मैं जानता था कि मेरे चारों ओर
स्वार्थी व मौका परस्त लोगों का जमघट है
मुझ ये भी मालूम था कि
ये सब अपने स्वार्थ के लिए
मेरे खून का कतरा कतरा
पीने से भी नहीं हिचकिचायेंगें
मगर मैंने ये नहीं सोचा था कि
यह सब इतनी जल्दी हो जाएगा
मुझे बिस्तर पर पड़ा देख
ये लोग यह सोचते हुए
मुझसे दूर चले जायेंगें कि
इसमे अब खून रहा ही कहाँ है
जो हमें पीने को मिलेगा
और मैं अकेला बिस्तर पर पड़ा
अपनी टूटी फूटी छत को घूरने लगा
यह सोचते हुए कि कहीं
यह उन लोगो की तरह
साथ छोड़ने के स्थान पर मुझे
अपने आँचल में सदा के लिए
ना छिपा ले
जिससे कि मेरा रहा सहा
वजूद ही ख़त्म हो जाए।
---गोविन्द गोयल
6 comments:
जिससे कि मेरा रहा सहा
वजूद ही ख़त्म हो जाए।
" narayan narayan.... aaj itnee dukh bhree..."
regards
आज का सच, सभी नही लेकिन बहुत सी ओलाद बिलकुल आप की कविता पर सटीक बेठती है.
धन्यवाद
सुंदर रचना. जीवन बहुत ही कठिन और दुखदायी होता है.
bahut badhiya sir. badhayi
इस भयानक काली रात के बाद सुनहरी सुबह कब आएगी ?
आभार ...
मेरे ब्लॉग पर सभी का स्वागत है...
bahut gahree baat kah dee aap ne.
Post a Comment