Sunday, May 31, 2009
एसपी साहब ! आप तो सुरक्षित हैं ना
Saturday, May 30, 2009
राहुल गाँधी हैं सबके सीइओ
Thursday, May 28, 2009
हीरा और लोहे का अन्तर
इसी के संदर्भ में है आज की पोस्ट। जिन परिवारों की लड़कियां प्लस टू में होती हैं। उनके सामने कुछ नई परेशानी आने लगी है। होता यूँ है कि कोई भी कॉलेज वाले स्कूल से जाकर लड़कियों के घर के पते,फ़ोन नम्बर ले आता है। स्कुल वाले भी अपने स्वार्थ के चलते अपने स्कूल की लड़कियों के पते उनको सौंप देतें हैं। उसके बाद घरों में अलग अलग कॉलेज से कोई ना कोई आता रहता है। कभी कोई स्टाफ आएगा कभी फ़ोन और कभी पत्र। यह सब होता है शिक्षा व्यवसाय में गला काट प्रतिस्पर्धा ले कारण। स्कूल वालों को कोई अधिकार नहीं है कि वह लड़कियों के पते,उनके घरों के फोन नम्बर इस प्रकार से सार्वजनिक करें। ये तो सरासर अभिभावकों से धोका है। ऐसे तो ये स्कूल लड़कियों की फोटो भी किसी को सौंपने में देर नहीं लगायेंगें। जबकि स्कूल वालों की जिम्मेदारी तो लड़कियों के प्रति अधिक होनी चाहिए। अगर इस प्रकार से स्कूल, छात्राओं की निजी सूचना हर किसी को देते रहे तो अभिवावक कभी भी मुश्किल में पड़ सकते हैं। आख़िर लड़कियां हीरे की तरह हैं, जिनकी सुरक्षा और देखभाल उसी के अनुरूप होती है।
नारदमुनि ग़लत है क्या? अगर नहीं तो फ़िर करो आप भी हस्ताक्षर।
Wednesday, May 27, 2009
राहुल गाँधी के नाम पत्र
Monday, May 25, 2009
लेफ्ट को कर दिया राइट
वोटरों ने इस बार
लेफ्ट को कर दिया राइट,
ऐसे में ममता का फयूचर
हो गया, कुछ ब्राईट,
पासवान की दुकान
उन्होंने कर दी बंद,
लालू की लालटेन में
कम कर दी लाईट,
मुलायम हो गए
कुछ अधिक सॉफ्ट,
माया को कर दिया
बिल्कुल ही टाईट।
Sunday, May 24, 2009
अधिकारियों का माफिया ग्रुप
काफी लोग कहेंगें कि आपने संपादक और अधिकारियों के नाम क्यों नहीं लिखे? इसका जवाब है , हम भी एक आम आदमी हैं, इसलिए इनसे डरते हैं, डरतें हैं।
Saturday, May 23, 2009
बारूद के ढेर पर श्रीगंगानगर
Monday, May 18, 2009
बैंक के पन्द्रह लाख रूपये लूटे
श्रीगंगानगर में दंगा
Sunday, May 17, 2009
Saturday, May 16, 2009
सच्ची मुच्ची पाँच साल बाद नजर आए
आज प्रार्थना करने का दिन है
आज प्रार्थना का दिन है। कहते हैं कि प्रार्थना में बहुत अधिक शक्ति होती है। प्रार्थना की जरुरत इसलिए है क्योंकि आज यह तय होने वाला है कि अब भारत की जनता को कौन हांकेगा। चूँकि हमने परिवार सहित ईश्वर के सामने प्रार्थना करनी थी इसलिए जल्दी उठ गया। हालाँकि बच्चों , बीबी ने काफी शोर मचाया, सोने दो, हमें क्या पड़ी है,पड़ोसियों के यहाँ से भी खर्राटों की आवाज आ रहा है। सारा देश ही सो रहा है इसलिए तुम भी मुह पर कपड़ा ढक कर सो जाओ। लेकिन हमारे पर तो देशभक्ति के भूत सवार हो गया। इसलिए न सोये न सोने दिया।स्नान करके सब के सब लग गए ईश्वर से प्रार्थना करने। हे! ईश्वर तुम अगर हो तो इतना ध्यान रखना कि हमारा देश वह चलाये जिसको घर चलाना आता हो। अब हमारे हाथ में तो कुछ है नही। हमने तो हमारे हाथ कटवा लिए। अब तो हम यही चाहते हैं कि हमें किसी मुर्ख के हाथों मार ना खानी पड़े। हमने मार तो खानी है लेकिन कोई समझदार मारेगा तो लगेगा कि हमारी शान बन रही है। हे ! ईश्वर कोई ऐसा ना आ जाए जो मारे भी और रोने भी ना दे। रोने से मन हल्का हो जाता है बस, दर्द थोड़े ना जाता है। ईश्वर जी आप तो जानी जान हो, सबका भूत,वर्तमान और भविष्य जानते हो। यह भी निश्चित रूप से जानते होंगें कि वह कौन होगा जो देश को एक बंदी की भांति चलाएगा। जो केवल अपनी गद्दी बचाने के साम,दाम,दंड और भेद सबका इस्तेमाल करना जानता होगा। किंतु उसको यह नहीं पता होगा कि देश और देशवासियों का भला कैसे होता है। खैर,ईश्वर जी जो आपने सोच रखा है उसको बदलने की ताकत तो किसी में नहीं है। लेकिन इतनी प्रार्थना करने का हक़ तो है कि कोई ऐसा हमारी छाती पर बिठाना जो हमें कम से कम तकलीफ दे।
आप जानते हैं कि आज देश भर में वोटों की गिनती होनी है। और कोई काम तो आज,कल,परसों होगा नहीं। यह गिनती तय करेगी कि देश में किसकी सरकार होगी। अरे! मैं भी किसको बताने लगा। आप ही तो करने वाले हैं यह आप की ही तो लीला है। हे! कृपानिधान आपके कलयुगी नारदमुनि और उसके परिवार की प्रार्थना पर समय मिले तो गौर करना। क्योंकि आज आपके यहाँ तो बड़े बड़े नेताओं की भीड़ लगी होगी। इस भीड़ के पीछे देख लेना आपका नारदमुनि कहीं दुबका खड़ा होगा। मन में यही प्रार्थना लिए कि हे नारायण इस देश पर दया करना। इस पर कोई आंच ना आए। इस देश के लोग हमेशा मुस्कुराते रहें, हर हाल में हर वक्त। बाकी आपकी मर्जी। बड़े बड़े लोगों के बीच में पता नहीं मेरी प्रार्थना आप तक पहुँचेगी भी या नहीं। हम तो कहते हैं सब के सब देश वासी आज प्रार्थना करें अपने अपने ईश्वर से।
Friday, May 15, 2009
श्रीगंगानगर का पारा चढा और चढा
Tuesday, May 12, 2009
राजनीति की फ्रैंडली फाइट समाप्त
अब तो सब के सब नेता अभिनेता बन कर एक दूसरे को रिझाने की कोशिश में लगे हैं। एक दूसरे के निकट आने के बहाने तलाश किए जा रहें हैं। प्रेमियों की तरह मिलने और बात करने के अवसर खोजे या खुजवाये जा रहें हैं। मीडिया भी इस काम में इनकी मदद करता दिखता है। पहला दूसरे से दूरी बनाये था, दूसरा तीसरे से । चौथा अकेला चलने के गीत गा रहा था। देखो वोटर का खेल खत्म हो गया। शुरू हो चुका है असली खेल। सत्ता को अपनी रखैल बनने का खेल, अपनी दासी,बांदी बनाने का खेल,कुर्सी को अपने या अपने परिवार में रखने का खेल। इन सबका एक ही नारा होगा, वही नारा जो शायद बचपन में सभी ने कहा या सुना होगा " हमें भी खिलाओ,वरना खेल भी मिटाओ"। सम्भव है कुछ लोग एक बार किसी के साथ सत्ता के खेल में शामिल हो जायें और बाद में अपना बल्ला और गेंद लेकर चलते बनें। खेल चल रहा है, देखना है कौन किसको खिलायेगा। हाँ इस खेल में देश की जनता का कोई रोल नहीं है। इस खेल से सबसे अधिक कोई प्रभावित होगा तो वह जनता ही है,किंतु विडम्बना देखो अब इस खेल में उसकी कोई भागीदारी नही है।
Sunday, May 10, 2009
आशीर्वाद के बाद माँ की भेंट
Saturday, May 9, 2009
फ़िर बेच देंगे अपना जमीर
नेताओं की तकदीर,
जैसे तैसे कुर्सी पाने की
कर रहें हैं तदबीर,
कुर्सी मिल जाए तो
एक बार फ़िर से
बेच देंगे अपना अपना जमीर।
Thursday, May 7, 2009
पप्पू भी नहीं बने, वोट भी नहीं डाला
मगजमारी के बाद मेरे पोलिंग बूथ के पीठासीन अधिकारी इस बात से सहमत हो गए कि आप किसी को वोट न देना चाहो तो न दो,हम रजिस्टर पर यह लिख देंगें कि आपने इन उम्मीदवारों में से किसी भी उम्मीदवार के पक्ष में वोट डालने से इंकार कर दिया। उन्होंने अपने सहयोगी से यह टिप्पणी रजिस्टर पर लिखवाई" इनमे से किसी भी उम्मीदवार को वोट देने से इंकार कर दिया"। उसके बाद उन्होंने मेरे हस्ताक्षर करवाए और अपने ख़ुद के किए।ऐसा केवल मैंने नहीं किया। ऐसे वोटर कई हैं जिन्होंने इस प्रकार से अपनी नापसंदगी जाहिर की। एक बूथ पर तो एक वकील के ऐसा करने पर कई और ऐसा की करने को अपने आप राजी हो गए। बेशक इस प्रकार से उम्मीदवारों को नापसंद करने वालों की संख्या दर्जन भर ही हो, मगर कहीं से शुरुआत तो है। शुरुआत होने के बाद ही कोई बात दूर तक जा पाती है।
बताओ तो ऐसा कौन है ?
Tuesday, May 5, 2009
जवाब कौन देगा ?
Saturday, May 2, 2009
"आर" वाले आगे बाकी मैदान से बाहर
हमारा तो यही कहना है कि जिन नेताओं के नाम में "र"[ आर] नहीं आता वे इस पद के लिए अपना समय ना ख़राब करें। ऐसे नेता किसी दूसरे मंत्रालय के लिए अपने आप को तैयार करें। ऐसे नेताओं को आगे आने दिया जाए जिनके नाम में कहीं ना कहीं "र" [ आर] अक्षर बैठा हुआ है। ये बात आज की नहीं है। १९८३ या १९८४ में मैंने एक लेख लोकल अखबार "सीमा संदेश" में लिखा था। जिसमे आर की बात कही थी। देखो कब तक चलता है ये "र" का चमत्कार। इसको संयोग कहें या टोटका, लेकिन अभी तक तो फिट है। अगर प्रधानमंत्री बनना है तो अपने नाम में कहीं ना कहीं "र"[आर] फिट करना ही पड़ेगा।