ऐ ज़िन्दगी तू मेरे नाम से घबराती क्यूँ है
आके दरवाजे पे मेरे लौट जाती क्यूँ है
मैं भी एक इन्सान हूँ तुम्हारी इस दुनिया का
फ़िर तू मुझसे अपना दामन बचाती क्यूँ है।
ऐ ज़िन्दगी तू.........................
दो घड़ी पास बैठो पूछो हाल हमसे भी
ना जाने तू मेरी सूरत से डर जाती क्यूँ है
सताता है मुझे हर रोज हर इन्सान दुनिया का
तू भी इतनी बेरुखी से कहर ढाती क्यूँ है
ऐ ज़िन्दगी....................
जो दुश्मन हैं बाग़ की हर खिलती हुई कली के
वहां जाकर तू अपनी खुश्बू फैलाती क्यूँ है
हर वक्त सामने रहे तेरी सूरत मेरी आंखों के
उसके बीच में तू अपना दामन लाती क्यूँ है।
ऐ ज़िन्दगी तू .........................
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