श्रीगंगानगर। 'हाथ' में लाठी लेकर बुजुर्ग मतदाता वोट डालने आयेगा। 'हाथ' में ही कानून का डंडा ले पुलिस वाला पोलिंग बूथ पर कानून की पालना करवायेगा। 'हाथ' में 'हाथ' डाल युवा मतदाता इतराते हुए पहली बार पोलिंग बूथ आयेंगे। पोता-पोती दादा-दादी का 'हाथ' पकड़ कर उन्हें वोट डलवाने के लिए लायेंगे। मतदाताओं के 'हाथ' में पर्ची होगी। 'हाथ' से 'हाथ' मिलाए जाएंगे। पोलिंग कर्मचारी अपने 'हाथ' से मतदाता के 'हाथ' की अंगुली पर स्याही लगाएंगे । अधिकारी 'हाथ' से ही जरूरी लिखा-पढ़ी करेगा। वोटर अपने 'हाथ' की किसी अंगुली से अपना मनपसंद बटन दबाएंगे ।अधिकारी 'हाथ' के इशारे से भीड़ को लाइन में लगने के लिए कहेगा। 'हाथ' के इशारे से ही किसी को बुलाएगा , बाहर भेजेगा। ईवीएम में कोई झंझट होगा तो उसे ''हाथ' ही ठीक करेगा। पोलिंग बूथ पर शाम को अंधेरा होने पर 'हाथ' ही बिजली का बटन दबायेगा । उडऩदस्ते 'हाथ' हिला-हिला कर भीड़ को नियंत्रित करेंगे। प्रत्याशी व उसके समर्थक 'हाथ' जोड़ते हुए पोलिंग बूथ पर आयेंगे,जाएंगे । 'हाथ' जोड़कर लोग एक-दूसरे को नमस्कार करेंगे । पोलिंग बूथ पर ही 'हाथ' से कोई बुजुर्ग उस समय किसी को आशीर्वाद देता हुआ दिख जायेगा , जब कोई उन्हें प्रणाम करेगा। लड़ाई कहीं हुई तो मारपीट 'हाथ' से होगी। बचाव भी 'हाथ' से किया जायेगा.। पुलिस किसी को पकड़ेगी तो भी 'हाथ' से । पोलिंग बूथ के अंदर-बाहर जिधर भी देखों 'हाथ' ही 'हाथ' दिखाई देगा। यही 'हाथ' एक बड़ी पार्टी का चुनाव निशान है। जबकि चुनाव आयोग कहता है कि मतदाता स्लिप वितरण करने वाले स्थल या पोलिंग स्टेशन के 200 मीटर की परिधि में चुनाव चिन्ह या उसका कोई प्रतीक चिन्ह नहीं ले जाया जा सकता। तो चुनाव आयोग का यह कानून इस 'हाथ' को कैसे रोकेगा। हर मतदाता दो-दो 'हाथ' लेकर पोलिंग बूथ आएगा । चुनाव कार्य से जुड़े अधिकारी-कर्मचारी किसी प्रत्याशी की तरफदारी नहीं कर सकते , मगर 'हाथ' के सामने वे भी बेबस हैं।'हाथ' के साथ ड्यूटी करना उनकी मजबूरी है। कोई अपना हाथ कहां छोड़कर आवे। हाथ छोड़कर आवें तो फिर सब के सब हथ कटे । बुजुर्ग की लाठी पकडऩे वाला हाथ नहीं। सिपाही के पास कानून का डंडा पकडऩे वाला हाथ नहीं। चलो मतदाता तो पर्ची मुंह से पकड़ कर ले आएगा लेकिन बाकी ऐसे कितने ही काम हैं जो पोलिंग बूथ पर 'हाथ' बिना संभव नहीं। और कानून कहता है चूँकि हाथ पार्टी का चुनाव निशान है इसलिए उसे ले जाया नहीं जा सकता। कई बार किसी कानून की पालना करवाना प्रैक्टिकली संभव नहीं होता। यहां भी ऐसा ही है।'हाथ' कोई हाथी, कमल, बैट, सिलाई मशीन, सिलेंडर तो है नहीं जिनको ऑब्जर्वर रोक देंगे। पुलिस पकड़ लेगी। लेकिन इस 'हाथ' का क्या करोगे जो कांग्रेस का चुनाव निशान है। आज तक इस 'हाथ' को पोलिंग बूथ तक पहुंचने से कोई नहीं रोक पाया। ऐसी कोई जानकारी नहीं है कि किसी ने चुनाव आयोग या स्थानीय निर्वाचन अधिकारी के समक्ष इस बारे में कोई शिकायत या आपत्ति की हो। सालों साल से यह 'हाथ' चुनाव आयोग के कानून को इसी 'हाथ' से ठेंगा दिखा रहा है। किसी ने कोई आपत्ति नहीं की तो भविष्य में भी दिखाता ही रहेगा।
Saturday, November 30, 2013
इस 'हाथ' को कोई नहीं रोक सकता जनाब!
श्रीगंगानगर। 'हाथ' में लाठी लेकर बुजुर्ग मतदाता वोट डालने आयेगा। 'हाथ' में ही कानून का डंडा ले पुलिस वाला पोलिंग बूथ पर कानून की पालना करवायेगा। 'हाथ' में 'हाथ' डाल युवा मतदाता इतराते हुए पहली बार पोलिंग बूथ आयेंगे। पोता-पोती दादा-दादी का 'हाथ' पकड़ कर उन्हें वोट डलवाने के लिए लायेंगे। मतदाताओं के 'हाथ' में पर्ची होगी। 'हाथ' से 'हाथ' मिलाए जाएंगे। पोलिंग कर्मचारी अपने 'हाथ' से मतदाता के 'हाथ' की अंगुली पर स्याही लगाएंगे । अधिकारी 'हाथ' से ही जरूरी लिखा-पढ़ी करेगा। वोटर अपने 'हाथ' की किसी अंगुली से अपना मनपसंद बटन दबाएंगे ।अधिकारी 'हाथ' के इशारे से भीड़ को लाइन में लगने के लिए कहेगा। 'हाथ' के इशारे से ही किसी को बुलाएगा , बाहर भेजेगा। ईवीएम में कोई झंझट होगा तो उसे ''हाथ' ही ठीक करेगा। पोलिंग बूथ पर शाम को अंधेरा होने पर 'हाथ' ही बिजली का बटन दबायेगा । उडऩदस्ते 'हाथ' हिला-हिला कर भीड़ को नियंत्रित करेंगे। प्रत्याशी व उसके समर्थक 'हाथ' जोड़ते हुए पोलिंग बूथ पर आयेंगे,जाएंगे । 'हाथ' जोड़कर लोग एक-दूसरे को नमस्कार करेंगे । पोलिंग बूथ पर ही 'हाथ' से कोई बुजुर्ग उस समय किसी को आशीर्वाद देता हुआ दिख जायेगा , जब कोई उन्हें प्रणाम करेगा। लड़ाई कहीं हुई तो मारपीट 'हाथ' से होगी। बचाव भी 'हाथ' से किया जायेगा.। पुलिस किसी को पकड़ेगी तो भी 'हाथ' से । पोलिंग बूथ के अंदर-बाहर जिधर भी देखों 'हाथ' ही 'हाथ' दिखाई देगा। यही 'हाथ' एक बड़ी पार्टी का चुनाव निशान है। जबकि चुनाव आयोग कहता है कि मतदाता स्लिप वितरण करने वाले स्थल या पोलिंग स्टेशन के 200 मीटर की परिधि में चुनाव चिन्ह या उसका कोई प्रतीक चिन्ह नहीं ले जाया जा सकता। तो चुनाव आयोग का यह कानून इस 'हाथ' को कैसे रोकेगा। हर मतदाता दो-दो 'हाथ' लेकर पोलिंग बूथ आएगा । चुनाव कार्य से जुड़े अधिकारी-कर्मचारी किसी प्रत्याशी की तरफदारी नहीं कर सकते , मगर 'हाथ' के सामने वे भी बेबस हैं।'हाथ' के साथ ड्यूटी करना उनकी मजबूरी है। कोई अपना हाथ कहां छोड़कर आवे। हाथ छोड़कर आवें तो फिर सब के सब हथ कटे । बुजुर्ग की लाठी पकडऩे वाला हाथ नहीं। सिपाही के पास कानून का डंडा पकडऩे वाला हाथ नहीं। चलो मतदाता तो पर्ची मुंह से पकड़ कर ले आएगा लेकिन बाकी ऐसे कितने ही काम हैं जो पोलिंग बूथ पर 'हाथ' बिना संभव नहीं। और कानून कहता है चूँकि हाथ पार्टी का चुनाव निशान है इसलिए उसे ले जाया नहीं जा सकता। कई बार किसी कानून की पालना करवाना प्रैक्टिकली संभव नहीं होता। यहां भी ऐसा ही है।'हाथ' कोई हाथी, कमल, बैट, सिलाई मशीन, सिलेंडर तो है नहीं जिनको ऑब्जर्वर रोक देंगे। पुलिस पकड़ लेगी। लेकिन इस 'हाथ' का क्या करोगे जो कांग्रेस का चुनाव निशान है। आज तक इस 'हाथ' को पोलिंग बूथ तक पहुंचने से कोई नहीं रोक पाया। ऐसी कोई जानकारी नहीं है कि किसी ने चुनाव आयोग या स्थानीय निर्वाचन अधिकारी के समक्ष इस बारे में कोई शिकायत या आपत्ति की हो। सालों साल से यह 'हाथ' चुनाव आयोग के कानून को इसी 'हाथ' से ठेंगा दिखा रहा है। किसी ने कोई आपत्ति नहीं की तो भविष्य में भी दिखाता ही रहेगा।
Wednesday, November 13, 2013
Tuesday, November 12, 2013
कामिनी के बढ़ते समर्थन से जांदू खेमे की मुस्कान बढ़ी
श्रीगंगानगर-जैसे जैसे जमींदारा पार्टी प्रत्याशी कामिनी जिंदल के प्रति मतदाताओं का झुकाव बढ़ा है वैसे वैसे कांग्रेस प्रत्याशी जगदीश जांदू खेमे की मुस्कान बढ़ रही है.ये राजनीति है . इधर ऐसा भी होता है. कोई अचरज की बात नहीं है.कभी कभी किसी प्रत्याशी को मिले वोट से वह खुद जीते ना जीते लेकिन दूसरा,तीसरा जीत जाता है.ये कोई नई बात नहीं है.इसके बावजूद चुनाव पर पैनी नजर रखने वाले जगदीश जांदू को बहुत कमजोर उम्मीदवार क्यों मान रहें हैं,पता नहीं. या तो उनके पास आंकड़ों का विश्लेषण नहीं है या फिर वे सेठ जी के प्रभाव में आकर सही आंकलन कर नहीं पा रहे. उसका नाम जगदीश जांदू है. जो अब कांग्रेस का उम्मीदवार भी है. उस कांग्रेस का जिसका अपना एक वोट बैंक होता है. उस कांग्रेस का जिसने 2003 के चुनाव में अपने इतिहास की सबसे बड़ी हार झेल कर भी 31.87 प्रतिशत वोट लिए थे. तब कांग्रेस का प्रत्याशी 35922 वोट से हारा था. उस कांग्रेस का जिसे दमदार त्रिकोणीय मुकाबले में जीत मिलती है. श्रीगंगानगर सीट पर गैर कांग्रेस वोटों की संख्या कांग्रेस के वोटों से अधिक है. चूँकि वे किसी एक पार्टी से सबंधित नहीं है इसलिए जब जब इन वोटो का विभाजन हुआ कांग्रेस उम्मीदवार ने विजय प्राप्त की. गत कई चुनावों का विश्लेषण किया जाए तो यह तस्वीर साफ़ हो जाएगी. 2008 के चुनाव में कांग्रेस को 30 . 85 प्रतिशत और बीजेपी को 41 .05 प्रतिशत वोट मिले थे. बाकी 20 .59 प्रतिशत वोट मनिंदर सिंह मान और बीएसपी प्रत्याशी में बटें. बाकी गजेन्द्र भाटी और अन्य में. 1998 के चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला हुआ 94 . 91 प्रतिशत वोट तीन उम्मीदवारों में बटें. कांग्रेस 42 . 05 प्रतिशत वोट लेकर चुनाव जीत गई. 1993 में 96 .74 प्रतिशत वोट तीन उम्मीदवारों में विभाजित हुए. कांग्रेस उम्मीदवार 36 03 प्रतिशत वोट लेकर विजयी हो गया. 1990 के चुनाव में 94 . 80 प्रतिशत वोटों का बटवांरा दो उम्मीदवारों में हुआ. कांग्रेस 44 . 62 प्रतिशत वोट लेकर भी हार गई. ऐसा ही होता है इधर श्रीगंगानगर में. अब इस चुनाव में भी कामिनी जिंदल ने मुकाबला त्रिकोणीय बना कर 25 प्रतिशत से अधिक वोट लिए तो फिर कांग्रेस के जगदीश जांदू की जीत को कौन रोकेगा! उसके बाद इस सीट पर बीजेपी भी जाट नेता को ही टिकट देगी.सामान्य वर्ग का किस्सा समाप्त. अगर कामिनी ने यह चुनाव जीत कर इतिहास बदल दिया तो फिर जाट नेता को उम्मीदवार बनाने से पहले पार्टियां कई बार सोचेंगी. लेकिन ऐसा होता लगता नहीं. क्योंकि कामिनी के साथ लगे लोग भी मानते हैं कि कामिनी जीत तो नहीं सकती लेकिन वह टक्कर में है. टक्कर में तो 1993 और 1998 में निर्दलीय सुरेन्द्र सिंह राठौड़ भी रहे थे और बीजेपी के दिग्गज भैरों सिंह शेखावत भी. क्या हुआ! इनसे अधिक टक्कर में कोई रहा भी है श्रीगंगानगर के चुनाव में. अब कामिनी जिंदल इन दोनों नेताओं से अधिक बड़ी टक्कर दे तो फिर कोई बात बने. लेकिन जिन नेताओं के हाथ में उनकी कमान है वे राठौड़ और शेखावत से बड़ी टक्कर दे पाएंगे यह समय बतायेगा. दो लाइन पढ़ो-मेरे सपनों में आना हर रोज सताना,इक बार हम चले आए तो बुरा मान गए.
Tuesday, November 5, 2013
अपने बूते चुनाव जीतने का गुरु मन्त्र दिया या नहीं
श्रीगंगानगर-गुरु गर्व से फूला नहीं समाता जब उसका शिष्य उससे आगे बढ़ता है. गुरु का सीना अपने शिष्य की उपलब्धि सुनकर चौड़ा हो जाता है. शिष्य से पराजित होकर भी गुरु अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता है. परन्तु ये रामायण-महाभारत काल की बात हैं. जब शिष्य गुरु की आज्ञा से दिन की शुरुआत किया करते थे. शयन के लिए भी अनुमति लेकर जाते. काश! राधेश्याम गंगानगर और जगदीश जांदू उस समय हुए होते. हुए भी होंगे तो हमको क्या पता. यह वर्त्तमान है,जो ना तो भूतकाल होता है ना भविष्यकाल होने की क्षमता इसमें होती है. आज तो राधेश्याम गंगानगर उस घड़ी को कोस रहे होंगे जब उन्होंने सीधे साधे जगदीश जांदू को अंगुली पकड़ कर राजनीति के पथ पर चलना सिखाया था. 1999 में बाऊ जी ही थे कांग्रेस के सर्वे सर्वा. बाऊ जी ने ही जांदू को मास्टर भगवान दास के वार्ड से टिकट दी. भगवान दास घर घर भागे दौड़े. जांदू जी जीत गए. चेयरमेन के दो दावेदार थे. एक बाउ जी के शिष्य परम आदरणीय,प्रातः स्मरणीय जगदीश जांदू दूसरे किशन मील. बाऊ जी का आशीर्वाद शिष्य के साथ था. जांदू जी चेयरमेन बन गए. हालाँकि तब अनेक लोगों ने बाऊ जी को इशारा किया था कि ऐसा मत करो. जांदू को आगे मत बढ़ाओ. लेकिन बाऊ जी जांदू जी के सीधे पन पर फ़िदा थे. किसकी सुनते!जगदीश जांदू ने भी बड़ी श्रद्धा,विश्वास और निष्ठां से शिष्यत्व का निर्वहन किया. सुनह-शाम हाजिरी में जाना.गुरु की हर जरुरत पूरी करना उनका धर्म हो गया था. बाऊ जी धन्य और गदगद, ऐसा शिष्य पाकर. कितना मान करता था. कितना सम्मान देता था. [ सम्मान है सामान नहीं,कृपया गौर करें] घर जगमग करने लगा जांदू के शिष्यत्व से. अविश्वास प्रस्ताव आया. तब भी बाऊ जी से कहा गया कि इस शिष्य से छुटकारा पा लो. उसकी नजर आपकी गद्दी पर है. ना जी! बाऊ जी पर तो शिष्य द्वारा दिया जा रहा सम्मान सर चढ़ कर बोल रहा था.फिर उसका साथ दे गुरुत्व की रक्षा की. समय किसके रोके रुकता है. बाऊ जी को बीजेपी में जाना पड़ा. इसके बावजूद गुरु-शिष्य के सम्बन्धों में कोई बदलाव नहीं आया. कलयुग में तो बाप बेटे के रिश्ते भी रिसने लगते हैं लेकिन क्या मजाल कि गुरु-शिष्य बदले हों. शिष्य ने 2008 के विधानसभा चुनाव में खूब गुरु दक्षिणा दी. दिल खोलकर गुरु का नाम जपा. सबको पता था. भारतीय संस्कृति में शिष्य धर्म निभाने से कौन रोकता! गुरु की भक्ति में शिष्य ऐसा बावरा हुआ कि अपनी पार्टी तक की परवाह नहीं की. गुरु को गद्दी मिल गई. 2009 में सभापति चुनाव आया. गुरु ने शिष्य को फिर आशीर्वाद दिया. तब भी बाऊ जी को समझाया गया. मत करो ऐसा. बाऊ जी का हाथ पकड़ा गया लेकिन गुरु तो शिष्य की श्रद्धा से अभीभूत था. पर हाय रे! शिष्य प्रेम! बाऊ जी ने किसी की एक ना सुनी. शिष्य जीत गया. इसी जीत ने शिष्य को गुरु के सामने ला खड़ा किया. बाऊ जी ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उनके चरणों में बैठने वाला शिष्य जांदू ही उनको ललकारेगा. गद्दी छीनने की कोशिश करेगा. शिष्य जांदू की नजर तो गुरु की गद्दी से कभी हटी ही नहीं.शिष्य के सारे कर्म केवल और केवल इसी गद्दी के लिए रहे हैं. अब देखना ये कि गुरु ने अपने शिष्य को अपने बूते चुनाव जीतने का गुरुमंत्र भी दिया है या नहीं.
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