Thursday, November 27, 2008

कब तक सोये रहोगे, अब जाग जाओ

कभी अजमेर, कभी दिल्ली ,कभी जयपुर और अब मुंबई आतंक के साये में। घंटों चली मुठभेड़,प्रमुख अफसर मरे,विदेशी मरे, आम आदमी मरा। और हम हैं कि सो रहें हैं। देश में सांप्रदायिक सदभाव कम करने की कोशिश लगातार की जा रहीं हैं। आतंकवाद हमारी अर्थव्यवस्था को नेस्तनाबूद करने जा रहा है। हम घरों में बैठे अफ़सोस पर अफ़सोस जता रहें हैं। हमारी सरकार कुछ नहीं कर रही। नेता हिंदू मुस्लिम का नाम लेकर असली आतंकवाद को अनदेखा कर रहें हैं। इस देश में कोई ऐसा नहीं है जो उनसे इस बात का जवाब मांग सके कि यह सब क्यों और कब तक? पहली बार कोई यहाँ खेलनी आई विदेशी टीम दौरा अधुरा छोड़ कर वापिस जा रही है। शेयर बाज़ार बंद रखा गया। देश के कई महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव हो रहें हैं। अगले साल लोकसभा के चुनाव होने हैं। राजनीतिक दल एक दुसरे पर प्रहार कर रहें हैं। आतंकवाद चुनावी मुद्दा है,जिसके सहारे सब अपना वोट बैंक बढ़ाने में लगें हैं। इस मुद्दे पर बोलते तो सभी हैं लेकिन कोई भी करता कुछ नहीं। अगर हम सब इसी प्रकार सोते रहें तो आतंकवादियों के हौंसले बुलंद ही बुलंद होते चले जायेंगें। इसलिए बहुत हो चुका, बहुत सह चुके इस आतंकवाद को,अब हमें एक जुट होकर लडाई लड़नी होगी। शब्दों से नहीं उन्ही की तरह हथियारों से।कब तक सोते रहोगे अब तो जाग जाओ।
----स्वाति अग्रवाल

6 comments:

Manuj Mehta said...

मुंबई में जो कुछ हुआ उसके लिया बहुत दुखी हूँ. मन हल्का करने के लिए यहाँ चला आया हूँ.

आपकी रचना पढ़ी, रचना काफ़ी सशक्त है. मेरी बधाई स्वीकार करें.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

aise hi chalega yahan, mera bharat mahaan.

"अर्श" said...

मैं स्तभ हूँ और कुछ भी कहने के लायक नही हूँ,वीरों को जो शहीद हो गए मेरा ढेरो नमन, और उन सभी परिवारों का जिनका कोई ना कोई खोया है कल ,उनके लिए धैर्य और हिम्मत की बात करता हूँ ..

श्रुति अग्रवाल said...

मेरा मन कल रात दस बजे से ही बेहद व्यथित हूँ। मुझे लगता है अब हम सभी को एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी। पूरे तंत्र को झंझोड़कर कुंभकर्णी नींद से जगाना होगा....ताकि कोई भी घृणित व्यक्ति हमारे देश की अस्मिता पर अंगुली उठाने की हिमाकत न कर पाएँ।

राज भाटिय़ा said...

अब वक्त आ गया है हम सब को अपनी अपनी नींद से जागा होगा, वरना कल फ़िर से गुलामी की जंजीरे पहनानी होगी,इतना बडा भारत, ओर चंद गुण्डे हमे आंखे दिखाये, आओ इन की आंखे फ़ोडे.... जागॊ जागॊ ओर अपना देश बचाओ इन गुण्डे मवालियो से

samagam rangmandal said...

फिर बम फटे,
निकली राजनैतिक फायदो की आग,
प्रत्यारोपो का धुँआ,
फिर खूब बिकें अखबार,
नपुंसक शांती के चीथडे,
फिर हुआ साफ,
मीडिया की कमाई का रास्ता,
टीम इंग्लैण्ड लौटी अपने घर,
मिला विराम खेलो को,
नए तरीके से खेले जाएगे,
मिला विषय चाय के ठेलो को,
उपजी पुनः चिंता की रेखाएँ नेताओ की तोंदो पर,
फिर गिरी गाज,
वादो का ईसबगोल तलाशती चमचो की फोजो पर,
इसी दौरान बढा लिया लोकतंत्र ने अपना ईमान,
शांतीपूर्ण संपन्न हुआ मतदान,
निकल आए चमनप्राश के डिब्बे,
मूक लोग कंबलो में दुबके,
गजब ठंड है,अबके।।