इतने दिन कहाँ रहा, ये चर्चा बाद में, पहले उस "युद्ध" की बात जिसका अभी कोई अता पता ही नही है। इन दिनों शायद ही कोई ऐसा मीडिया होगा जो "युद्ध" युद्ध" ना चिल्ला रहा हो। हर कोई "युद्ध" को अपने पाठकों को "बेच" रहा है जैसे कोई पांच पांच पैसे की गोली बेच रहा हो। इतने जिम्मेदार लोगों ने इसको बहुत ही हलके तरीके से ले रखा है। मेरा शहर बॉर्डर के निकट है। हमने १९७१ के युद्ध के समय भी बहुत कुछ झेला और देखा। इसके बाद वह समय भी देखा जब संसद पर हमले के बाद सीमा के निकट सेना को भेज दिया गया था। बॉर्डर के पास बारूदी सुरंगे बिछाई गई थी। तब पता नहीं कितने ही लोग इन सुरंगों की चपेट में आकर विकलांग हो गए। अब ऐसी कोई बात नहीं है। मैं ख़ुद बॉर्डर पर होकर आया हूँ। पुरा हाल देखा और जाना है। पाक में चाहे जो हो रहा हो, भारत में सेना अभी भी अपनी बैरकों में ही है। बॉर्डर की और जाने वाली किसी सड़क या गली पर सेना की आवाजाही नहीं है। मीडिया में पता नहीं क्या क्या दिखाया,बोला और लिखा जा रहा है। ठीक है वातावरण में तनाव है, दोनों पक्षों में वाक युद्ध हो रहा है, मगर इसको युद्ध की तरह परोसना, कमाल है या मज़बूरी?
अख़बारों में बॉर्डर के निकट रहने वाले लोगों के देश प्रेम से ओत प्रोत वक्तव्य छाप रहें हैं।अब कोई ये तो कहने से रहा कि हम कमजोर हैं या हम सेना को अपने खेत नहीं देंगें। मुफ्त में देता भी कौन है। जिस जिस खेत में सुरंगें बिछाई गई थीं उनके मालिकों को हर्जाना दिया गया था। हमारे इस बॉर्डर पर तो सीमा सुरक्षा बल अपनी ड्यूटी कर रहा है. सेना उनके आस पास नहीं है। हैरानी तो तब होती है जब दिल्ली ,जयपुर के बड़े बड़े पत्रकार ये कहतें हैं कि आपके इलाके में सेना की हलचल शुरू हो गई। अब उनको कौन बताये कि इस इलाके में कई सैनिक छावनियां हैं , ऐसे में यहाँ सेना की हलचल एक सामान्य बात है। आम जन सही कहता है कि युद्ध केवल मीडिया में हो रहा है।
7 comments:
बढ़िया जानकारी रही ...
आप की बात से सहात है मुनि वर
राम राम जी की
सन सनी फैलाना मीडीया का काम ही है. आपने तो सीमा के गश्त को भी दिखा दिया. आभार. नववर्ष आपके और आपके परिवार के लिए मंगलमय हो.
सीमा से लगे क्षेत्रों के हालात बताने का आभार. आशा है अब नियमित लिखेंगे.
नव -वर्ष मँगलमय हो सिपाहियोँ को इस तरह टहलते देखकर सहम गये हम - उन्हेँ बखतर भी नहीँ दिये जाते क्या पहनने को ?
चौकसी का प्रबँध ज्यादा होना चाहीये - आपके लिन्क का शुक्रिया
- लावण्या
मीडिया का खुद आंतक बनता जा रहा है। जरा जरा सी बात को इतना बढा चढाकर प्रस्तुत करता है कि आम आदमी डरने लगता है। राज ठाकरे के गुंडों ने कहीं छोटी बडी एक दो घटना की होगी किंतु मीडिया ने इस तरह परोसा कि अब आम आदमी मुंबई जाते डरने लगा है। मुंबईवासी कहते हैं । इतना बडा शहर है, वहां एेसी धटनाआें से कोई फर्क नही पडता।
काश हम दुनिया में पैदा हाते जा रहे इस आंतकवाद से मुक्ति पा सकतें ।
"नव वर्ष २००९ - आप सभी ब्लॉग परिवार और समस्त देश वासियों के परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं "
regards
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