Thursday, December 4, 2008
आपकी जां की कसम
खेलकर मेरी खुशियों से
तोड़कर मेरे दिल को
अपने झूठे वादों से फुसलाकर
चली गई तुम
शहनाई के साये में
मेरी छोटी सी दुनिया में
आग लगाकर,
दुनिया क्या जाने
आज की रात मुझ पर
कहर बरपाएगी
मगर तुम्हारे लिए यही रात
एक यादगार बन जायेगी,
क्योंकि तुम्हारे वो
तुम्हें अपने पास बिठायेंगें
अपने हाथों से तुम्हारा
घूँघट हटायेंगें
और तुम कुछ शरमाकर
कुछ घबराकर
मेरे साथ बिताये पलों को भुलाकर
अपने दिल से मेरी
तस्वीर मिटाकर
सीने में बसी यादों को हटाकर
अपने ओठों को
उसके ओठों से लगाकर
बड़ी अदा से यह कहोगी
आपकी जां की कसम
मेरी जां, मुझे आपसे
बेपनाह मोहब्बत है।
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7 comments:
क्या हुआ है नारद जी? इस तरह की कवितायें? :-)
सीधी सच्ची रचना लगी।
नारायण!!! नारायण!!
नारद मुनि भी लग लिए लाईन में..इन्सान भी कितने संक्रामक हैं..मुनिवर को रोगी कर दिया!!
नारायण!!! नारायण!!
क्या बात है
memories are painful at times and life is a mixed bag of everything
कोई बहुत गहरी चोट लगती है
बहरहाल बेवफाई के बाद वफा की कस्में खाने की प्रोसेस बहुत गहराई से समझयी है.
मुकेश कुमार तिवारी
नारायण नारायण !!! बाबा क्या बात हो गई ? बहुत दुखी लग रहे हो.... अजी आप तो मुनि वर है.
wah muni ji dil ka kya khoob dard banya kiya........
narayan narayan....
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