श्रीगंगानगर। हमारे आस पास बहुत
कुछ अच्छा होता है। संस्कारों,
पारिवारिक प्रबंधन और प्रेम के अनेक उदाहरणों से भी हम मेँ से कोई ना कोई रोज नहीं तो कभी कभार तो रूबरू होता ही है। कुछ
प्रेरणादायी बात भी हमारी आँखों के सामने आ जाती हैं, गाहे
बगाहे । परंतु ये सब सामान्य रूप से होता लगता और दिखता है। इसलिए इसमें हमें कुछ खास दिखाई नहीं देता या हम इसे रूटीन जान कोई विशेष तवज्जो
नहीं देते। मगर इन सब पर कभी कोई चिंतन मनन करे तो लगेगा कि जो सामान्य है, वही तो है बहुत अधिक खास, विशेष और समाज को प्रेरणा
देने वाला । बात आगे बढ़ाते हैं। क्या आज के इस दौर मेँ कोई ये सोच सकता है कि कहीं
संयुक्त परिवार होगा? चलो संयुक्त परिवार तो मिल जाएगा। किन्तु क्या ये संभव है कि उस परिवार मेँ
टीवी केवल एक ही हो। वह भी तब जब परिवार के सभी लड़के विवाहित हैं। उनके बच्चे हैं।
सबके अलग कमरे हैं। सुनने, पढ़ने मेँ बेशक विश्वास ना हो। कोई
बताए तो भी यकीन करना मुश्किल हो। लेकिन ये सत्य है। आज के दिन, पूरी तरह सच। चाहे तो कोई देख ले जाकर उस परिवार मेँ, जिसका जिक्र किया जा रहा है। एल ब्लॉक हनुमान मंदिर के पास एक परिवार है।
तीन लड़के हैं। तीनों विवाहित। तीनों के सात- आठ बच्चे हैं। कुल मिला कर एक दर्जन
से अधिक व्यक्तियों का परिवार। टीवी केवल एक। जो लॉबी मेँ लगा हुआ है। किसी लड़के
के कमरे मेँ अलग से टीवी नहीं है। जिसने टीवी देखना है, उसे
यहीं देखना है। ऐसा नहीं है कि बच्चों मेँ आपसी किच किच ना होती हो। बिलकुल होती
है। टीवी एक जो है। मगर कुछ क्षण मेँ सब ठीक। चचेरे भाई बहिन आपस मेँ किच किच नहीं
करेंगे तो उनमें आपसी समझ कैसे आएगी और अपनापन कैसे पनपेगा एक दूसरे के प्रति। फिर
बच्चों की किच किच की भी क्या चर्चा। पल मेँ झगड़ा, दूजे पल
प्यार। उसके बाद तो याद ही नहीं रहता कि किच किच हुई किस बात पर थी। इतना ही नहीं
कोई बेटा-बहू भोजन अपने कमरे मेँ नहीं करता। सबको भोजन लॉबी मेँ करना है। कमरों
मेँ भोजन तभी जाएगा, जब कोई मजबूरी हो। कोई बच्चा बीमार है।
किसी को स्कूल का काम करवाना है और उसे टीवी से भी दूर भी रखना है। हर कोई इस बात
को समझ सकता है कि भोजन एक साथ ना भी किया जाए, पास पास बैठ
कर तो किया ही जाएगा। तब आपसी संवाद कितना
बेहतर होगा! संवाद है तो कोई बड़ा झंझट नहीं होता परिवार मेँ। सौ प्रकार की सलाह, विचार विमर्श हो जाता है, साथ बैठने से। थोड़ी खिट
पिट होती भी है तो बात चीत से गायब। वरना तो रात को काम से आए और सब के सब चले गए
अपने अपने कमरे मेँ भोजन और बच्चे लेकर। कौन किस से संवाद करेगा और किस से कैसे
सलाह होगी! सब के सब अकेले। जब कोई एक दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता तो
फिर सबको अकेला ही रहना पड़ता है। यह दस्तूर है। अब इस व्यवस्था को कोई हिटलर शाही
कहे या सास को ललिता पवार की संज्ञा दे तो उसकी मर्जी। ये व्यक्ति की नजर और सोच पर निर्भर है कि वह
इसमें क्या, किस रूप मेँ देखता है? परंतु इसमें कोई शक नहीं कि आज के दौर मेँ ऐसे
शानदार, संस्कारी, गरिमामय पारिवारिक
प्रबंधन के बारे मेँ सोचा भी नहीं जा सकता। इन शब्दों मेँ जिस परिवार का जिक्र
किया गया है, वह आर्थिक रूप से सम्पन्न है। ये जिक्र उनकी अप्रोच, धन का नहीं बल्कि चर्चा उस नई लीक की है, जो
उन्होने बनाई है। यह परिवार कोई अंजाना नहीं। सबका नहीं तो अधिकांश का जाना पहचाना
है। ये परिवार है चेम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष बी डी जिंदल का । इन शब्दों पर भी
गौर करो---
नए दौर मेँ संस्कृति और संस्कारों का बंटाधार हो गया,चाचा चाचू, मामा मामू, जीजा जीजू और बाप यार हो गया।
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