Monday, April 30, 2012
सरकार जैसी दिखने वाली यह सरकार है भी या नहीं
Friday, April 27, 2012
गंगा सिंह जी के बाद अंबरीष कुमार जी का नगर भ्रमण
Sunday, April 22, 2012
आज लोग मल्टी क्लर्ड हो गए हैं-एसपी रूपीन्द्र सिंह
Wednesday, April 18, 2012
सबके अपने अपने दुख: अपने अपने सुख:
श्रीगंगानगर-हम, हम क्या गली का हर बच्चा डॉ गुरदास जी से बहुत डरता था। उनको आते देख बच्चे कंचे खेलना भूल जाते। कंचों की चिंता की बजाए कान खिंचाई की फिक्र अधिक होती। वे कोई डॉन या आज की पुलिस नहीं थे। वे ना तो परिवार के सदस्य थे ना रिश्ते में कुछ लगते थे। डॉ साहब तो गजसिंहपुर में हमारे पड़ौसी थे। उनको किसी भी बच्चे को डांटने का अधिकार था। किसकी मजाल जो घर जाकर डॉ साहब से खाई डांट का जिक्र भी करता...जिक्र किया तो फिर और डांट। 35-40 साल पहले इसी प्रकार का अधिकार सभी पड़ौसियों के पास होता था।
घरों की छतों पर कपड़े सुखाती ,मसालों,अनाज के धूप लगाती हुई औरतें पड़ौसी महिलाओं से बात कर लिया करती थी। नई दुल्हन इसी प्रकार पड़ौस की बहुओं से इसी माध्यम से जान पहचान करती। बात बात में नए रिश्ते बन जाते। किसी यहां जंवाई आता तो गली की कई लड़कियां जीजा-जीजा कहती हुई पहुँच जाती ठिठोली करने। किशोर वय तक हम उम्र लड़के लड़कियां खेलते रहते गली में,एक दूसरे के घर। रिश्तों की सुचिता,प्रेम और भाईचारे की महक से गली मौहल्ला महका करता था। एक का सुख सभी का होकर कई गुणा बढ़ जाता और एक का दुख दर्द बंट कर कम हो जाता।
अपनेपन की वो मिठास,स्नेह और विश्वास अब कहां है। क्या मजाल की आप पड़ौसी के किसी बच्चे को उसकी किसी गलत हरकत पर डांट सको! अब तो अपने बच्चों को डांटने की हिम्मत नहीं होती। अपने बच्चे की गलती पर भी मन मसोस कर रहना पड़ता है पड़ौसी के बच्चे की तरफ तो देखने का रिवाज ही नहीं रहा। घर की बहू अब पड़ौसी की बहू को आते जाते देख सकती है। घर की छत पर उससे मिलना असंभव है। छतों की दीवारें बहुत बड़ी हो गई और हमारी सोच छोटी...हमारे कद से भी छोटी। आज दूसरे की छत की ओर झाँकने में भी शंका आती है...कोई देख ना ले...कोई हुआ तो क्या सोचेगा?जंवाई के आने पर गली की लड़कियों का आना अब नामुमकिन है। गली में लड़के लड़कियों का साथ खेलना......तौबा तौबा...क्या बात करते हो। अब तो बात करते ही बतंगड़ बनते ,बनाते देर नहीं लगती। वातावरण दूषित हो गया किसी को दोष देने का क्या मतलब।
यह कोई किसी एक परिवार,गली,मौहल्ले या शहर की बात नहीं है। सभी स्थानों पर सभी के साथ ऐसा ही होता है। पता नहीं हवा में कुछ ऐसा घुल गया या खान पान का असर है। या फिर प्रकृति की कोई नई लीला। कहते हैं अब गन्ने में पहले जैसी मिठास नहीं रही और ना सब्जियों में वो ताजगी भरा,तृप्त कर देने वाला स्वाद।लेकिन क्या हमारे आपसी रिश्तों में हैं ये सब....जब रिश्तों में नहीं तो हम फिर इनमें क्यों खोजते हैं।
Wednesday, April 11, 2012
टूट गए हैं रिश्ते
टूट गए हैं रिश्ते
किस्से खतम हुए
तुम क्या जानो बात
कितने जतन हुए।
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गली मोहल्ले प्यारे प्यारे
पूछ रहें हैं मिल के सारे
रहते थे जो साथ
वो क्यों बिछड़ गए।
संधू एंड कंपनी और गौड़ अब राजनीति में साथ साथ
श्रीगंगानगर-राजनीति में किसी से किसी भी प्रकार का संबंध कभी स्थाई नहीं हो सकता। यहां नए रिश्ते बनते भी देर नहीं लगती और पुराने बिगड़ते भी। एक से अनेक हो जाते हैं और अनेक से एक। कोई अधिक समय नहीं हुआ जब पृथ्वीपाल सिंह संधू एंड कंपनी के रिश्ते “सेठ” से बहुत प्रगाढ़ थे। पारिवारिक कहे जाते थे। दिल्ली जयपुर के राजनीतिक गलियारों में एक साथ जाना। राजनीति में गोटी फिट हो गई। किस्मत ने साथ दिया। सेठ न्यास के अध्यक्ष बन गए। संधू एंड कंपनी की बल्ले बल्ले हो गई। पर ये समय है...एक समान कहां,कब रहता है। पलट गया समय... अध्यक्ष बने सेठ ने संधू के बंदों के अहम पर चोट की...मतलब इनके तालाब की मछली इनको ही आँख दिखाने लगी। सेठ और संधू एंड कंपनी का याराना टूट गया। रिश्ते बिगड़ गए। संबंध समाप्त। रास्ते अलग अलग। इसके बावजूद संधू एंड कंपनी के दिलो दिमाग पर सेठ के साथ रिश्ते की मिठास और उसका रस आज भी है। लेकिन ये राजनीति हैं...यहां स्वार्थ,अहम जब टकराते हैं तो फिर रसगुल्ले जैसी मिठास और रस वाले रिश्तों की परवाह नहीं की जाती। नए रिश्ते तलाश किए जाते हैं। यह तलाश राजकुमार गौड़ पर जाकर समाप्त हो गई। इसमें कोई पर्दा नहीं है कि संधू एंड कंपनी ने विधानसभा चुनाव में गौड़ साहब की कितनी और किस प्रकार मदद की थे। परंतु यही तो राजनीति है...दोनों को एक दूसरे की आज जरूरत है। गौड़ साहब को थोड़ी आशंका है कि सेठ उनका प्रतिद्वंद्वी ना बन जाए। इसलिए उसको कमजोर रखना जरूरी है....संधू एंड कंपनी उसको आँख दिखाने का परिणाम दिखाना चाहती हैं। दोनों की मंजिल एक थी इसलिए ये दोनों नजदीक आ गए।श्री गौड़ का श्रीगंगानगर विधानसभा क्षेत्र में अपना महत्व है। मुख्यमंत्री से उनके रिश्ते भी बढ़िया है। संधू एंड कंपनी की दिल्ली जयपुर में अच्छी लाइजनिंग है। अब गौड़ और संधू गुट फिलहाल एक है। यह एकता केवल सेठ जी को निपटाने तक ही है या दूर तक दिखाई देगी ये कहना मुश्किल है। क्योंकि यह ऊपर लिखा जा चुका है कि राजनीति में रिश्ते बनते बिगड़ते रहते हैं। वैसे श्रीगंगानगर में ये दोनों गुट ही अधिक प्रभावी हैं। किन्तु फिलहाल दोनों को एक दूसरे की जरूरत है। चाहे दिखावे के लिए ही सही।