दरवाजे पर खड़ी खड़ी
सजनी करे विचार
फाल्गुन कैसे गुजरेगा
जो नहीं आए भरतार।
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फाल्गुन में मादक लगे
जो ठंडी चले बयार,
बाट जोहती सजनी के
मन में उमड़े प्यार।
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साजन का मुख देख लूँ
तो ठंडा हो उन्माद,
बरसों हो गए मिले हुए
रह रह आवे याद।
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प्रेम का ऐसा बाण लगा
रिस रिस आवे घाव,
साजन मेरे परदेशी
बिखर गए सब चाव।
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हार सिंगार छूट गए
मन में रही ना उमंग
दिल पर लगती चोट है
बंद करो ये चंग।
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परदेशी बन भूल गया
सौतन हो गई माया,
पता नहीं कब आयेंगें
जर जर हो गई काया।
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माया बिन ना काम चले
ना प्रीत बिना संसार,
जी करता है उड़ जाऊँ,
छोड़ के ये घर बार।
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बेदर्दी साजन मेरा
चिठ्ठी ना कोई तार,
एक संदेशा नहीं आया
कैसे निभेगा प्यार।
----गोविन्द गोयल
5 comments:
हम तो समझे थे आप छुट्टी पर हैं. :)
परदेशी बन भूल गया
सौतन हो गई माया,
पता नहीं कब आयेंगें
जर जर हो गई काया।
" wah bhut khub.... pardeshi perdeshi jana nahee.."
Regards
Govindji,
bahut khoob,ek taraf apkee chutkiyan han jo aj ke halat par chot karti han.Dooseri or apke virah poorn geet.Jo apkee samvedansheelta prakat karte han.Badhai.
Hemant Kumar
वियोग श्रृंगार की इस सुंदर रसमयी रचना के लिए आभार........
एक बहुत ही सुन्दर ओर मन भावन रचना, एक नही दो नही कई बार पढी लेकिन दिल फ़िर चाहता है, बार बार पढने को.
धन्यवाद
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