Tuesday, November 11, 2008

तुम्हारी किताबों की किस्मत

मुझसे अच्छी है तुम्हारी
इन किताबों की किस्मत
जिन्हें तुम हर रोज़
अपने सीने से लगाती हो
मेरे बालों से कहीं अधिक
खुशनसीब है
तुम्हारी इन किताबों के पन्ने
जिन्हें तुम हर रोज़ बड़े
प्यार से सहलाती हो
मेरी रातों से भी हसीं हैं
तुम्हारी इन किताबों की रातें
जिन्हें तुम अपने पास सुलाती हो
इतनी खुशनसीबिया देखकर भी
तुम्हारी इन किताबों की
मेरी आँखे हर पल बार बार रोतीं हैं
क्योंकि हर साल तुम्हारे सीने से लगी
एक नई किताब होती है
वो पुरानी किताब पड़ी रहती है
एक तरफ़ आलमारी में 'गोविन्द" की तरह
इस उम्मीद के साथ कि
शायद एक फ़िर सीने से लगा लो
तुम इस पुरानी किताब को।




6 comments:

Anonymous said...

bahut khub

seema gupta said...

एक तरफ़ आलमारी में 'गोविन्द" की तरह
इस उम्मीद के साथ कि
शायद एक फ़िर सीने से लगा लो
तुम इस पुरानी किताब को।
" narayan narayan..... jaandar abhevyktee..."

Regards

विधुल्लता said...

aap sabkaa khayaal aur khabar rakhten hain yahi kyaa kam hai

विधुल्लता said...

aap sabkaa khayaal aur khabar rakhten hain yahi kyaa kam hai

Udan Tashtari said...

ये क्या भया मुनिवर!! आप तो ऐसे न थे!!

नारायण नारायण...कलयुगी नारद मुनि!

राज भाटिय़ा said...

नारयण नारयण नारद मुनि जी सुबह सुबह ही आज... राम राम, क्यो बचपन याद दिलवा रहे हो...अजी अब तो इस पुरानी किताब को बच्चे भी नही पढना चाहते.
धन्यवाद