---- चुटकी----
बुजुर्ग माँ-बाप
के साथ चलते
हुए शरमाते हैं हम,
अपने कुत्ते को
सुबह शाम
घुमाते हैं हम।
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अधिकारों के लिए
लगा देंगें
अपने घर में ही आग,
अपने कर्त्तव्यों को
मगर भूल जाते हैं हम।
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कश्मीर से कन्याकुमारी तक
खंड खंड हो रहा है देश
फ़िर भी अनेकता में एकता
के नारे लगाते हैं हम।
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सबको पता है कि
बिल्कुल अकेले हैं हम,
हम, अपने आप को
फ़िर भी बतातें हैं हम।
----गोविन्द गोयल
7 comments:
कडुआ सच्।बेहतरीन पोस्ट ।
सबको पता है कि
बिल्कुल अकेले हैं हम,
हम, अपने आप को
फ़िर भी बतातें हैं हम।
" wah "
"kyun khud apne aap ko behalty hain hum, tanhaee mey khud se he bteeyatn hain hum.."
Regards
बुजुर्ग माँ-बाप
के साथ चलते
हुए शरमाते हैं हम,
अपने कुत्ते को
सुबह शाम
घुमाते हैं हम।
इस यथार्थ के रेखांकन के लिए आभारी हूँ.........!
इस सचाई को भोगता भारत वानप्रस्थ की याद दिलाता है ,
तब और अब में फर्क ये है नारद जी की अब इन्हीं सब कारणों से
वृद्धाश्रम की ज़रूरत हुई है !!
अच्छी रचना के लिए बधाइयां
बुजुर्ग माँ-बाप
के साथ चलते
हुए शरमाते हैं हम,
अपने कुत्ते को
सुबह शाम
घुमाते हैं हम।
--एकदम सटीक निशाना, मुनिवर!! बहुत उम्दा!
कटु यथार्थ का सुंदर सटीक बिम्ब खींचा आपने.बहुत सही कहा..
Naradmuni ji puri duniya ka bhraman karte hain aap. Kabhi mere blog par padharen. Narayan Narayan
guptasandhya.blogspot.com
गोविन्द गोयल जी एक ऎसा कडवा सच जिसे हम जुठला कर शान से बेशर्मो की तरह से चलते है,खुद को महान कहते है.
धन्यवाद
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