Sunday, November 23, 2008

मैं देरी से नहीं उठा

ना, मैं देरी से नहीं उठा
वक्त ने मुझे हमेशा की तरह
सूरज की पहली किरण से भी पहले
आकर जगा दिया था,
और मैं उठ भी गया था
मगर मैंने इंसानियत को
जब सोते हुए देखा,
पीड़ित,बेबस,लाचार,गरीब इंसानों को
अपने अपने दर्द से रोते बिलखते देखा,
नगर के इंसानों के परिवारों के
घरों को उजड़ते देखा
तो मैं जाग नहीं सका
मुझे गहरी नींद आ गई,
क्योंकि जब तक इंसानियत
नहीं जागती, मेरे जैसा अकेला
इंसान जग कर क्या करता
और इसलिए मैं सो गया
अपना मुहं ढांप कर
सदा के लिए, सदा के लिए।

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