Tuesday, March 5, 2013

मौत,आक्रोश,गुस्सा,हंगामा,वार्ता और समझौता


श्रीगंगानगर-एक बकरी उम्मीद से थी। उसे गायनी के पास लाया गया। हालत खराब हो गई। सीजेयरीयन डिलीवरी से ट्विन हुए।  स्थिति और बिगड़ गई। खूब कोशिश की हॉस्पिटल वालों ने...लेकिन जो ईश्वर को मंजूर। ट्विन बच गए। जैसे ही परिजनों को पता लगा हंगामा हो गया। बात एक से होती हुई दूसरे,तीसरे....आगे बढ़ी। बात आगे बढ़ी तो उसकी सूरत बदल गई। बकरी की नसल का सवाल आया। रंग की पूछताछ हुई। जिसकी थी,वह किस समुदाय और जाति का है इसका पता लगाया गया। धर्म के बारे में पूछा। ट्विन की स्थिति कैसी है...ये जानकारी ली गई। हॉस्पिटल के बाहर भीड़ अधिक हो चुकी है। नगर में चर्चाओं का बाजार गरम....अफवाहों का दौर.... पुलिस हॉस्पिटल पहुंची। प्रशासनिक अधिकारी भी पहुंचे। चुनाव आने वाले थे। अनेकानेक नेता हॉस्पिटल पहुँच गए। मालिक को ढांढस बंधाया। ट्विन के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए फोटो ले मीडिया को दिये गए। कोई बिस्कुट लेकर आया था कोई नर्म मुलायम चारा। एक ने बिन माँ के ट्विन के चारे का सहयोग करवाने का वादा किया। दूसरा सत्तारूढ पार्टी का था उसने सीधे सरकार को फैक्स कर घटना की जानकारी दे मुआवजा मांग लिया। तीसरा हॉस्पिटल के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग करने लगा। डॉक्टर की गिरफ्तारी की बात हुई। भीड़ और अधिक हो गई। कुछ उत्तेजित लोग हॉस्पिटल के गेट की  तरफ बढ़े। पुलिस मुस्तैद हुई। उस पर मिली भगत के आरोप लगे....पुलिस की हाय हाय हुई..।  भीड़ में चर्चा होने लगी, क्या जरूरत थी बकरी को इधर लाने की....और कहीं ले जाते.....मुआवजा क्या होता है....बच्चे तो रूल गए....माँ कहाँ से आएगी....गरीब मालिक कैसे संभाल पाएगा....इसी दौरान जो नेता कुछ देर पहले बकरी,उसके ट्विन,मालिक की चिंता फिक्र कर रहे थे वे हॉस्पिटल के अंदर वार्ता का माहौल तैयार करने लगे। नेता अंदर गए तो बाहर नारेबाजी तेज हो गई। बकरी की डैड बॉडी ले जाने से मना कर दिया भीड़ ने। आवाज आई...जब तक नहीं लेकर जाएंगे जब तक न्याय नहीं मिलता। प्रशासन इस परिवार को अकेला ना समझे। मालिक कभी इधर देखे,कभी उधर...भीड़ तो बहुत लेकिन अपना कोई ना दिखे। कई घंटे के बाद समझौता वार्ता हुई। ट्विन्स के लिए उम्र चारे का इंतजाम कुछ नकदी पर समझौता हो गया। एक नेता ने मृतक के नाम सड़क का नाम रखने की घोषणा कर दी। भीड़ को बता दिया गया। भीड़ एकता के नारे लगती हुई चली गई। हॉस्पिटल वालों ने मालिक से पूछ लिया कि डैड बॉडी वह ले जाएगा या ठेकेदार। मालिक ने मना कर दिया तब हॉस्पिटल ने मृत पशुओंको उठाने ठेकेदार को सूचना दी। उसने बकरी की डैड बॉडी रेहड़ी पर डाली और उसे ले गया। पुलिस भी रवाना हो गई। नेताओं ने हॉस्पिटल संचालकों से हाथ मिलाए....कहा, चलो नक्की हुआ। सड़क पर आवागमन रोज की तरह हो गया। हॉस्पिटल में सामान्य काम काज होने लगा। ट्विन्स की उसके बाद किसी ने खैर खबर नहीं ली। बिन माँ के कब तक रहते मासूम...चले गए माँ के पास। फिर चुनाव आ गए। दैट्स ऑल। [एक व्यंग्य]

2 comments:

वाणी गीत said...

दैट्स आल ...
कुछ भी हो , सबसे पहले अगले की जाति देखो !

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

aabhar aapke aane ka