Thursday, October 28, 2010

श्रीगंगानगर में "गुंडे" की दहशत

हुजूर अहमद "शफक" की लाइन -चिंताजनक है आज जो हालात मेरी जां,हैं सब ये सियासत के कमालात मेरी जां, से आज बात की शुरुआत करते हैं।दीवाली अभी दूर है मगर लक्ष्मी का आगमन साफ दिखता है। देखना हो तो
चले आओ चिकित्सा पेशे से जुड़े किसी भी आदमी या संस्था के यहाँ। आपको साफ दिखाई देगा कि किस प्रकार लक्ष्मी वहां अपनी मेहरबानी की बरसात कर रही है। नगर में चर्चा है कि इस बार लक्ष्मी इन्ही के घर विराजमान है। इसका कारण है "गुंडे" का आतंक। जल्दी में कुछ उल्टा हो गया। गुंडे नहीं डेंगू। बात तो एक ही है।
श्रीगंगानगर में इन दिनों वो घर बहुत ही भाग्यशाली है जिसका कोई सदस्य बीमार नहीं है। सरकारी हो प्राइवेट ,तमाम हॉस्पिटल में बुखार से पीड़ित लोगों का आना लगा रहता है। प्रशासन पता नहीं क्या कहता है लेकिन निजी अस्पतालों के आंकड़े लोगों के दिलों में खौफ पैदा करने के लिए काफी हैं। एक बार बुखार होने का मतलब है कई हजार रूपये की चट्टी। मानसिक चिंता अलग से। जिनके यहाँ हर रोज या हर माह एक निश्चित राशि आनी है उसके यहाँ तो समस्या अधिक है। हमें इस बात की जलन नहीं है कि लक्ष्मी चिकित्सा से जुड़े व्यक्तियों के यहाँ क्यों डेरा लगाकर बैठी है। चिंता है कि इस बात की है कि अगर यही हाल रहा तो इस बार की दीवाली कैसी होगी? दीवाली, जो सबसे बड़े त्यौहार के रूप में आती है, कई प्रकार के सपने साथ लेकर आती है। घर घर में कुछ ना कुछ नया लाने के लिए बजट का इंतजाम रहता ही है। जैसी जिसकी जेब वैसे उसके सपने। मगर इस बार सभी के नहीं तो बहुतों के छोटे बड़े सभी सपने इस गुंडे के डर से किसी ओर के यहाँ चले जा रहे हैं। सामान्य बुखार ,जो कभी दादी नानी के नुस्खों से ठीक हो जाया करता था वह अब जिंदगी के लिए संकट बन कर आ खड़ा होता है। जिंदगी है तो सपने हैं, ये सोचकर सब अपना सब कुछ इस गुंडे पर लगाने को तैयार हो जाते हैं। कोई हिसार भागता है कोई जयपुर तो कोई लुधियाना। बस किसी प्रकार से जिन्दगी बच जाये,रोटी के लिए कौड़ी बचे ना बचे। कोई कर भी क्या सकता है। इससे पहले तो कभी यहाँ इस प्रकार के हालत पैदा नहीं हुए। नगर के उन व्यक्तियों को जो अपने आप को इस नगर की आन, बान, शान समझते हैं,इस बारे में चिंतन मनन जरुर करना चाहिए कि आखिर ऐसे हालत बने क्यों? अब तो जो होना था हो गया आइन्दा तो शहर को इस स्थिति से दो चार ना होना पड़े।
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कांग्रेस नेताओं को याद होगा कि १९७७ में करारी हार के बाद उनकी नेता इंदिरा गाँधी १९८० में फिर सत्ता में वापिस आ गई थी। क्योंकि हार के बावजूद श्रीमती गाँधी लगातार मिडिया की पहली खबर रहीं। इसका कारण वे खुद नहीं चरण सिंह बने , जो सरकार में उप प्रधानमंत्री के साथ साथ गृह मंत्री भी थे। वे उठते ,बैठते केवल श्रीमती गाँधी को कोसते। वे श्रीमती गाँधी को कोसते रहे, श्रीमती गाँधी लोगों की सहानुभूति बटोर कर सत्ता में लौट आई। इसी से मिलता जुलता यहाँ कांग्रेस की राजकुमार गौड़ एंड कम्पनी कर रही है। जांदू ये , जांदू वो। हाय जांदू,हे जांदू। मेरे मालिक ,आप कांग्रेस के नेता हो, जो राजस्थान की नहीं हिन्दूस्तान की भी सत्ता चला रही है। आपको लगता है कि नगर परिषद् शहर में ठीक या जनहित का काम नहीं कर रही तो अफसरों को बदल दो। जो स्थान खाली है उनको भरवा दो। यहाँ के कर्मचारी,अफसर आपको भाव नहीं देते तो उनके तबादले करवाओ । जांदू नहीं सुहाता तो उसको बर्खास्त करवा दो। ये क्या विपक्ष की तरह स्यापा करने लगे हो। शोर मचाना विपक्ष का काम होता है। सत्ता पक्ष तो चमत्कार दिखाता है। इस हाय तोबा से राजकुमार गौड़ एंड कंपनी को कब क्या मिलेगा पता नहीं, हाँ जांदू जरुर अख़बारों में छाये रहते हैं। अगर जांदू को जांदू को डाउन करना है तो उसका नाम ही लेना बंद कर दो। नहीं करोगे तो वह राजनीति का डौन बन जायेगा। ओशो ने कहा था--कौन सही है कौन गलत है, क्या रखा इस नादानी में,कौड़ी की चिंता करने में हीरा बह जाता पानी में। जब भी शिकवा शिकायत हो ,समझो तुम्ही खलनायक हो, अथ प्रमम शरणम् गच्छामि, भज ओशो शरणम् गच्छामि। अब आनंद मायासुत का भेजा एस एम एस --इस दुनिया में भगवान का संतुलन कितना अचरज भरा है। सौ किलो गेहूं का बोरा जो आदमी उठा सकता है वह उसे खरीद नहीं सकता। जो इसे खरीद सकता है वह इसे उठा नहीं सकता। ---

गोविंद गोयल

2 comments:

Aniruddha Mishra said...

Goyal Sahab apne theek hi likha hai ki agar gunde ka atank isi tarah raha to diwali kai hogi. Iski to kalpana se hi dil bechain ho uthata hai. Lekin agar hum aur aap milkar iske liye prayas karenge tabhi IS gunde ka atank hatega.

राज भाटिय़ा said...

बहुत बुरी खबर हे लोगो को पानी खुब ऊवाल कर पीना चाहिये,आज डा० भी जेबकतरो से दो कदम आगे हे जी