Monday, December 1, 2008

उफ़! बड़ा ही कन्फ्यूजन है जनाब

श्रीगंगानगर में एक दर्जन दैनिक समाचार पत्र प्रकाशित होते हैं। सब के सब जानदार शानदार। यहाँ विधानसभा के चुनाव ४ तारीख को होने हैं। लेकिन कोई भी माई का लाल, बड़े से बड़ा पाठक अखबारों में छपने वाली ख़बरों से यह अनुमान नहींलगा सकता कि कौनसा उम्मीदवार जीतेगा। कुछ हैडिंग यहाँ आपकी नजर है----
"मान के समर्थन में विशाल जनसभा, समर्थन में उमड़ा जनसैलाब","हजारों की भीड़ ने शहर की फिजां बदली, राधेश्याम की जीत के चर्चे"," गौड़ को समर्थन देने वालों की तादाद बढ़ी"" शिव गणेश पार्क के निकट गौड़ की सभा में उमड़ी भीड़"। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये तीनों[ मनिंदर सिंह मान, राधेश्याम,राजकुमार गौड़] श्रीगंगानगर से उम्मीदवार हैं। सभी अखबारों में सभी १३ उम्मीदवारों की बल्ले बल्ले होती है। खबरें अब विज्ञापन बन गईं हैं। कोई विज्ञापन लिख कर खबरें छाप रहा है, कोई इम्पेक्ट के साथ।
कोई अखबार ऐसा नहीं जो ये लिख सके कि फलां उम्मीदवार की हालत ख़राब, दूसरा जीतेगा। खबरों का नजरिया पुरी तरह बदल गया है। अब तो हालत ये कि जो ख़बर है वह अखबार और चैनल मालिक/संचालक की नजरों में ख़बर है ही नहीं। न्यूज़ चैनल के लिए तो जो महानगर में हुआ वही न्यूज़ है। छोटे नगर में कोई पहल हो तो कोई मतलब नहीं।
सब की अपनी अपनी मज़बूरी है। पाठक/दर्शक लाचार और बेबस। वह दाम खर्च कर वह सब देखता और पढता है जो उसे दिखाया और पढाया जाता है। खैर चूँकि मीडिया ताक़तवर है इसलिए ये जो कुछ कर रहें हैं सर माथे।

4 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप कतई कनफ्यूजन मत रखिये जिसे देना है उसे वोट दीजिए।

विधुल्लता said...

नही ये बात नही है,इस बार इतनी बड़ी त्रासदी के कारण हो ,छोटे नगरों मैं तो अखबार आम आदमी का ज्यादा ख्याल रखता है ,कुछ दिनों बाद सब ठीक हो जायेगा , छोटे अखबार भी अक्सर ,महानगरीय सभ्यता से प्रेरित जरूर होतें है लेकिन अपने माहौल को परखना भी उन्हें खूब आता है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

कौन रिस्क ले। छापा कुछ हुआ कुछ तो पाठक तो गरियायेंगें ही, विज्ञापनों से भी जायेंगें। तो सारे जने कनफ्यूजायें ही रहें उसी में उनकी भलाई है।

राज भाटिय़ा said...

वोट उसे दे जो जात पात ओर धर्म की बात कर के वोट ना मांगे, वोट उसे दे जो देश की फ़िक्र करे, देश वासियो की फ़िक्र करे,
धन्यवाद