श्रीगंगानगर-कांग्रेस के एक से बढ़कर एक टिकट के
दावेदार। वर्तमान एमपी। पूर्व एमपी। ब्लॉक अध्यक्ष। इतने नेताओं के बावजूद इन्दिरा
चौक पर उतनी भीड़ नहीं हो पाई जितनी होनी चाहिए थी।कोई घर ऐसा नहीं जिसको इस सरकार
की किसी ना किसी योजना का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ ना मिला हो। फिर भी भीड़
उत्साह जनक नहीं। राजकुमार गौड़,जगदीश जांदू,कश्मीरी लाल जसूजा महत्वपूर्ण चुनाव लड़ हजारों हजार वोट ले चुके हैं।ज्योति
कांडा को भी विधायक बनाने की मांग लोग करते हैं। इतना होने के बाद भी भीड़ वैसी
नहीं थी जो इन नेताओं के रुतबे के अनुरूप
कही जा सके। राजकुमार गौड़ बीसूका के
उपाध्यक्ष हैं। सरकार की एक से एक बढ़िया योजना के बारे में बताते हैं।हर परिवार की
खुशी गमी में शामिल होते हैं। जगदीश जांदू
ने तो पार्षदों की मार्फत हर वार्ड में विकास के लिए खजाने खोल रखे हैं। ज्योति
कांडा ने भी अपने राज में हजारों पट्टे बना लोगों के दुख दर्द दूर किए। जसूजा जी
भी नाटकों,कवि सम्मेलन,साहित्यिक
गोष्ठियों में आते जाते हैं। संवेदनशील लोगों से उनकी निकटता है। इतना कुछ ये नेता
करते हैं लोगों की भीड़ फिर भी नहीं दिखी। कांग्रेस के एमपी भरतराम मेघवाल ने भी तो
कुछ सौ लोगों को व्यक्तिगत रूप से ओबलाइज किया होगा। कांग्रेस के पार्षद हैं ढेर
सारे। वे भी तो जनता का काम करवाते हैं।
बात वही कि भीड़ कहां गई। बेशक इस प्रकार की सभाओं की भीड़ से किसी की जीत हार की
भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। परंतु यह चर्चा तो होती ही है कि इतने कद्दावर नेताओं
के पार्टी में होने के बाद भी मुख्यमंत्री,प्रदेश अध्यक्ष की
सभा में भीड़ कितनी थी। यह भी सयानी बात है कि कोई संख्या नहीं गिन सकता। परंतु हर
बार भीड़ का अनुमान ही तो है जो जनता में चर्चा का केंद्र बिन्दु होता है। इस बार
भी है। नगर में यही चर्चा है कि नेताओं की भीड़ तो कांग्रेस के खेमे में बहुत है।
विधानसभा की टिकट मांगने वालों की भी कमी नहीं है। सभा में भीड़ ना होने का क्या
कारण है।समय भी ठीक था और मौसम भी। ये तो सघन रिहायशी क्षेत्र था। इसके बावजूद ये
हाल। यही सभा कहीं नेहरू पार्क,पब्लिक पार्क या रामलीला
मैदान में हो जाती तो क्या स्थिति होती। वैसे सभा के बाद सीएम ने कांग्रेस के
नेताओं को बुलाया था। पीठ थपथपाई होगी और क्या। जो स्थिति है वह बदल नहीं सकती।
किसी दूसरे के लिए कोई भीड़ क्यों जुटाने लगा। इससे कांग्रेस को तो एक सीट का
नुकसान होगा लेकिन इन नेताओं का भी तो राजनीतिक भविष्य दाव पर लगता है। कोई टेंशन
नहीं। अभी तो चुनावी साल में सभा की शुरुआत है। ऐसे तमाशे कई बार राजनीतिक
विश्लेषकों के मन को बहलाएंगे।
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