श्रीगंगानगर-बड़े नगर की छोटी सड़कों,गोल चौराहों पर लगी ट्रैफिक सिग्नल लाइटस ने ट्रैफिक
व्यवस्था को बजाए सुधारने के बिगाड़ दिया। बिना किसी प्लानिंग,सोच और दूर दृष्टि के साथ लगी ये लाइट्स हर वाहन चालक के लिए दुविधा का
कारण बन चुकी है। सांसद भरतराम मेघवाल सहित अनेक
कांग्रेस नेता स्वीकार कर चुके हैं कि इससे व्यवस्था बिगड़ी है। इसके बावजूद
जिला कलेक्टर इस ओर ध्यान नहीं दे रहे। आधुनिक होते इस शहर में ले दे के कोडा चौक
से बीरबल चौक तक रवीन्द्र पथ,लक्कड़ मंडी के टी पॉइंट से लेकर
बीरबल चौक तक लक्कड़ मंडी रोड और बीरबलचौक से सुखाड़िया सर्किल तक गौशाला रोड एवं
यहाँ से खिची चौक तक की सड़क है। इसका जोड़ बाकी किया जाए तो चार किलोमीटर भी नहीं
होती। इतनी सी दूरी पर कितनी ट्रैफिक लाइटस हैं.....ये किसी वाहन चालक से पूछो। थोड़ी
थोड़ी दूरी पर लाइट्स,,,,ट्रैफिक जाम की स्थिति पैदा कर देती
है। हरी लाइट्स तो जागती है कुछ पल के लिए और लाल लाइट्स कितनी ही देर। इस कारण से
जाम कभी हटता ही नहीं। भगत सिंह चौक से गोलबाजार चौक की कितनी दूरी
है.....सुखाड़िया सर्किल से भाटिया पेट्रोल पंप कितने किलोमीटर है....वाहन चालक ठीक
से स्टार्ट ही नहीं कर पाता कि सिग्नल लाइट्स फिर रोक लेती हैं। जिस दिन ये लाइट्स
आउट ऑफ कंट्रोल होती हैं उस दिन इन सड़कों पर ट्रैफिक पूरी तरह से कंट्रोल में रहता
है। उतना ही क्यों,प्रशासन ने लाइट्स तो लगा दी लेकिन बाईं
ओर जाने वाले के लिए जगह ही नहीं होती। फिर ऐसे चौराहों पर ये लाइट्स किस काम की
जहां वाहनों को रेड लाइट होने पर बाईं ओर मुड़ने के लिए स्थान ही ना हो। सड़क ही
छोटी सी है तो कोई क्या करे। जो वाहन चालक इस बात को जानता है उसके पास भी कोई
विकल्प नहीं....क्योंकि सड़क पर इतनी जगह
ही नहीं जिससे बाईं ओर की साइड खाली रहे। सांसद भरत राम मेघवाल,विधायक गंगाजल,बीसूका के उपाध्यक्ष राजकुमार गौड़ ने
जिला कलेक्टर से लाइट्स की जांच करवाने को कहा था। ताकि जनता को असुविधा ना हो।
किन्तु जिला कलेक्टर या तो भूल गए या फिर नगर परिषद के इस काम को व्यावहारिक तरीके
से करवाना उनके बस में नहीं। कितनी हैरानी की बात है कि जो तथाकथित सुविधा सभी के
लिए असुविधा बन रही है उसी को ठीक करने के लिए कोई शोर नहीं मचा रहा। कोई शहर ऐसा
नहीं होगा हिंदुस्तान में जहां थोड़ी थोड़ी दूरी पर ट्रैफिक लाइटस हों। अगर होंगी भी
तो सड़कें ना तो श्रीगंगानगर जितनी छोटी होंगी ना बड़े बड़े गोल चौराहे। ट्रैफिक
लाइट्स लगाने के भी नियम कायदे होते ही होंगे। ऐसे तो नहीं कि जहां इच्छा हुई लगा
दी। जितनी मर्जी हुई टाइमिंग सैट कर दी।विभिन्न संगठन छोटी छोटी बातों के लिए तो
शिर मचाते हैं किन्तु कोई इस बात के लिए नहीं बोल रहा। जबकि यह दुविधा सभी को ना
केवल दिखाई दे रही है बल्कि महसूस भी होती है।
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