Tuesday, December 16, 2008

लो मैं आ गया


सॉरी ! अचानक बिना बताये गायब रहना पड़ा। इस बीच बुश के साथ वो हो गया जो किसी ने कल्पना भी नही की होगी। कभी ज़िन्दगी में ऐसा होता है कि हम सोच भी नहीं पाते वह हो जाता है। अमेरिका के प्रेजिडेंट की ओर किसी की आँख उठाकर देखने भर की हिम्मत नहीं होती यहाँ जनाब ने दो जूते दे मारे, वो तो बुश चौकस थे वरना कहीं के ना रहते बेचारे। अमेरिकी धौंस एक क्षण में घुटनों के बल झुक गई। इसे कहते हैं वक्त ! वक्त से बड़ा ना कोई था और ना कोई होगा। यह वक्त ही है जिसे हिन्दूस्तान की लीडरशिप को इतना कमजोर बना दिया कि वह पाकिस्तान को धमकी देने के सिवा कुछ नहीं कर पा रहा है। यह वही हिन्दूस्तान तो है जिसने आज के दिन [ १६/१२/१९७१] को पाकिस्तान का नक्श बदल दिया था। आज हमारी हालत ये कि जब जिसका जी चाहे हमें हमारे घर में आकर पीट जाता है। हमारी लीडरशिप के पैर इतने भारी हो गए कि वह पाकिस्तान के खिलाफ उठ ही नहीं पा रहे। हिन्दूस्तान की विडम्बना देखो कि उसके लिए क्रिकेट ही खुशी और गम प्रकट करने का जरिए हो गया। क्रिकेट में टीम जीती तो भारत जीता। कोई सोचे तो कि क्या क्रिकेट में जीत ही भारत की जीत है? इसका मतलब तो तो क्रिकेट टीम भारत हो गई, वह मुस्कुराये तो हिन्दूस्तान हँसे वह उदास हो तो हिन्दुस्तानी घरों में दरिया बिछा लें, ऐसा ही ना।
क्या हिन्दूस्तान की सरकार उस इराकी पत्रकार की हिम्मत से कुछ सबक नही ले सकती? उसका जूता मारना ग़लत है या सही यह बहस का मुद्दा हो सकता है लेकिन उसने अपनी भावनाएं तो प्रकट की। हिन्दुस्तानी अगर मिलकर अपने दोनों जूते पाकिस्तान को मारे तो वह कहीं दिखाई ना दे। सवा दो करोड़ जूते कोई काम नहीं होते। लेकिन हम तो गाँधी जी के पद चिन्हों पर चलने वाले जीव हैं इसलिए ऐसा कुछ भी नही करने वाले। चूँकि लोकसभा चुनाव आ रहे हैं इसलिए थोड़ा बहुत नाटक जरुर करेंगें।

8 comments:

विवेक सिंह said...

अच्छा लगा जानकर . अब बताकर जाना :)

seema gupta said...

सवा दो करोड़ जूते कोई काम नहीं होते।
"well said"

regards

अविनाश वाचस्पति said...

जूता जूता न रहा
जुट गया नाम कमाने
चल दिये देखो जांच बैठाने
प्रश्‍न जिनके जवाब चाहिये
न हों जवाब तो पूछ सकते हैं
आप भी कुछ सवाल
इन सवालों में सलाहें भी हैं
इन्‍हें अन्‍यथा न लें
यह तो सबका जन्‍मसिद्ध अधिकार है -


1. जूता पत्रकार के पैर का था
2. यदि नहीं, तो किसका था
3. जिसका जूता था, वो सौभाग्‍यशाली रहा या ...
4. जूता किस कंपनी का था
5. जूता कब खरीदा गया
6. जूते का जोड़ीदार कहां है
7. बिना बिल के खरीदा गया
8. बिल कहां है
9. बिल किस दुकान का था
10. जूते ने अपनी बिरादरी का नाम इतिहास में अमर कर दिया
11. जूते ने प्रेरक का काम किया
12. मुहावरों की दुनिया में नये मुहावरे और लोकोक्तियां रची जायेंगी जूताशाली, जूताजुगाड़ वगैरह
13. नये फिल्‍मी गाने और पैरोडियां लिखी जायेंगी - बुश को जूता क्‍यों मारा ...
, जूता है जूता .....,
14. किस्‍मत कनैक्‍शन किसका - बुश का या जूते का ...
15. जूते का एक एक्‍सक्‍लूसिव इंटरव्‍यू लिया जाये ...
16. एक आखिरी - किसी ने यह क्‍यों नहीं कहा कि बुश को बूट क्‍यों मारा - बूट को जूता ही क्‍यों कहा गया जबकि बुश की तुक बूट से मिलती है।

ss said...

एक जूते में इतनी ताकत न जाने कहा से आती है | मीडिया और हमारे आदरणीय मंत्रियों को जूते दिखाना चाहिए| ये तो बस जूते दिखाने लायक भर ही हैं, जूता फेंका गया तो पैसे बरबाद, क्यूँ बरबाद करें इनपर| दिखाओ और चलते बनो|

नीरज मुसाफ़िर said...

नारायण नारायण जी,
अब जब इराक में तानाशाही चलेगी तो, जूते नहीं पड़ेंगे तो क्या पड़ेंगे? हमारे इन "माननीयों" पर भी कूड़ाघर में से जूते चप्पल जो भी हाथ लगे, फेंकने चाहिए. और पाकिस्तान के लिए तो "बुरी नजर वाले, जूता खाले."

vimi said...
This comment has been removed by the author.
vimi said...

bilkul sahi !! we need leaders and not politicians today.



sorry, my previous post had error so I deleted it.

राज भाटिय़ा said...

भाई मुनि जी मुझे तो बहुत खुशी हो रही है, लगता है इस वीर नोजवान ने मेरे दिल की बात सुन ली.... बस फ़र्क इतना रह गया कि शेतान ज्यादा चुस्त था.... अगर लग जाता तो भगंडा डालता... कोई बात नही अब भी मोजा ही मोजा...
राम राम