Wednesday, December 3, 2008

अकेला तो मेला,मेला तो अकेला


अकेला तो मेला
मेला तो अकेला
वो शख्स है
बड़ा अलबेला।
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ना कोई गुरु
ना कोई चेला
हर कोई जेब में
हाथ नहीं धेला
मगर वो है
बहुत अलबेला।
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भीड़ में मौन
एकांत में वार्ता
अपनी जिंदगी
ओरों पर वार्ता
पता नहीं उसने
क्या क्या है झेला।
वो शख्स है
बहुत अलबेला।
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ऊपर पत्थर
अन्दर मोम
उसकी कहानी
सुनेगा कौन
पता नही क्या है
जां को झमेला
वो शख्स है
बड़ा अलबेला।

5 comments:

समयचक्र said...

bahut sundar rachana . narayan narayan hari om tashyat.

मनोज द्विवेदी said...

bhid me moun, ekant me varta
gazab ki line likhi hai apne meri badhai sweekar karein.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

मस्त मलंग ऐसे ही होते हैं

राज भाटिय़ा said...

आप ने सही कहा जो मस्त है वो अकेला भी मेला ही महसुस करता है, ओर जो चिंतित है उसे तो मेला भी हो लोगो की भीद भी तो तो भी अकेला, बाकी शर्मा जी की बात से भी सहमत हुं.
धन्यवाद

vimi said...

kya baat hai ! bahut badhiya