसे पहले यहाँ एसपी रहे हैं। लेकिन आम जन को वही नाम याद हैं जिन्होंने अपराधियों में डर पैदा कर आम आदमी का भरोसा जीता। आप केवल इस बोर्ड पर ही अपना नाम लिखा देखना चाहते हैं या लोगों के दिलो दिमाग पर भी,यह आप पर निर्भर है। हमें तो एस पी दूसरा मिल ही जायेगा। ना भी मिले तो भी क्या है! सहेल गाजीपुरी का शेर है---उस से उसके दोस्त भी नाराज होते जायेंगे, जिस को सच्ची बात कहने का हुनर आ जायेगा। अब साथी पत्रकार राकेश मितवा का मोबाइल सन्देश--
श्वास का हर फूल अर्पण कर अमन को, प्यार का हर दीप पीड़ा के शमन को, है तू स्वयं परमात्मा का अंश भू पर, तू जहाँ भी है वहीँ महका चमन को।
---गोविंद गोयल

Monday, November 22, 2010

सवाल के जवाब के लिए चिंतन

की बोर्ड उँगलियों के नीचे हैं। उँगलियाँ कभी मन के भाव को शब्दों का रूप देती है और अगले ही पल उसी मन का आदेश मान उनको डीलिट कर ठहर जाती हैं की बोर्ड पर। सब्जेक्ट ही कुछ ऐसा है। कई देर की उलझन के बाद दिमाग ने मन को काबू में कर उँगलियों को स्वामी ब्रह्मदेव के बारे में लिखने का आदेश दिया। शनिवार को सुबह स्वामी जी से मिलने का अवसर मिला। क्षमा याचना के साथ स्वामी जी से सवाल किया, स्वामी जी आपके बाद संस्था को इसी प्रकार से कौन संभालेगा? स्वामी जी ने सवाल को बहुत सहज ढंग से लिया। कहने लगे, यही प्रश्न यहाँ भी गूंज रहा है। आजकल हम लोग इसी सवाल का जवाब खोजने में लागे हुए हैं। स्वामी जी बताने लगे, संस्था के सभी बावन सदस्य चिंतन कर रहे है कि ऐसी क्या व्यवस्था की जाये ताकि संस्था का संचालन,विकास,प्रतिष्ठा इसी प्रकार बनी रहे। उनका संकेत था कि जो भी होगा यहीं से होगा। संस्था के बाहर से कोई आकर इसकी जिम्मेदारी नहीं संभालेगा। एक ऐसा फंड बनाया जायेगा जिसके ब्याज से संस्था का बड़ा खर्च निकलता रहेगा। इस फंड को कोई भी कभी किसी भी हालत में प्रयोग नहीं कर सकेगा। बाकी जन सहयोग से चलेगा। वर्तमान में प्रतिमाह साढ़े अठारह लाख रूपये का खर्चा है संस्था को चलाने का। अभी सरकारी अनुदान भी। मगर इस प्रकार के इंतजाम करने की योजना है जिस से कि अनुदान बंद भी हो जाये तब भी संस्था को आर्थिक संकट से दो चार ना होना पड़े। एल के सी [ लालचंद कुलवंत राय चलाना] श्री जगदम्बा अंध विद्यालय समिति की नींव १३ दिसम्बर १९८० को रखी गई थी। लाल चंद कुलवंत राय चलाना समिति के पहले दानदाता थे। इन तीन दशकों में संस्था ने स्वामी ब्रह्मदेव के मार्गदर्शन में ऐसा विकास किया कि जिसकी मिसाल दूर दूर तक देखने सुनने को नहीं मिलती। श्रीगंगानगर इलाके में यह संस्था केवल दर्शनीय ही नहीं, इसके प्रति श्रद्धा भी है।जुबां फिसली तो फिसलती ही गई--अग्रवाल सम्मलेन कीराष्ट्रीय कार्यकारिणी के स्वागत समारोह में नेताओं की जुबां फिसली तो स्वागत का स्वाद रात तक कडवा रहा। छोटे बड़े अग्रजन हर कार्यक्रम में इस कड़वाहट को एक दूसरे के सामने बाहर निकालते दिखे। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जुबां इस लिए फिसली कि उनको वक्ताओं को बुलाने,उनके स्वागत का क्रम गरिमा के अनुकूल नहीं लगा। उपाध्यक्ष श्याम सुन्दर अग्रवाल को इसमें अपना अपमान महसूस हुआ। बी डी अग्रवाल को उपाध्यक्ष का बर्ताव सहन नहीं हुआ। लिहाजा उनकी जुबां भी फिसलने नहीं बच सकी। मामला अधिक बिगड़ गया। इसी वजह से दो पदाधिकारी प्रेस कांफ्रेंस में नहीं बैठे। उसके बाद हुए हर कार्यकर्म में यही समीक्षा होती रही कि कौन सही था कौन गलत। जिला कार्यकारिणी का स्वागत समारोह तो छोटा था बात बड़ी हो गई। संभव तय बड़ी बात मुश्किल से ही छोटी होगी। बेचारी आयोजक संस्था ये सोच सोच कर परेशान है कि आखिर यह सब कैसे और क्यों हुआ। वाली आसी का शेर है--आ मेरे यार एक बार गले लग जा, फिर कभी देखेंगे क्या लेना है क्या देना है। आर ए एस अधिकारी का मोबाइल सन्देश--दसना तुसी वी नी ते कहना असी वी नी। सदना तुसी वी नी ते आना असी वी नी। बोलना तुसी वी नी ते बुलाना असी वी नी। पर एक गल पक्की है के भुलना तुसी वी नी ते भुलाना असी वी नी।

Sunday, November 21, 2010

चार लड़कियों सहित आत्महत्या

आज सुबह की शुरुआत इस खबर से हुई कि एक दम्पती ने चार बच्चों सहित आत्महत्या कर ली। जानकारी को अधिकृत रूप मिला तो खबर ये थी। एक दम्पती ने अपनी चार लड़कियों के साथ आत्म हत्या कर ली। सबसे छोटी लड़की की उम्र मात्र एक माह थी। सबसे बड़ी लड़की अपने ससुराल गई हुई थी। फिलहाल यही पता चला है कि यह सब आर्थिक तंगी के कारण हुआ। पुलिस हर नजरिये से इस मामले की तहकीकात कर रही है। घटना हनुमानगढ़ जिले के रोड़ावाली गाँव की है। यह गाँव हनुमानगढ़ से अबोहर जाने वाली सड़क पर है।

Saturday, November 20, 2010

कला में अपार सम्भावना


श्री आत्म वल्लभ जैन कन्या महाविद्यालय की स्टूडेंट यूनियन ने आज महाविद्यालय में कला वर्ग के लिए करियर सेमिनार का आयोजन किया। महाविद्यालय की लैब में हुए इस सेमिनार के मुख्य वक्ता विकास डब्ल्यू एस पी लिमिटेड के एम डी बी डी अग्रवाल थे। श्री अग्रवाल ने अपने संबोधन में कला वर्ग में करियर की अपार संभावनाओं का ज़िक्र करते हुए इस धारना को गलत बताया कि कला के विधार्थी कुछ नहीं बन सकते। उन्होंने कहा कि संयोग से सपने पूरे नहीं हुआ करते । इनको पूरा करने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है। श्री अग्रवाल ने कहा कि कला में जितनी सम्भावना है उतनी और कहीं नहीं। इस विषय के विद्यार्थियों के लिए हर रास्ता खुला है। विद्यार्थी किसी भी रह चल कर सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक क्षेत्र में ऊँची सफलता प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने विद्यार्थियों से दिमाग की दोनों दिशाओं का प्रयोग करने की सलाह देते हुए कहा, अपने आप से अपनी तीव्र इच्छा पूछिये। अपनी इच्छा के विरुद्ध कोई काम ना करें। श्री अग्रवाल ने कहा कि अपने मिशन को लिखकर अपने सामने दीवार पर चिपकाओ। ताकि हर पल वह तुम्हारे सामने रहे। इन्सान का विजन ही उसे सफलता की ओर लेकर जाता है। स्टूडेंट यूनियन की ओर से यूनियन की महासचिव स्वाति गोयल ने श्री अग्रवाल का स्वागत करते हुए उनका परिचय दिया। व्याख्याता मृदुला यादव ने महाविद्यालय की ओर से बी डी अग्रवाल का धन्यवाद किया। श्री अग्रवाल को यूनियन की महासचिव स्वाति गोयल , कोषाध्यक्ष सोनिया , कक्षा प्रतिनिधि विधू शर्मा ने स्मृति चिन्ह भेंट किया। मंच पर श्री अग्रवाल के साथ महाविद्यालय के निदेशक एम एल सामरिया भी थे। सेमिनार के बाद श्री अग्रवाल यूनियन के ऑफिस भी गए। उन्होंने पदाधिकारियों से परिचय कर सहयोग का आश्वासन दिया।

Friday, November 19, 2010

बरखा,राजा और वीर

---- चुटकी---

एक
दूसरे की
तकदीर,
बरखा
राजा
वीर।
----
बरखा
राजा
वीर,
कहाँ
मिलेगी
ऐसी
तकदीर।
-----
जो पसंद आये उसको रख लेना। चुटकी ।

Thursday, November 18, 2010

अर्जुन की आँख में गंगानगर


श्रीगंगानगर के राजनीतिक गलियारों में सन्नाटा पसरा हुआ है। तीन साल तक कोई चुनाव होने नहीं इसलिए सब लगभग चुप्प है। वे भी जो सत्ता में हैं और वो भी जो नहीं है। ऐसे में एक सांसद जो पड़ौस का है, इस क्षेत्र में अधिक दिखाई देने लगा है। उसका नाम है अर्जुन मेघवाल। कोई अंजाना नाम नहीं है। सब जानते हैं कि श्री मेघवाल बीकानेर के सांसद हैं। यहाँ के सांसद भरत राम मेघवाल चाहे ना दिखे हों लेकिन अर्जुन मेघवाल का आना लगातार बना हुआ है। सांसद बनने की उनकी चाहत काफी पुरानी है। यह चाहत बीकानेर से पूरी तो हो गई। इसके साथ एक वहम भी आ गया । वहम ये कि वहां पिछले लम्बे समय से कोई सांसद रिपीट नहीं हुआ। बस यही वहम उनको श्रीगंगानगर में बार बार ले आता है। अर्जुन मेघवाल का श्रीगंगानगर से पुराना नाता है। उन्होंने यहाँ से बीजेपी की टिकट लेने की कोशिश भी की है। उनके बन्दे उनको लेकर इलाके में घूमे भी है। जो पहले संभव ना हो सका वह अब करने की योजना है। इस बार उनका मानस श्रीगंगानगर चुनाव लड़ने का है। हालाँकि अभी चुनाव में बहुत समय बाकी है। उन्होंने ऐसा कोई संकेत भी नहीं दिया है। खुद इतनी जल्दी कोई संकेत देंगे इसकी उम्मीद नहीं है। हाँ अपने लोगों से इस बारे में इलाके में चर्चा तो करवाई ही जा सकती है। यही हो रहा है। सवाल ये कि निहाल चन्द क्या करेंगे? जवाब ये ,विधानसभा का चुनाव लड़कर कर मंत्री पद प्राप्त करेंगे!

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कई दिन पहले एसपी रुपिंदर सिंह अख़बार में सेना की वर्दी में छपे दिखे। ऐसा लगा कोई और होगा। बात आई गई हो गई। बाद में एक दिन ऑफिस में उनको सैनिक अधिकारी की वर्दी में देखा तो अचरज हुआ। इतने सालों में कितने ही एसपी आये गए। बड़े बड़े आन्दोलन के समय बहुत बड़े बड़े पुलिस अधिकारी आये। किसी को भी सेना की वर्दी में नहीं देखा। पहली बार परम्परा से हट के कुछ दिखे तो अचम्भा तो होना ही था। मुझे ही क्यों,उस दिन जो कोई उनसे मिला उसे भी यही हुआ। लेकिन अब अचम्भा करने वाली बात नहीं है। क्योंकि असल में यह भी एसपी की वर्दी का ही एक हिस्सा है। इसको कमबैक ड्रेस कहते हैं। इस ड्रेस को खास मौकों पर ही पहना जाता है। एसपी श्री सिंह ने बताया कि इस को हथियार चलने की ट्रेनिंग,रूट मार्च और फिल्ड में काम करते समय पहना जाता है। श्री सिंह को यह ड्रेस कुछ समय पहले तब मिली जब वे कोई कोर्स करने गए थे।

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चलो कुछ क्षण जवाहर नगर थाना का ख्याल कर लेते हैं। थाना क्षेत्र का तो पता नहीं थाने में सब ठीक नहीं है। वहां की दीवारें आजकल एक चर्चा सुनाने/सुनने में व्यस्त हैं। वह यह कि थाने का सिपाही भी अपने थाना अधिकारी की बात पर कान नहीं धरता। एक कान से सुनता है दूसरे से निकल देता है। बात जब निकलती है तो दूर दूर तक जाती ही है।

नज़र अमरोही कहते हैं--डूब कर दिल के भी अन्दर देखो, कितना गहरा है समन्दर देखो। हनुमानगढ़ से विकास का भेजा सन्देश--बुरा मत मानो अगर कोई तुमको अपनी जरुरत के समय ही याद करता है। इसे अहोभाग्य समझो, क्योंकि दीपक, मोमबत्ती अँधेरा होने पर ही याद आती है।

----गोविंद गोयल

Monday, November 15, 2010

महंगा पड़ा राजा

---- चुटकी---

सरकारी
खजाने का
बजा दिया
बाजा,
हजारों करोड़
में पड़ा
एक राजा।

Tuesday, November 9, 2010

मुश्किल डगर पर पहले कदम को सलाम

इन्सान के सामाजिक होने का प्रमाण है उसके यहाँ आने वाले निमंत्रण पत्र। शादी,सगाई,जन्म,विवाह की वर्षगांठ,जन्म और शादी की सिल्वर और गोल्डन जुबली सहित अनेक अवसरों पर निमंत्रण पत्र आना भिजवाना एक सामान्य बात है। ऐसे आयोजनों में जाना-आना रिश्तों को निभाने के लिए जरुरी भी है। कहीं कहीं सामाजिक शिष्टाचार के लिए हाजिरी लगवानी होती है। जाना है तो खाली हाथ जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता। जैसा जिसके साथ रिश्ता वैसा ही उपहार या लिफाफे के अन्दर शगुन के नाम पर नकदी। किसी के यहाँ अकेले गए तो कहीं कहीं परिवार के साथ। कार्ड आने का सीधा सा मतलब होता है कि खर्चा आ गया। भोजन करो, लिफाफा दो और लौट जाओ घर। कई बार तो भोजन भी जरुरी नहीं होता। लिफाफे से ही हाजिरी लगवाई जाती है। सब चलता है। रिवाज ही ऐसा हो गया। हर कोई चर्चा करता है। इस रिवाज की बातचीत में खिल्ली उड़ाने वालों की कमी नहीं है।। दशकों पहले जो एक सामान्य रिवाज था वह विकृति के रूप में समाज के सामने आ खड़ा हुआ। पहली बार एक ऐसा निमंत्रण मिला जिसने ध्यान अपनी तरफ खींचा। वैसे तो यह लक्ष्मी ट्रेडिंग कंपनी के संचालक निर्मल कुमार बंसल के सुपौत्र के जन्मोपलक्ष में आयोजित होने वाले भोज में आने का निमंत्रण है, लेकिन इस पर आने के आग्रह के साथ ये लिखा है" नोट--आपसे करबद्ध अनुरोध है कि किसी प्रकार का गिफ्ट स्वीकार्य नहीं होगा। केवल आपका आशीर्वाद ही चाहिए। " किसी निमंत्रण पत्र में इस प्रकार अनुरोध पहली बार देखने का अनुभव हुआ। अच्छा लगा। सुखद अहसास हुआ। लाइन बेशक छोटी है, इनका सन्देश बहुत और बहुत बड़ा है। वर्तमान में कहें तो बराक ओबामा की भारत यात्रा से भी बड़ा। शुरुआत छोटी के साथ साथ मुश्किल भरी होती है। आयोजन में इसका कोई अर्थ रहे या ना रहे। मेहमान चाहे गिफ्ट,लिफाफा लाएं, मनुहार करके जबरदस्ती मेजबान को दे भी जाएं। उनको मज़बूरी में,शिष्टाचार में ,रिश्तों की गरिमा रखने हेतु संभव है कुछ स्वीकार करना पड़े। इसके बावजूद निमंत्रण पत्र पर छपी लाइन की भावना दूर दूर तक जाएगी। जानी ही चाहिए।आज के परिवेश में जब लिफाफा हमारी संस्कृति बन चुका है तब आमंत्रित मेहमान को आने से पहले ही यह अनुरोध कर देना कि प्लीज़ कुछ लाना मत, कम महत्व पूर्ण नहीं है। घर घर में घर कर चुके ऐसे रिवाजों के खिलाफ किसी ना किसी को तो बोलना ही था। कोई अकेला चलने की हिम्मत करेगा तभी कारवां बनने का रास्ता बनेगा। ये जरुर है कि पहले पहल यह आड़ी,टेढ़ी, धुंधली सी पगडंडी हो उसके बाद एक आम रास्ता बन जाये। किसी के आना जाना बोझ,खर्च महसूस होने की बजाय आनंद और उत्साह की बात लगे। संभव है रास्ता कई साल गुजरने के बाद भी न बने, ये भी हो सकता है कि इस रास्ते की आवश्यकता जल्दी ही सबको होने लगे। फिलहाल तो निर्मल कुमार बंसल परिवार की भावना,सोच,हिम्मत को सलाम। जिसने एक नई परम्परा की ओर अपने कदम बढ़ाये हैं। हस्ती मल हस्ती की लाइन हैं---रास्ता किस जगह नहीं होता,सिर्फ हमको पता नहीं होता। बरसों रुत के मिज़ाज सहता है, पेड़ यूँ ही बड़ा नहीं होता। अब एक एस एम एस जो हनुमानगढ़ के राजेश अरोड़ा का है--अक्सर लोग कहते हैं कि जिंदगी रही तो फिर मिलेगें। मगर हम लोगों से ये कहते हैं कि मिलते रहे तो जिंदगी रहेगी।
----गोविंद गोयल

ओबामा-मनमोहन खुश


----चुटकी---
मनमोहन-ओबामा
दोनों खुश,
पाकिस्तानी
पटाखा
हो गया फुस्स।

Thursday, November 4, 2010

चालीस करोड़ कृषि शरणार्थी


विकास डब्ल्यू एस पी लिमिटेड के चेयरमैन बी डी अग्रवाल, जिन्होंने ये लेख लिखा है, का कहना है कि इस लेख को पढ़कर बीजेपी के विधायक अभिषेक मटोरिया सहित कई जनप्रतिनिधियों ने उनसे मुलाकात की। हर किसी ने इस बात पर अचरज जताया कि देश में किसानों के साथ ऐसा हो रहा है और कोई भी राजनीतिक दल बोलता नहीं। श्री अग्रवाल का दावा है कि वे जो कुछ इस लेख में कह रहे हैं वह तथ्यों पर आधारित है। तथ्यों को कोई झुठला नहीं सकता हाँ कोई आँख मूंद ले तो कोई क्या कर सकता है।

Wednesday, November 3, 2010

तेरी चाहत की दीवानगी

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मेरे मासूम
सवालों के
झूठे थे तेरे
सभी जवाब,
तेरी चाहत की
दीवानगी में
गुम हो गए
मेरे सभी ख्वाब।
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अमावस का हूँ
अँधेरा, जो था
पूनम की रात,
दीप की भांति
जलो तो
बन जाये बात।
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तुम्हारी तुला
तोलने वाले भी
तुम्हारे ही हाथ,
ऐसे में कोई
क्यूँ देने लगा
मेरा साथ।
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***गोविंद गोयल

Sunday, October 31, 2010

परम्पराओं से भरा जीवन

हम सबका जीवन परम्पराओं के मामले में बहुत अमीर है। परम्परा कोई भी कहीं भी हो सबकी अपनी अलग कहानी,दास्ताँ है। कोई चाहे इसकी खिल्ली उड़ाए तो उड़ाए ,परम्परा का निर्वहन जारी रहता है। ऐसी ही एक परम्परा है, लंकेश रावण के कुल का बारहवां । श्रीगंगानगर में दशहरे का आयोजन श्रीसनातन धर्म महावीर दल करता है। रावण,मेघनाथ और कुम्भकर्ण के पुतलों के दहन के बाद किसी दिन लंकेश के कुल का बारहवां यही संस्था करती है। इस दिन विधि विधान से ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है। नगर के गणमान्य नागरिक, दशहरा आयोजन से जुड़े सभी व्यक्ति इसमें शामिल होते हैं। कुछ व्यक्तियों की राय में यह महान पंडित रावण के पुतले जलाने के कथित पाप से मुक्ति हेतु किया जाता है। कई सज्जनों का मत है कि यह प्रायश्चित है ,उनके द्वारा जो रावण,कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुतले जलाते हैं। वजह जो भी हो परन्तु यह आयोजन गत छ:दशक से हो रहा है। संस्था के पदाधिकारी चाहे कोई रहा ,यह आयोजन अवश्य हुआ और होता रहेगा।

पटेल जी को प्रणाम


राजनेताओं के सरदार वल्लभ भाई पटेल को हमारा शत शत प्रणाम। हमारी राय में उनके जैसा राजनेता अब तो इस भारत में नहीं है। पता नहीं वो दिन कब आएगा जब हिन्दूस्तान में एक बार फिर कोई वल्लभ भाई पटेल जन्म लेगा। आज उनका जन्म दिन है।

Saturday, October 30, 2010

श्रीगंगानगर में पत्रकारिता सौभाग्य की बात


मोबाइल फोन की घंटी बजी...टू..न न,टू न न [ आपकी मर्जी चाहे जैसी बजा लो] । गोविंद गोयल! जी बोल रहा हूँ। गोयल जी ...बोल रहा हूँ। फलां फलां जगह पर छापा मारा है। आ जाओ। इस प्रकार के फोन हर मीडिया कर्मी के पास हर रोज आते हैं। सब पहुँच जाते हैं अफसर के बताए ठिकाने पर। एक साथ कई पत्रकार, प्रेस फोटोग्राफर,पुलिस, प्रशासन के अधिकारी को देख सामने वाला वैसे ही होश खो देता है। अब जो हो वही सही।
श्रीगंगानगर में पत्रकार होना बहुत ही सुखद अहसास के साथ साथ भाग्यशाली बात है। यहाँ आपको अधिक भागादौड़ी करने की कोई जरुरत नहीं है। हर विभाग के अफसर कुछ भी करने से पहले अपने बड़े अधिकारी को बताए ना बताए पत्रकार को जरुर फोन करेगा। भई, जंगल में मोर नचा किस ने देखा। मीडिया आएगा तभी तो नाम होगा। एक साथ कई कैमरे में कैद हो जाती है उनकी फोटो। जो किसी अख़बार या टी वी पर जाकर आजाद हो जाती है आम जन को दिखाने के लिए। ये सब रोज का काम है। गलत सही की ऐसी की तैसी। एक बार तो हमने उसकी इज्जत को मिट्टी में मिला दिया । जिसके यहाँ इतना ताम झाम पहुँच गया। सबके अपने अपने विवेक, आइडिया। कोई कहीं से फोटो लेगा, कोई किसी के बाईट । कोई किसी को रोक नहीं पाता। आम जन कौनसा कानून की जानकारी रखता है। वह तो यही सोचता है कि मीडिया कहीं भी आ जा सकता है। किसी भी स्थान की फोटो अपने कैमरे में कैद करना उसका जन्म सिद्ध अधिकार है। उसकी अज्ञानता मीडिया के लिए बहुत अधिक सुविधा वाली बात है । वह क्यों परवाह करने लगा कि इस बात का फैसला कब होगा कि क्या सही है क्या गलत। जो अफसर कहे वही सही, आखिर ख़बरों का स्त्रोत तो हमारा वही है। अगर वे ना बताए तो हम कोई भगवान तो है नहीं। कोई आम जन फोन करे तो हम नहीं जाते। आम जन को तो यही कहते हैं कि जरुरत है तो ऑफिस आ जाओ। अफसर को मना नहीं कर पाते। सारे काम छोड़ कर उनकी गाड़ियों के पीछे अपनी गाड़िया लगा लेते है। कई बार तो भ्रम हो जाता है कि कौन किसको ले जा रहा है। मीडिया सरकारी तंत्र को ले जा रहा है या सरकारी तंत्र मीडिया को अपनी अंगुली पर नचा रहा है। जिसके यहाँ पहुँच गए उसकी एक बार तो खूब पब्लिसिटी हो जाती है। जाँच में चाहे कुछ भी न निकले वह एक बार तो अपराधी हो ही गया। पाठक सोचते होंगे कि पत्रकारों को हर बात कैसे पता लग जाती है। भाइयो, अपने आप पता नहीं लगती। जिसका खबर में कोई ना कोई इंटरेस्ट होता है वही हमको बताता है। श्रीगंगानगर में तो जब तक मीडिया में हर रोज अपनी फोटो छपाने के "लालची" अफसर कर्मचारी रहेंगे तब तक मीडिया से जुड़े लोगों को ख़बरों के पीछे भागने की जरुरत ही नहीं ,बस अफसरों,उनके कर्मचारियों से राम रमी रखो। इस लिए श्रीगंगानगर में पत्रकार होना गौरव की बात हो गया। बड़े बड़े अधिकारी के सानिध्य में रहने का मौका साथ में खबर , और चाहिए भी क्या पत्रकार को अपनी जिंदगी में। बड़े अफसरों के फोन आते है तो घर में, रिश्तेदारों में,समाज में रेपो तो बनती ही है। श्रीगंगानगर से दूर रहने वाला इस बात को समझाने में कोई दिक्कत महसूस करे तो कभी आकर यहाँ प्रकाशित अख़बारों का अवलोकन कर ले। अपनी तो यही राय है कि पत्रकारिता करो तो श्रीगंगानगर में । काम की कोई कमी नहीं है। अख़बार भी बहुत हैं और अब तो मैगजीन भी । तो कब आ रहें है आप श्रीगंगानगर से। अरे हमारे यहाँ तो लखनऊ ,भोपाल तक के पत्रकार आये हुए हैं । आप क्यों घबराते हो। आ जाओ। कुछ दिनों में सब सैट हो जायेगा। श्रीगंगानगर में पत्रकारिता नहीं की तो जिंदगी में रस नहीं आता। ये कोई व्यंग्य,कहानी, टिप्पणी या कटाक्ष नहीं व्यथा है। संभव है किसी को यह मेरी व्यथा लगे, मगर चिंतन मनन करने के बाद उसको अहसास होगा कि यह पत्रकारिता की व्यथा है। कैसी विडम्बना है कि हम सब सरकारी तंत्र को फोलो कर रहे है। जो वह दिखाना चाहता है वहीँ तक हमारी नजर जाती है। होना तो यह चाहिए कि सरकारी तंत्र वह करे जो पत्रकारिता चाहे। ओशो की लाइन पढो---
जो जीवन दुःख में पका नहीं ,कच्चे घट सा रह जाता है।
जो दीप हवाओं से न लड़ा,वह जलना सीख न पाता है।
इसलिए दुखों का स्वागत कर,दुःख ही मुक्ति का है आधार।
अथ तप: हि शरणम गच्छामि, भज ओशो शरणम् गच्छामि ।

Thursday, October 28, 2010

श्रीगंगानगर में "गुंडे" की दहशत

हुजूर अहमद "शफक" की लाइन -चिंताजनक है आज जो हालात मेरी जां,हैं सब ये सियासत के कमालात मेरी जां, से आज बात की शुरुआत करते हैं।दीवाली अभी दूर है मगर लक्ष्मी का आगमन साफ दिखता है। देखना हो तो
चले आओ चिकित्सा पेशे से जुड़े किसी भी आदमी या संस्था के यहाँ। आपको साफ दिखाई देगा कि किस प्रकार लक्ष्मी वहां अपनी मेहरबानी की बरसात कर रही है। नगर में चर्चा है कि इस बार लक्ष्मी इन्ही के घर विराजमान है। इसका कारण है "गुंडे" का आतंक। जल्दी में कुछ उल्टा हो गया। गुंडे नहीं डेंगू। बात तो एक ही है।
श्रीगंगानगर में इन दिनों वो घर बहुत ही भाग्यशाली है जिसका कोई सदस्य बीमार नहीं है। सरकारी हो प्राइवेट ,तमाम हॉस्पिटल में बुखार से पीड़ित लोगों का आना लगा रहता है। प्रशासन पता नहीं क्या कहता है लेकिन निजी अस्पतालों के आंकड़े लोगों के दिलों में खौफ पैदा करने के लिए काफी हैं। एक बार बुखार होने का मतलब है कई हजार रूपये की चट्टी। मानसिक चिंता अलग से। जिनके यहाँ हर रोज या हर माह एक निश्चित राशि आनी है उसके यहाँ तो समस्या अधिक है। हमें इस बात की जलन नहीं है कि लक्ष्मी चिकित्सा से जुड़े व्यक्तियों के यहाँ क्यों डेरा लगाकर बैठी है। चिंता है कि इस बात की है कि अगर यही हाल रहा तो इस बार की दीवाली कैसी होगी? दीवाली, जो सबसे बड़े त्यौहार के रूप में आती है, कई प्रकार के सपने साथ लेकर आती है। घर घर में कुछ ना कुछ नया लाने के लिए बजट का इंतजाम रहता ही है। जैसी जिसकी जेब वैसे उसके सपने। मगर इस बार सभी के नहीं तो बहुतों के छोटे बड़े सभी सपने इस गुंडे के डर से किसी ओर के यहाँ चले जा रहे हैं। सामान्य बुखार ,जो कभी दादी नानी के नुस्खों से ठीक हो जाया करता था वह अब जिंदगी के लिए संकट बन कर आ खड़ा होता है। जिंदगी है तो सपने हैं, ये सोचकर सब अपना सब कुछ इस गुंडे पर लगाने को तैयार हो जाते हैं। कोई हिसार भागता है कोई जयपुर तो कोई लुधियाना। बस किसी प्रकार से जिन्दगी बच जाये,रोटी के लिए कौड़ी बचे ना बचे। कोई कर भी क्या सकता है। इससे पहले तो कभी यहाँ इस प्रकार के हालत पैदा नहीं हुए। नगर के उन व्यक्तियों को जो अपने आप को इस नगर की आन, बान, शान समझते हैं,इस बारे में चिंतन मनन जरुर करना चाहिए कि आखिर ऐसे हालत बने क्यों? अब तो जो होना था हो गया आइन्दा तो शहर को इस स्थिति से दो चार ना होना पड़े।
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कांग्रेस नेताओं को याद होगा कि १९७७ में करारी हार के बाद उनकी नेता इंदिरा गाँधी १९८० में फिर सत्ता में वापिस आ गई थी। क्योंकि हार के बावजूद श्रीमती गाँधी लगातार मिडिया की पहली खबर रहीं। इसका कारण वे खुद नहीं चरण सिंह बने , जो सरकार में उप प्रधानमंत्री के साथ साथ गृह मंत्री भी थे। वे उठते ,बैठते केवल श्रीमती गाँधी को कोसते। वे श्रीमती गाँधी को कोसते रहे, श्रीमती गाँधी लोगों की सहानुभूति बटोर कर सत्ता में लौट आई। इसी से मिलता जुलता यहाँ कांग्रेस की राजकुमार गौड़ एंड कम्पनी कर रही है। जांदू ये , जांदू वो। हाय जांदू,हे जांदू। मेरे मालिक ,आप कांग्रेस के नेता हो, जो राजस्थान की नहीं हिन्दूस्तान की भी सत्ता चला रही है। आपको लगता है कि नगर परिषद् शहर में ठीक या जनहित का काम नहीं कर रही तो अफसरों को बदल दो। जो स्थान खाली है उनको भरवा दो। यहाँ के कर्मचारी,अफसर आपको भाव नहीं देते तो उनके तबादले करवाओ । जांदू नहीं सुहाता तो उसको बर्खास्त करवा दो। ये क्या विपक्ष की तरह स्यापा करने लगे हो। शोर मचाना विपक्ष का काम होता है। सत्ता पक्ष तो चमत्कार दिखाता है। इस हाय तोबा से राजकुमार गौड़ एंड कंपनी को कब क्या मिलेगा पता नहीं, हाँ जांदू जरुर अख़बारों में छाये रहते हैं। अगर जांदू को जांदू को डाउन करना है तो उसका नाम ही लेना बंद कर दो। नहीं करोगे तो वह राजनीति का डौन बन जायेगा। ओशो ने कहा था--कौन सही है कौन गलत है, क्या रखा इस नादानी में,कौड़ी की चिंता करने में हीरा बह जाता पानी में। जब भी शिकवा शिकायत हो ,समझो तुम्ही खलनायक हो, अथ प्रमम शरणम् गच्छामि, भज ओशो शरणम् गच्छामि। अब आनंद मायासुत का भेजा एस एम एस --इस दुनिया में भगवान का संतुलन कितना अचरज भरा है। सौ किलो गेहूं का बोरा जो आदमी उठा सकता है वह उसे खरीद नहीं सकता। जो इसे खरीद सकता है वह इसे उठा नहीं सकता। ---

गोविंद गोयल

सुषमा-नरेंद्र


----चुटकी----
सुषमा की
जुबां से
जैसे ही निकला
नरेंद्र मोदी
का नाम,
चैनल वालों को
मिल गया
एक नया काम।

Tuesday, October 26, 2010

एक दिन के महाराज


करवा चौथ की
हमको तो
समझ आती है
यही एक बात,
बस, एक
दिन की
चांदनी
फिर अँधेरी रात।
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एक दोस्त है, सालों से पत्नी के लिए करवा चौथ का व्रत रखता है। बड़ा प्रभावित रहा आज तक। कितना मान करता है पत्नी का। उसके साथ खुद भी भूखा रहता है। बहुत प्रशंसा करता उसकी। कल रात को भी की थी। असली कहानी आज समझ आई। वह व्रत अपनी मर्जी से या पत्नी की सहानुभूति के लिए नहीं रखता। व्रत रखना उसकी मज़बूरी है। क्योंकि पत्नी या तो सजने संवरने में लगी रहती है या व्रत भंग ना हो, इस वजह से कुछ काम नहीं करती। तब पति क्या करता। एक दो साल तो देखा। बाज़ार में कुछ खाया। लेकिन बात नहीं बनी । उसके बाद उसने भी व्रत रखना आरम्भ कर दिया। मैंने खुद देखा सुना। पति बोला, सुनो मेरी शर्ट में बटन लगा दो ऑफिस जाना है। पत्नी कहने लगी, मेरा तो आज करवा चौथ का व्रत है। सुई हाथ में नहीं लेनी या तो खुद लगा लो या फिर दूसरी शर्ट पहन लो। ऐसी स्थिति में कोई क्या करे! व्रत करे और क्या करे। पत्नी भी खुश शरीर को भी राहत।

Sunday, October 24, 2010

मियां बीबी मतलब वीणा की तारें


बात बहुत पुरानी है। पति के मना करने के बावजूद पत्नी सत्संग में चली गई। वापिस आई तो पति ने नाराजगी दिखाई। बात इतनी बढ़ी कि बोलना तो दूर दोनों ने मरने तक एक दूसरे की सूरत नहीं देखी। वह भी एक घर में रहते हुए। पति ने बाहर वाले कमरे में डेरा जमा लिया। दोनों ऐसे विरागी हुए कि गठजोड़ा फिर बंधा ही नहीं। एक पति ऐसा था कि पत्नी के अचानक हुई मौत के बाद उसके प्रति अनुराग ने उसके दिमागी संतुलन को बिगाड़ दिया। बच्चे परेशान हुए। दोनों बात एक दम सच्ची। मियां बीबी का रिश्ता है ही कुछ ऐसा। करवा चौथ आ गई, इसी बहाने मियां-बीबी लिखने का बहाना बन गए। एक अनूठा रिश्ता जो कभी कभी रिसता भी रहता है इसके बावजूद सब रिश्तों में यह नाजुक,गरिमामय,आभायुक्त और मर्यादित के साथ साथ बेशर्मी से ओत प्रोत होता है। दोनों में लाज,शर्म का आवरण है भी और जब नहीं होता तो बिलकुल भी नहीं होता। फिर भी पाक। दोनों ही स्थिति में प्रगाढ़ता होती है। जब से रिश्तों का महत्व समझ आने लगा तब से आज तक जिन घरों तक अप्रोच रही ,उनमे एक दम्पती ऐसे मिले जिनकी आपसी समझ का कोई मुकाबला नहीं। दो जवान बेटे हैं फिर भी इस प्रकार रहते

हैं जैसे मियां बीबी नहीं प्रेमी प्रेमिका हो। मजाल है जो कभी किसी के चेहरे पर खीज दिखाई दी हो। बेशक यह बात साधारण सी है लेकिन है बड़ी व्यावहारिक। पत्नी अगर अपने पति की प्रेमिका बनकर रहे तो घर आनंद प्रदान करता है। रिश्ते हर समय गर्माहट लिए रहते हैं। तब पति को भी प्रेमी होना होगा। असली गड़बड़ वहां होती है जहाँ पत्नी केवल और केवल गृहणी बनी रहना चाहती है। तब इस रिश्ते में रिसाव कुछ अधिक होने लगता है। रिश्ते बेशक टूटने की कगार पर ना पहुंचे मगर आनंद का अभाव जरुर जीवन में आ जाता है। पति पत्नी के प्रेमी -प्रेमिका होने का यह मतलब नहीं कि वे हाथों में हाथ डाले पार्कों में गीत गाते हुए घूमे। प्रेम की भी अपनी मर्यादा होती है। या यूँ कहें कि मर्यादित प्रेम ही असली प्रेम कहलाने का हक़ रखता है तो गलत नहीं होगा। एक बार क्या अनेक बार देखा होगा। सत्संग,कथा में किसी प्रसंग के समय महिलाएं किसी के कहे बिना ही नृत्य करना शुरू कर देती हैं। भाव विभोर हो ऐसे नाचती हैं कि उनको इस बात से भी कोई मतलब नहीं रहता कि यहाँ कितने नर नारी हैं। मगर ऐसी ही किसी महिला से घर में उसका पति दो ठुमके लगाने की फरमाईस कर दे या घरेलू उत्सव में नाचने के लिए कह दे तो क्या मजाल कि महिला अपनी कला दिखाने को तैयार हो जाये। संभव है पति को कुछ सुन कर अपने शब्द वापिस लेने पड़ें। बहुत मुश्किल होता है भई,अपनों के आनंद के लिए नाचना।


कितना खटती है गृहणी। देर रात तक। दोनों एक साथ सोयेंगें। पति देर तक सोता रहे तो चलेगा, पत्नी को उठना ही पड़ेगा ,पौ फटने से पहले। कोई कानून नहीं है। ये तो मर्यादा है,कायदा है,संस्कार है। दो,चार ऐसी भी होगीं जो नहीं भी उठती। फिर भी घर चलते हैं। चलते रहेगें। मतलब ये कि ये सम्बन्ध वीणा की तारों की तरह है। अधिक कसोगे तो टूट जाते हैं और ढीला छोड़ दिया तो उनमे स्वर नहीं निकलते। इसलिए करवा चौथ भी तभी सार्थक होगी जब दोनों के दिलों में एक दूसरे के लिए अनुराग और विराग दोनों होंगे। ऐसा न हो कि ये कहना पड़े--" करवा चौथ का रखा व्रत, कई सौ रूपये कर दिए खर्च,श्रृंगार में उलझी रही, घर से भूखा चला गया मर्द।" शारदा कृष्ण की लाइन हैं--जेठ दुपहरी सा जीवन ये, तुम होते तो सावन होता। इन ठिठुरती सी रातों में ,थोडा बहुत जलावन होता।
---गोविंद गोयल

Saturday, October 23, 2010

मत कथा गढ़ो या चिल्लाओ

बहती हो प्रतिकूल हवा, तुम शांत बैठ जाओ कुछ पल।
जब हवा थमे आगे चल दो,तेरी मुट्ठी में होगा कल।
तुम डटे रहो अपने पथ पर,रस्सी से घिस जाता पत्थर।
अथ धैर्यम शरणम् गच्छामि, भज ओशो शरणम् गच्छामि।

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लगता होगा बहुत बार,कुछ लोग नहीं सुनते तुमको।
घायल हो जाता अहंकार,दुःख पागल कर देता मन को।
मत कथा गढ़ो या चिल्लाओ,नूतन अनुरोध किये जाओ।
अनुरोधम शरणम् गच्छामि,भज ओशो शरणम् गच्छामि।
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ये पंक्तियाँ ओशो की है। मेरे मित्र नरेंद्र शर्मा ने मुझे दी। हम इनको जन जन पहुँचाने से अपने आप को नहीं रोक सके। उम्मीद है ओशो के अनुयायी इसे अन्यथा नहीं लेंगे।

Friday, October 22, 2010

छोड़ गया वह साथ

जब जब
जिस जिस को

रखना चाहा
अपने
दिल के पास,
तब तब
अकेला रहा
छोड़ गया
वह साथ।

Wednesday, October 20, 2010

संत,सैनिक,विद्वान् कहाँ से आयेंगे !




श्रीगंगानगर-- जोधपुर के राधाकृष्ण महाराज यहाँ आये तो नानी बाई का मायरा सुनाने थे। परन्तु इसके साथ साथ उन्होंने वो कह दिया जिसकी ओर अभी तक शायद ही किसी का ध्यान गया हो। राधाकृष्ण ने "हम दो हमारे दो" नारे पर बहुत अधिक क्षोभ प्रकट किया। उन्होंने मायरा सुनने आये नर नारियों की मार्फ़त देश से ये प्रश्न किया कि अगर ऐसा ही रहा तो हिन्दूस्तान में साधू,सैनिक और विद्वान् कहाँ से आयेंगे? अपने एक ही बेटे को कौन से माता पिता साधू या सैनिक बनना चाहेंगे। राधाकृष्ण के शब्दों में--हम दो हमारे दो और कोई आये तो धक्के दो। पति पत्नी और दो बच्चे, माता पिता से भी कुछ लेना देना नहीं। उनका कहना था कि हम बहुसंख्यक नहीं अल्पसंख्यक हो रहे हैं।लेकिन कोई इस बारे में सोचने को तैयार नहीं। उनके अनुसार परिवार नियोजन की नीति सबसे ख़राब नीति है।

राधाकृष्ण ने कहा कि नारी स्वतंत्रता की बातें बहुत होती हैं। बड़े बड़े सम्मलेन होते है। किन्तु कपड़ों के अलावा नारी की स्वतंत्रता कहीं दिखाई नहीं देती। एकता,स्वतंत्रता के नाम पर नारी को प्रदर्शन की वस्तु बना दिया गया है। घर में देवरानी-जेठानी एक नहीं होती। उन्होंने घूंघट को सौन्दर्य का संकोच बताया। उनका कहना था कि दायरे में रहने से कद बढ़ता है। आज कल पता ही नहीं लगता कि सास कौनसी है बहु कौनसी। उन्होंने कहा कि घर की बहू जेठ को देख कर घूंघट करती और जेठ उसको देख दूर से निकल जाता। ये था कायदा। इस से दोनों का कद बढ़ता। इसके बाद वे कहने लगे मैं कितना भी कहूँ रहना तो आपने वैसा ही है। राधाकृष्ण ने खेती के लिए बैल को सबसे उपयोगी बताया। उनका कहना था कि बैल से जुताई करने से खेत उपजाऊ होते हैं। उन्होंने अपने मायरे के दौरान प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग ना करने का सन्देश दिया। राधाकृष्ण ने कहा कि कथा में आना तभी सार्थक होता है जब कोई उसे समझे,सीखे और माने। उन्होंने ने कहा कि रसोई में जो कुछ बनता है वह सब को मिलना चाहिए। परोसने में भेद भाव हो तो अन्नपूर्णा का अपराधी बन जाता है परोसने वाला। राधाकृष्ण ने यह सब किसी न किसी प्रसंग के समय कहा। हालाँकि कई बार उनकी बात विनोद के अंदाज में थी ,किन्तु निरर्थक नहीं। कथा कहने का उनका अंदाज जितना अनूठा है उतना ही निराला है उनका नृत्य। कथा के बाद जब नर नारी घरों को लौटने की जल्दी में होते हैं तब शुरू होता है उनका नाच। उनकी लम्बी छोटी से लेकर उनके पैरों का ऐसा नृत्य कि कोई भी कुछ क्षण के लिए अपने आप को भूल जाये। भक्ति भाव का नृत्य कैसा होता है उनसे सीखा जा सकता है। उनसे मुलाकात करने से पहले उनका नृत्य देखा होता तो ये जरुर पूछता कि महाराज आपने नृत्य किस से सीखा?

सहज,सरल और आडम्बर से दूर राधाकृष्ण की कथा में भी यह साबित हो गया कि मां के आँचल के अलावा सब जगह सब बराबर नहीं होते। इसका अहसास आयोजन से जुड़े व्यक्तियों को उन्होंने कई बार करवाया मगर भीड़ देखकर बोराए वे लोग बार बार वही करते रहे जो राधाकृष्ण महाराज को पसंद नहीं आ रहा था। उन्होंने कथा आरम्भ होने के कुछ मिनट बाद उनसे कहा, चलो आपके नए कुर्ते देख लिए बहुत अच्छे हैं, अब गैलरी से हट जाओ, जहाँ हो वहीँ बैठ जाओ। बाद में मंच पर चढ़ते हुए इनको कई बार रोका। नीचे उतारा। एक कार्यकर्त्ता को तो यहाँ तक कह दिया कि जब मैंने मायरे के लिए सामान ना लेने के लिए कह दिया था तो क्यों इकट्ठा कर रहे हो, वापिस करो। एक महिला को उन्होंने आवाज देकर उसका सामान वापिस किया। उन्होंने इशारों इशारों में कार्यकर्ताओं से विशिष्टता न दिखाने को कहा, संकेत दिया। इसके बावजूद कोई खास असर देखने को नहीं मिला। आयोजन जबरदस्त था। पुरुषो की संख्या नारियों से एक चौथाई रही। ये आश्चर्यजनक था कि महिलाओं ने कथा के दौरान आपस में बात चीत नहीं की। सबका ध्यान व्यास गद्दी की ओर ही रहा।
कृपा शंकर शर्मा "अचूक" की लाइन हैं --मंजिले हैं कहाँ यह पता कुछ नहीं,सिर्फ आदी हुए लोग रफ़्तार के। जिंदगी एक पल में संभाल जाएगी, गर समझ लें सलीके जो व्यवहार के। ---
गोविंद गोयल

Tuesday, October 19, 2010

मुलाकात राधा कृष्ण जी से




शायर मजबूर की पंक्तियाँ हैं--"सीधे आये थे मेरी जां, औन्धे जाना, कुछ घड़ी दीदार और कर लूँ।" उन्होंने ये संभव तय किसी प्रेम करने वाले के लिए लिखी हों। हम तो इनको "नानी बाई रो मायरो "सुनाने आये राधा कृष्ण महाराज के साथ जोड़ रहे हैं। श्रीगंगानगर में पहली बार मायरा हो रहा है। छोटे बड़े कथा वाचक महंगी गाड़ियों में आते हैं या उनको लाना पड़ता है। परन्तु राधाकृष्ण जी तो खुद ही पैसेंजर गाड़ी से यहाँ पहुँच गए, बिना किसी आडम्बर और दिखावे के।नगर भर में लगे पोस्टर,होर्डिंग में क्यूट से दिखने वाले महाराज जी से मिलने की इच्छा हुई। बिना किसी मध्यस्थ के उनसे मिला,बात की। वे केवल २७ साल के अविवाहित युवक हैं। वे कहते हैं कि शादी की इच्छा नहीं है, अगर ठाकुर जी की मर्जी हुई तो बात अलग है। उनका मानना है कि अगर बचपन में ही सत्संग मिल जाये तो देश की किशोर और युवा पीढ़ी पथभ्रष्ट नहीं हो सकती। महाराज जी जोधपुर के हैं और इनके पिता अनाज का कारोबार करते हैं। जिसमे इनका छोटा भाई सहयोग करता है। तीन बहिन हैं जो अपने अपने ससुराल में सुखी हैं। राधाकृष्ण कहते हैं कि घर में मैं महाराज नहीं होता। पुत्र और भाई होता हूँ। जैसे आप रहते हैं मैं भी वैसे ही रहता हूँ। कथा में माता-पिता आये हों और वे व्यास गद्दी पर आकर आपकी चरण वंदना करें तो ! ऐसा नहीं होता। मैं उनको प्रणाम करके कथा शुरू करता हूँ। फिर भी ऐसा हो तो वे उनके भाव हैं। मेरे भाव तो यहीं हैं कि ऐसा ना करें। उन्होंने बताया, स्कूल कॉलेज की शिक्षा तो कोई खास नहीं है। साधू संतों के श्रीमुख से जो सुना वही सुनाता हूँ। एक पुस्तक भी लिखी है। श्रीमदभागवत और मायरा करते हुए सालों बीत गए। पहली बार तीन व्यक्तियों के सामने कथा की। अब यह संख्या हजारों में होती है।

महाराज जी ने कहा कि नानी बाई कोई काल्पनिक पात्र नहीं है। यह सच्ची कथा है। इसे आम बोल चाल की भाषा में सुनाता हूँ तो सबके मन में बस जाती है, रस और भाव आते हैं। कथा में कोई चुटकुले,टोटके किसी प्रसंग को समझाने के लिए इस्तेमाल हों तो ठीक। केवल हंसाने के लिए हो तो अच्छा नहीं माना जाता।

राधाकृष्ण ने कहा कि मैं तो एक आम आदमी ही बना रहना चाहता हूँ। विशिष्ट नहीं बनना मुझे। विशिष्ट होने के बाद कई झंझट गले पड़ जाते हैं। राधाकृष्ण गौड़ ब्राहम्ण परिवार से हैं। खानदान में इनके अलावा कोई और इस लाइन में नहीं है। घर के पास मंदिर था, वहां जाया करता था। मन कृष्ण में ऐसा लगा कि बस इसी में राम गया। वे कहते हैं , यह मेरा व्यवसाय नहीं सेवा है। कथा करने का कुछ भी नहीं लिया जाता। अगर कोई देता भी है तो वह जन और गाय की सेवा में लगा देते हैं। मुलाकात के लिए उन्होंने काफी लम्बा समय दिया मगर उनका मोबाइल फोन इसमें से कुछ भाग ले गया। उनकी फोन पर बात चीत से ऐसा लगा कि अप्रैल तक उनके सभी दिन बुक हैं। कहीं श्रीमदभागवत है कहीं नानी बाई का मायरा। जोधपुर में २१-२२ अक्टूबर को कोई बड़ा कार्यकर्म करने की योजना भी है। राधाकृष्ण पहली बार श्रीगंगानगर आये हैं। उनका कहना था कि श्रीगंगानगर में मायरा करने में आनंद ही आनंद होगा ऐसा पहले दिन की भीड़ से लगता है। नर नारी कथा को भाव से सुनने के लिए आये थे। बातें बहुत थी। मगर यहाँ इतना काफी है। रमा सिंह की लाइन है--मैं तुझमे ऐसी रमी, ज्यों चन्दन में तीर, तेरे-मेरे बीच में, खुशबू की जंजीर। किसी कवि की दो लाइन महाराज जी के लिए--" शख्स तो मामूली सा था, दुनिया जेब में थी, हाथ में पैसा न था। ----गोविंद गोयल

Monday, October 18, 2010

हमारे यहाँ तो राम राज है, आपके!


ना जी, ऐसी बात नहीं है, हमारे पास जिला मुख्यालय पर एसपी से लेकर थानों में लांगरी तक है। प्रशासनिक अमले में पटवारी से डीएम तक,सब एक से बढ़कर एक। एसपी ऐसा जेंटलमैन कि जितनी तारीफ की जाये उतनी कम है। विनम्र,धार्मिक विचारों का सीधा -साधा एसपी। डीएम भी कमाल का मिला है हमारे जिले को। अपने सरकारी काम के अलावा बच्चों को उनके करियर के लिए गाइड करता है। कोई आम आदमी उसके दर पर आकर वापिस ना लौट जाये इसके लिए वे खुले में सबसे मिलते हैं, ऑफिस से बाहर, बरामदे में। फिर समस्या क्या है? समस्या सुमस्या कुछ नहीं है। इस इलाके के अनेक नेता कई सरकारों में मंत्री .......... । ये एसपी-डीएम के बीच मंत्री....... । टोका टाकी मत कर पहले पूरी बात सुन। जो नेता मंत्री हुए उन्होंने कभी सरकारी या प्राइवेट वाहन पर अपने मंत्रालय का नाम नहीं लिखवाया।

तो इसमें क्या बात है। ऐसा तो कोई किसी राज्य में नहीं करता। गलत, बिलकुल गलत। हमारे यहाँ तो कोई भी ऐसा कर सकता है। श्रीगंगानगर में कई प्राइवेट वाहन हैं जिस पर लाल प्लेट लगाकर मंत्रालयों के नाम लिखे हुए हैं। कई वाहनों पर लिखा है "इस्पात मंत्रालय", इस्पात मिनिस्टरी। कई बार तो इनमे से एक वाहन पर लाल बत्ती भी लगी होती है। दो कारों पर वित्त मंत्रालय लिखा हुआ है। ये दोनों कारें बैंक से सम्बंधित हैं। इनको कोई पुलिस वाला नहीं रोकता। मंत्री आने पर पुलिस को सूचना होती है। दोनों मंत्रालय केंद्र के हैं। हैरानी इस बात की है कि किसी ने इनको आज तक नहीं रोका,टोका। ये बोर्डर वाला जिला है। प्रेस लिखे वाहनों में कारोबारी माल ढोया जाता है। जिनका कपडे प्रेस करने का काम तक भी नहीं वे भी प्रेस लिखे वाहनों का प्रयोग करते हैं। पत्रकारों ने एक साथ इस बारे में एसपी को बताया था।

आधी रात के बाद सड़कों पर पुलिस की गश्त नहीं आवारा लड़कों की मटरगश्ती होती है। शराब के नशे में ये लोग हुड़दंग मचाते हैं। एसपी साहेब कोई शिकायत नहीं करेगा। किसकी हिम्मत है जो इनसे पंगा ले। छोटी छोटी चोरी वाले तो थानों तक पहुँचते ही नहीं। क्या होगा, कुछ भी तो नहीं।

डीएम ने अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में कब्जों के खिलाफ कार्यवाही तुरंत करने की बात कही थी। उन्होंने अपनी बात पूरी की। सड़कों पर सुबह शाम लगने वाली फल सब्जी की रेहड़ियों को हटवा दिया। बेचारे गरीब लोग थे। सड़कों,सरकारी जमीन पर मकान दुकान बनाने का सिलसिला जारी है। हर इलाके में अंडर ग्राउंड बन रहे है। शहर को खोखला किया जा रहा है। प्रकृति ने एक झटका दिया तो नगर गुजरात बन जायेगा। मगर हम किसी को कुछ नहीं कहेंगे। इतने डीएम आये किसी ने किसी को कुछ नहीं कहा, हम क्यों कहें। यही हाल छोटे अफसरों का है। आम आदमी को झटके देने में कोई अफसर चूक नहीं करता। मिडिया में वाह वाही होती है। बड़े को सब सलाम बजाते हैं। क्योंकि इनकी बेगारें भी तो यही पूरी करते हैं। कोई रेहड़ी वाला किसी अफसर को क्या ओब्लाईज कर सकता है

चलो बहुत हो गया। कल ही तो लंकापति के कुल को समाप्त कर राम राज्य की स्थापना की है। जब राम राज हो तो फिर किस को किस बात का डर। सब एक समान है। सब कोई सब काम करने को स्वतंत्र है। इसलिए एक कवि की दो लाइन पढो-" पुलिस पकड़ कर ले गई,सिर्फ उसी को साथ, आग बुझाने में जले जिसके दोनों हाथ।" एक एसएमएस -- भिखारी मंदिर के बाहर भीख मांगता है और सेठ मंदिर के अंदर।

Sunday, October 17, 2010

घर में हुआ दशहरा पूजन


बुराई पर अच्छाई की जीत की ख़ुशी में हर साल आज के दिन दशहरा मनाया जाता है। इस दिन घर में इसकी पूजा अर्चना के बाद भोजन लेने की परम्परा है। सुबह गृहलक्ष्मी गाय के गोबर से दशहरे का प्रतीक मनाती है। उसके सामने दो टोकनी भी गोबर की बनाई जाती है। पूजा के बाद इनको दाल चावल का भोग अर्पित किया जाता है। दोनों टोकनी में भी दाल चावल भरे जाते हैं। शायद यह घर में अन्न के भंडार भरें रहे इस कामना से किया जाता है। हमने भी आज अभी दशहरा पूजन कर घर में सुख शांति,समृद्धि की प्रार्थना इश्वर से की।

राम राज को आयेंगे

---- चुटकी----

वो रावण
भी नहीं रहा,
ये भी
मारे जायेंगे,
तू उदास
मत हो
रे मना
राम राज
को आयेंगें।

पत्रकार साथियों को शोक

श्रीगंगानगर से प्रकाशित दैनिक प्रशांत ज्योति के प्रधान संपादक श्री ओ पी बंसल की माता श्रीमती अंगूरी देवी का निधन हो गया। वे ८२ साल की थी।

श्रीगंगानगर के एक और पत्रकार श्री संजय सेठी की माता श्रीमती माया देवी का भी इसी रात को निधन हो गया। उनके परिवार ने उनकी मृत देह मेडिकल कॉलेज को दान कर दी।

दोनों आत्माओं को नमन कर परिवार को यह शोक सहन करने की प्रार्थना इश्वर से करते हैं। नारायण नारायण।

Friday, October 15, 2010

दुर्गा माता की महाआरती




श्रीगंगानगर के दुर्गा मंदिर में आज रात को अष्टमी के पर देवी दुर्गा की महाआरती की गई। एक साथ कई सौ बत्तियां प्रज्जवलित कर यह आरती हुई। मंदिर के कई दशकों पुराने पुजारी श्याम सुन्दर ने आरती की शुरुआत की। उसके बाद उसको उनके बेटे ऋषि कुमार ने संपन्न किया। आरती के समय बहुत बड़ी संख्या में धर्म परायण नर नारी,बच्चे मौजूद थे। दुर्गा मंदिर देवी माँ के जयकारों से गूंज रहा था। आरती के बाद प्रसाद का वितरण हुआ। अनेकानेक नर नारियों ने देवी माँ को चुनरी,सुहाग का सामान अर्पित किया।

ऑफिस का उद्घाटन,डांडिया की धूम














श्री आत्म वल्लभ जैन गर्ल्स कॉलेज के छात्रा संघ के ऑफिस का उद्घाटन पीएनबी के मंडल प्रमुख ए के डोकानिया ने किया। संघ के पदाधिकारियों का कॉलेज की प्रबंध समिति, स्टाफ से परिचय करवाया गया। इस अवसर पर डांडिया का शानदार,जानदार और दमदार कार्यक्रम पेश किया गया। उसी मौके के कुछ फोटो।



Thursday, October 14, 2010

ख़बरें ऑफ दी रिकॉर्ड

ख़बरें वही नहीं होती जो हमारी नजरों को दिखाई दें। हालाँकि सब लोग खबर पढतें हैं, देखतें हैं और सुनते हैं। मगर बहुत सी खबरें बड़े बड़े लोगों के चेहरों, हाव-भाव और उनके अंदाज से भी निकल कर आती हैं। कई बार खबर के अन्दर भी खबर होती है। कुछ ऐसी ही खबरों का ज़िक्र आज यहाँ करने की कोशिश करते हैं।
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राजस्थान में पंचायत विभाग को बहुत ही ताकतवर बना दिया गया है। पांच विभाग और उसके सुपुर्द हो गए हैं। जो विभाग पंचायत की झोली में डाले गए हैं उनके मंत्रियों का वजन कम होना स्वाभाविक है। शिक्षा मंत्री भंवर लाल मेघवाल की मनमर्जी सब जानते हैं। मुख्यमंत्री क्या उनके तबादलों के कारनामे तो प्रधानमंत्री तक पहुँच गए हैं। [ऐसा एक मंत्री ने मुझे बताया था।] कई मंत्री आपस में उलझे रहते हैं। मतलब की मंत्री परिषद् में सब ठीक नहीं कहा जा सकता। इसलिए इसमें फेरबदल होना संभव है। कब होगा इसके लिए कोई डेट निश्चित नहीं की जा सकती। इस प्रकार की "घटनाएँ" कभी भी हो सकती हैं। जिले के एक मात्र मंत्री गुरमीत सिंह कुनर बने रहेंगे। उनका विभाग बदल सकता है।वैसे वो बड़ा विभाग ना लेना चाहे तो अलग बात है। उनके पास अभी जो विभाग है वह असल में तो मार्केटिंग बोर्ड है। उसको मंत्रालय बना दिया गया है। उसमे से भी सड़कों का काम अब सार्वजनिक निर्माण विभाग को दे दिया जिस से वह और छोटा हो गया। चलो इंतजार करते हैं जादूगर के जादू का।
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अभी कुछ दिन पहले अग्रवाल समाज की शोभायात्रा का आयोजन हुआ। श्रीगंगानगर के इतिहास में अग्रवाल समाज के लोग इतनी बड़ी संख्या में एक साथ कभी सड़कों पर नहीं आये। इस आयोजन के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का दौर आरम्भ है। इस बात की चर्चा होना स्वाभाविक है कि विकास डब्ल्यू एस पी के बी डी अग्रवाल विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। उनकी सहानुभूति बीजेपी के साथ है। बताते हैं कि उनकी बीजेपी नेता वसुंधरा राजे सिंधिया से भी मुलाकात हुई है। श्री अग्रवाल श्रीमती राजे को श्रीगंगानगर लाने की योजना बना रहे हैं। अभी तक तो यहाँ के विधायक राधेश्याम गंगानगर को श्रीमती राजे के निकट माना जाता रहा है। अब ये नए समीकरण राधेश्याम की नींद उड़ाने के लिए काफी हैं। हालाँकि राधेश्याम गंगानगर इलाके के ऐसे राजनेता हैं जो कुछ भी कर सकने में संभव हैं। लेकिन संघ से उनकी पटरी नहीं बैठ रही। दूसरा सालों से वसुंधरा जी के आस पास रहने वाले नेता ये कब सहन करने लगे कि कल बीजेपी में आया राधेश्याम उनसे आगे निकल जाये। चुनाव में अभी तीन साल है। यहाँ की राजनीति कई रंग बदलेगी ऐसा आभास होने लगा है।
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अग्रवाल समाज की शोभा यात्रा के समय विधायक राधेश्याम गंगानगर ने महाराजा अग्रसेन जी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उनको नमन किया। यह एक सामान्य बात है। जनप्रतिनिधि ऐसा करते ही हैं। अग्रवाल समाज के एक व्यक्ति, जो यहाँ अधिकारी हैं ने एतराज जताया। उन्होंने शोभा यात्रा के साथ चल रहे अग्रबंधुओं से कहा कि वे अरोड़ा समाज के राधेश्याम को उस वाहन पर मत चढ़ने दें जहाँ अग्रसेन महाराज की फोटो रखी है। यह अधिकारी वही हैं जो राधेश्याम के विधायक बनने बाद उनसे मिलने को आतुर था। अपने एक कर्मचारी की मार्फ़त जो सहायक के रूप में विधायक के साथ था। नरेश गोयल नामक इस अधिकारी ने अपनी एक किताब का विमोचन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से करवाया। हैरानी की बात ये कि उसी किताब का विमोचन उससे पहले इन्होने श्रीगंगानगर में एक समारोह में करवा लिया था।

Wednesday, October 13, 2010

जीवन पथ सख्त


निगाहें फेर
लेता है
जब वक्त,
जीवन पथ
हो
जाता है
कुछ सख्त ।

Sunday, October 10, 2010

१० रावण और १०/१०/१०







चंडीगढ़ के सेक्टर 30 में महाराजा अग्रसेन जयन्ती के अवसर पर रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया जिसमें सेक्टर 17 परेड ग्राउंड में रावण का मंचन करने वाले कलाकारो ने भी रक्त दान किया। दस रावण रक्तदान करने 10 बजकर 10 मिनट पर पहुंचे। सौ साल में एक बार आने वाले इस पल ये रावण भी दुनिया को मानवता का संदेश दे रहे थे। सभी फोटो-रविंद्र भाटिया ।
फोटो और ये लाइन भास्कर डोट कॉम से साभार। उद्देश्य सबको रक्तदान के लिए प्रेरित करना। उम्मीद है भास्कर परिवार इसको इसी भावना से देखेगा।

Wednesday, October 6, 2010

प्रतिभाशाली अग्रवाल होंगे सम्मानित

अग्रवाल सेवा समिति ,श्रीगंगानगर
विशेष आग्रह व सूचना
राजस्थानवासी अग्रवाल समाज के सभी छात्र -छात्राओं को सूचित किया जाता है कि अग्रवाल सेवा समिति द्वारा राजस्थान के समस्त अग्रवाल समाज के विद्यार्थियों को सम्मानित करने के लिए निम्नलिखित योजना है।
१-भारतीय प्रशासनिक सेवाओं आईएएस/आईपीएस तथा आईआरएस में वर्ष २०१० तथा इसके बाद के वर्षों में चयनित परीक्षार्थियों को समिति गोल्ड मैडल से सम्मानित करेगी।
२-राजस्थान प्रशासनिक सेवाओं आरएएस/आरपीएस तथा आरजेएस में वर्ष २०१० में तथा इसके बाद के वर्षों में चयनित परीक्षार्थियों को समिति सिल्वर मैडल से सम्मानित करेगी।
३-अखिल भारतीय स्तर पर [ सीबीएसई/ एनसीईआरटी] तथा राजस्थान राज्य माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर द्वारा सैकेंडरी तथा सीनियर सैकेंडरी परीक्षा में प्रथम स्थान पाने वाले विद्यार्थी को समिति गोल्ड मैडल तथा दूसरा स्थान पाने वाले को सिल्वर मैडल दिया जायेगा।
४-अखिल भारतीय स्तर पर आईआईएम ,आईआईटी ,एआईआईएमएस ,सीपीएमटी तथा राजस्थान में राज्य स्तर पर पीएमटी की प्रवेश परीक्षा तथा सी ए फ़ाइनल परीक्षा में प्रथम स्थान पाने वाले परीक्षार्थियों को गोल्ड मैडल, दूसरा स्थान पाने वाले विद्यार्थी को सिल्वर मैडल दिया जायेगा।
५-पिछले दो साल में एमबीए ,सीए किये तथा कैम्पस भर्ती के इच्छुक विद्यार्थी जो बैंकों में सर्विस के इच्छुक हो को योग्यता के आधार पर सर्विस दिलवाने का प्रयास किया जायेगा। कृपया सभी पात्र अपना बायोडाटा ई मेल या डाक द्वारा निम्न पते पर भेजे।
बी डी अग्रवाल [मुख्य सरंक्षक ]
अग्रवाल सेवा समिति ,विकास दाल मिल परिसर
नई धान मंडी गेट नंबर २,श्रीगंगानगर ३३५००१
फोन ०९४१३९३४६४४ , ई मेल- beedeeagarwal@gmail.com
निवेदक
बी डी अग्रवाल,प्रबंध निदेशक
विकास डब्ल्यू एस पी लिमिटेड
श्रीगंगानगर
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विकास डब्ल्यू एस पी के प्रबंध निदेशक श्री बी डी अग्रवाल राजस्थान का तो पता नहीं श्रीगंगानगर में पहले ऐसे आदमी है जिन्होंने अपने समाज के प्रतिभाशाली बच्चों के लिए प्रोत्साहन योजना शुरू की है। कुछ दिन पहले इन्होने समिति के माध्यम से कई लाख रूपये की सहायता अग्रवाल समाज के उन विद्यार्थियों के लिए दी जो अपनी फीस जमा नहीं करवा पाए थे। श्री अग्रवाल ने कल प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि यह सब हमारे जाने के बाद भी चलता रहेगा, इस प्रकार की व्यवस्था की जा रही है।

Tuesday, October 5, 2010

नेताओं के चंगुल में मास्टर/मास्टरनी


मास्टर/मास्टरनी को किसी ज़माने में बेचारा कहा जाता था। तब से अब तक नहरों में बहुत पानी बह गया। अब मास्टर/मास्टरनी बेचारे नहीं रहे। बढ़िया तनख्वाह है। अच्छा घर चलता है। खुद सरकारी हैं लेकिन बच्चे निजी स्कूल्स में पढ़ते हैं। क्योंकि वहां व्यवस्था ठीक नहीं रहती। जब मास्टर जी अपने लाडलों को इन स्कूलों में नहीं पढ़ाएंगे तो कोई और क्यों ये रिस्क ले। लिहाजा सरकारी स्कूल्स में मास्टर/मास्टरनी को पढ़ाने के अलावा और काम करने का खूब समय मिल जाता है। अब कुछ मुश्किल होने लगा है। मास्टरजी को सत्तारूढ़ पार्टी के छोटे बढे नेताओं की चौखट पर हाजिरी देनी पड़ती है। किसी समय इनके तबादलों से नेताओं का कोई लेना देना नहीं था। अब तो विधायक या विधानसभा का चुनाव हुए नेता के परवाने के बिना तबादला नहीं होता। जिन मास्टर/ मास्टरनियों की राजनीतिक गलियारों में पहुँच थी उन्होंने अपने तबादले अपनों मनपसंद जगह करवा लिए। बाकियों को फंसा दिया। ऐसे लोग राजनीतिज्ञों के यहाँ धोक लगा रहे हैं। किसी की धोक सफल रहती है किसी की नहीं। चढ़ावे के बिना तो कोई मन्नत पूरी ही नहीं होती। राजनीति की दखल जितनी शिक्षा में है उतनी तो किसी में भी नहीं है। प्रदेश में हजारों हजार मास्टर/मास्टरनी है। इतना चढ़ावा है कि गिनती करने के लिए मशीन लगानी पड़े। नीचे से ऊपर तक सब जानते हैं। कहाँ कहाँ कौन कौन ये सब करवा रहा है, ना तो सरकार की नजर से छिपा है न अधिकारिओं की आँखों से। लेकिन होगा कुछ नहीं। जिसकी अप्रोच है वह मजे में है। जिसको तबादल के रास्ते पता है, उसको कोई टेंशन नहीं है। बाकी सब निराश होकर ऐसे बन्दों की तलाश कर रहे है जो उनका काम करवा सके, दाम लेकर। राजस्थान सरकार का एक मंत्री खुद कहता है कि पैसे देकर करवा लो मेरे बसकी बात नहीं है। इस से अधिक लिखना कोई मायने नहीं रखता। तबादले शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए नहीं होते। ये तो कमाई का जरिया है। जो मास्टर/मास्टरनी एक से दो घंटे का सफ़र करके अपने स्कूल में पहुंचेगा वह क्या तो पढ़ा पायेगा क्या देश की शिक्षा के बारे में चिंतन मनन करेगा। ऐसा तो है नहीं की जिसको जिस गाँव में लगाया है वह वहीँ रहेगा। पता नहीं सरकार कब इन मास्टर/मास्टरनियों को अपने नेताओं के चंगुल से मुक्त करेगी।

Saturday, October 2, 2010

तुझे पराई क्या पड़ी

मसला तो हिन्दूस्तान का है और पेट में दर्द हो रहा है पाकिस्तान के। इस बारे में तो यही कहना ठीक रहेगा।

ओरों के घर
के झगड़े
ए रावण
ना छेड़ तू,
तुझे पराई
क्या पड़ी
अपनी
नीबेड़ तू।

Thursday, September 30, 2010

ekta ke kya mayane


aisi foto ka kya matlab.
aisi ekta ke kya mayane.

फैसला या न्याय

---- चुटकी----

देश की जनता
ये तो बताए,
इसको फैसला
कहेंगे
या न्याय।

Friday, September 24, 2010

आयोजनों की भरमार


श्रीगंगानगर में आजकल धार्मिक आयोजनों की बहुत अधिक धूम है। किसी मंदिर में हनुमान चालीसा के पाठ हो रहे हैं तो किसी मैदान में क्रिस्चन समाज का उत्सव। नगर में २५-२६ सितम्बर को प्रभु दुःख निवारण समागम का आयोजन होगा। २८ की सुबह बाबा रामदेव जी लोगों को योग की शिक्षा देंगे। इन दोनों कार्यकर्मों के लिए बड़े स्तर पर प्रचार किया जा रहा है। दोनों आयोजनों पर लाखों रुपया खर्च होगा। बाबा रामदेव के लिए तो यहाँ के डीएम भी भीड़ के प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने स्कूल संचालकों को विद्यार्थियों को योग शिविर में ले जाने के निर्देश दिए हैं। कई सौ लोग इन आयोजनों को सफल बनाने के लिए भागदौड़ कर रहे हैं।

नगर के लोगों को इस बात से कोई लेना देना नहीं कि हमारे यहाँ किसी भी रेल फाटक पर पुल नहीं है। हम लोग इस बात की भी परवाह नहीं करते कि श्रीगंगानगर में सिवरेज नहीं है। बरसात का पानी शहर की हालत बिगाड़ देता है। सड़कें ख़राब हैंइस बारे में सरकार सोचे , हम क्यों अपना दिमाग ख़राब करें। शहर ऐसा मस्त हुआ है जैसे इन आयोजनों के बाद नगर में कोई समस्या रहेगी ही नहीं।

Wednesday, September 22, 2010

गणपति विसर्जन










श्रीगंगानगर में गोविंद गोयल के परिवार में आज गणेश उत्सव का समापन समारोह पूर्ण हुआ। गणपति की विसर्जन यात्रा में राजस्थान के कृषि विपणन मंत्री गुरमीत सिंह कुनर,पूर्व विधायक महेंद्र सिंह बराड़ ,गोयल परिवार के सदस्य, मित्र गण शामिल हुए। विसर्जन से पूर्व गणपति के प्रतिमा के समक्ष भजन कीर्तन हुआ। गोविंद गोयल के परिवार में यह चौथा गणेश उत्सव था।

Wednesday, September 15, 2010

दसवीं वर्षगांठ

"सांध्य बोर्डर टाइम्स" अख़बार का दसवां वर्षगांठ समारोह १८ सितम्बर को गौरव पैलेस में शाम को ७.११ बजे शुरू होगा। इस अख़बार के प्रधान संपादक रवि चमड़िया हैं।

सीमावर्ती का विमोचन

"तेवर वही,सोच नई" की पंच लाइन के साथ "सीमावर्ती"पाक्षिक पत्रिका का विमोचन समारोह आज दोपहर को देव पैलेस में हुआ। मंच पर बुजुर्ग सुदर्शन कुमार मल्होत्रा, दैनिक लोकसम्मत के प्रधान संपादक शिव स्वामी,बिरला सनलाइफ के ब्रांच मैनेजर लव भूषण गुप्ता,सीओ सिटी हरी राम गहलोत,पुलिस इंस्पेक्टर नन्द लाल सैनी,सीमावर्ती के प्रधान संपादक संजीव भाटिया, हांसल समाचार के प्रधान संपादक अशोक चुघ और एक स्कूल संचालक मौजूद था। समारोह में मीडिया कर्मियों की उपस्थिति नाम मात्र की थी। समय से काफी देर बाद शुरू हुआ समारोह फीका था। संचालन सुधीर मिश्रा ने किया। सीमावर्ती किसी ज़माने में नगर का जाना माना दैनिक समाचार पत्र हुआ करता था। प्रदुमन कुमार भाटिया इसके संस्थापक संपादक थे।लम्बे समय से इसका प्रकाशन बंद था। अब उनके बेटे संजीव भाटिया ने दैनिक अख़बार की जगह पाक्षिक पत्रिका आरम्भ की है। संजीव नगर के अनेक अख़बारों में कम कर चुके हैं। नई पत्रिका की टीम को शुभकामनायें।

Monday, September 13, 2010

घर आये गणपति बाबा

फिर से आये हमारे द्वार
गणपति बाबा जी,
आरती उतारूँ बारम्बार
गणपति बाबा जी।
आप आये तो रौनक लागी
रोज मनाये त्यौहार
गणपति बाबा जी।
हम तो बालक भोले भाले
कैसे कर सत्कार
गणपति बाबा जी।


Wednesday, September 8, 2010

शब्दों को गणपति में बदलने में माहिर

श्रीगंगानगर में विजय गौड़ एक ऐसा कलाकार है जो किसी भी शब्द को गणपति का रूप प्रदान कर देता है। आप हस्ताक्षर करो विजय उसको गणपति बना देगा। एक हस्ताक्षर के अनेक गणपति।

Friday, September 3, 2010

गोरी राधा सांवरा श्याम

हर शाम किसी के लिए सुहानी नहीं होती
हर चाहत के पीछे कोई कहानी नहीं होती,
कुछ तो असर होता ही है मोहब्बत में
वरना गोरी राधा यूँ सांवरे श्याम की दीवानी नहीं होती।
कोटा से मैडम संतोष बैरवा द्वारा भेजा गया एस एम एस।

Thursday, August 26, 2010

आम आदमी से मुलाकात

संवेदनशील कवि की दो लाइन से बात आरम्भ करते हैं-प्रश्नोत्तर चलते रहे,जीवन में चिरकाल,विक्रम मेरी जिन्दगी,वक्त बना वेताल। ये पंक्तियां देश के आम आदमी को समर्पित हैं। उस आदमी को जिसे मैं तब से जानता हूँ जब से अखबार पढना शुरू किया था। आम आदमी!मतलब,जो किसी को नहीं जानता हो और कोई खास आदमी उसको ना पहचानता हो। अपने काम से काम रखने को मजबूर। ना साधो से लेना न माधो का देना। पीपली लाइव के नत्था से भी गया गुजरा। इसी फिल्म के उस लोकल पत्रकार से भी गया बीता। जिसकी मरने के बाद भी पहचान नहीं होती। देश के न्यूज़ चैनल्स में तो यह लापता है, हाँ कभी कभार प्रिंट मीडिया के किसी कौने में जरुर इसके बारे में पढ़ने को मिल जाता है। इन दिनों ऐसे ही एक आम आदमी से साक्षात मिलने का मौका मिला। जिस पर एक कवि की ये लाइन एक दाम फिट है--एक जाए तो दूसरी मुश्किल आए तुरंत,ख़त्म नहीं होता यहां इस कतार का अंत।
आम आदमी ने अपना कर्म करके कुछ रकम जोड़ी, पांच सात तोला सोना बनाया। सोचा, घर जाऊंगा ले जाऊंगा। परिवार के काम आयेंगे। बहिन की शादी में परेशानी कम होगी। घर जाने से पहले ही चोर इस माल को ले उड़ा। थाने में गया, परन्तु मुकदमा कौन दर्ज करे? चलो किसी तरह हो गया तो चोर के बारे में बताने,उसे पकड़ने की जिम्मेदारी भी इसी की। घर में इतना सामान क्यों रखा? इस बारे में जो सुनना पड़ा वह अलग से। मोहल्ले वालों ने बता दिया। इस बेचारे ने समझा दिया। पुलिस पुलिस है, समझे समझे,ना समझे ना समझे। बेचारा आम आदमी क्या कर सकता है। जिस पर शक है वह मौज में है। इसी मौज में वह वहां चला जायेगा जिस प्रदेश का वह रहने वाला है। आम आदमी अब भी कुछ नहीं कर पा रहा बाद में भी कुछ नहीं कर पायेगा।
पेट काट कर सरकारी कालोनी में भूखंड लिया। सोचा मकान बना लूँ। बैंक आम आदमी के लिए होता है। यह सोचकर वह वहां चला गया उधार लेने। किसी ने एक लाख उधार पर साढ़े तीन हजार मांगे किसी ने तीन हजार। कोई जानता नहीं था इसीलिए किसी ने उसकी सूनी नहीं, मानी नहीं। यह रकम देनी पड़ी। लेकिन मकान का निर्माण इतनी आसानी से तो शुरू नहीं हो सकता ऐसे आदमी नक्शा बनना पड़ेगा। वह पास होगा। तब कहीं जाकर आदमी मकान की नीव भर सकता है। सरकारी कालोनी थी। कब्ज़ा पत्र लिया था। वह गुम हो गया नक्शा पास करवाने की जो फाइल ऑफिस में थी वह ऑफिस वालों से इधर उधर हो गई। सरकारी,गैर सरकारी जितनी फीस लगती है उससे डबल फीस देनी पड़ी। अब यह क्या जाने की किस काम के कितने दाम लगते हैं। कई दिन तक घर ऑफिस के बीच परेड होती रही, काम नहीं हुआ। होता भी कैसे आम आदमी जो ठहरा। उस पर आवाज ऐसी मरी मरी जैसे कोई जबरदस्ती बुलवा रहा हो। यह तो उसकी कई दिनों की कहानी है। टटोले तो अन्दर और भी दर्द हो सकते हैं। मगर हमें क्या पड़ी है। ऐसे आदमी का पक्ष लेने की जिसको कोई नहीं जानता। उस से जान पहचान करके भी क्या फायदा! देश में पता नहीं ऐसे कितने प्राणी है जो इस प्रकार से अपने दिन कटते हैं। इसके लिए तो यही कहना पड़ेगा--कैसे तय कर पायेगा, वो राहें दुशवार,लिए सफ़र के वास्ते, जिसने पाँव उधार। नारायण नारायण।