Wednesday, December 17, 2008
जूते की हसरत दिल में रह गई
पैरों में रहना
मेरी नियति है,
फ़िर पैर मेरा हो
आपका उसका
या हो बुश का,
पहली बार किसी ने
मुझ पर दया दिखाई
किसी बड़े के मुंह
लगने की उम्मीद जगाई,
उसने पैरों में पड़े जूते को
हाथ में लिया और
फैंक दिया पूरी ताकत से
ताकि मैं ठीक से
बुश के मुंह जा लगूं
या उसके शीश पर
सवार हो ताज बनू ,
अफ़सोस बुश के
घुटनों ने वफ़ा निभाई
मुझे आता देख तुंरत
झुक गए मेरे भाई,
दोनों बार ऐसा ही हुआ
पर, मैं तो कहीं का ना रहा,
मुंह लगने की हसरत
तो पूरी क्या होनी थी
मैं तो पैरों से भी गया,
हाँ इस बात का
गर्व जरुर है कि
जो किसी के
बस में नहीं आता है
वह हमें आते देख
घुटनों के बल झुकने को
मजबूर हो जाता है।
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7 comments:
गर्व जरुर है कि
जो किसी के
बस में नहीं आता है
वह हमें आते देख
घुटनों के बल झुकने को
मजबूर हो जाता है।
"narayan narayan.."
sundar likha hai apne padhkar achhah laga ...
मजा आ गया, अब पता चला शेतान जुते के सामने ही झुकता है, यानि सिर्फ़ जुते की भाषा समझता है.
बहुत सुंदर कविता लिखी आप ने .नारायाण नारायाण
धन्यवाद
वार बार बार खाली नहीं जाता .
bahut mazedaar kataaksh :-D
joota jo uchala kamaal ho gaya
duniya men poori baval ho gaya
jo koi na kar paya joote ne vo kam kar diya
bush ki ek pal men mitti tamaam kar gaya
sundar rachanaa .........
badhai ....
Jute ki mahima aparampar hai.Narayan.Narayan.
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