Sunday, February 22, 2009
ये क्या है? भ्रम,चमत्कार,या अन्धविश्वास
कई बार ऐसा होता है जब हमें अलग सा लगता या महसूस होता है। लेकिन व्यस्त जिंदगी के कारण हम उस बात को भुला देते हैं,या जान बूझकर उसकी चर्चा नहीं करते। कल शनिवार को भी एक परिवार ने ऐसा ही देखा और महसूस किया । परिवार ने अपने पूजा घर में शनि देवता की फोटो के सामने रुई से बनी पतली सी जोत जगा दी। कुछ क्षण के बाद जोत ने कुछ भिन्न प्रकार का रूप ले लिया। जोत की पतली सी नोक पर "कुछ" दिखाई देने लगा। काले रंग का यह "कुछ"साफ साफ दिखाई दे रहा था। अब जोत की अग्नि उसके चारों तरफ़ से आने लगी। जबकि इस प्रकार की जोत की लौ पतली और सीधी होती है। जिस घर में ऐसा हुआ वे पूजा पाठ में यकीन तो करते हैं लेकिन अन्धविश्वासी नहीं हैं। जो कुछ है वह आंखों के सामने है इसलिए उसको केवल कपोल कल्पना भी नहीं कहा जा सकता। अब आख़िर ये है क्या? ये जानने की जिज्ञासा के चलते ही उसका विडियो यहाँ पोस्ट किया गया है। ताकि समझदार,ज्ञानीजन ये बता सकें की आख़िर ये है क्या।
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11 comments:
अन्धविश्वास ही, क्योकि उस जोत कॊ रुई वाली बत्ती को ध्यान्से देखे बीच मै काफ़ी मोटी है ओर उस पर कार्बन जम गया, ओर ऊपर तक घी पहुचे उस सेपहले ही पतले हिस्से को आग ने पकड लिया, जिस कारण ऎसा लगता है, फ़िर भगवान ने कुछ करना होगा तो उसे वाजीगरो की तरह से चमत्करो की क्या जरुरत.
यह बस एक भीड इकट्टी करने ओर प्रचार करने का एक ढंग है.
धन्यवाद
रूई की नोक पर बहुत बार कार्बन जम जाने से इस तरह की लौ बन जाती है। विश्वास के साथ इसलिए कह पा रहा हूं क्योंकि सुबह-शाम घर पर जलने वाले दीपक पर ऐसा होते बहुत बार देखा है। सावधानी से यदि कार्बन हटा दें तो दीपशिखा पुर्ववत जलती रहती है।
कार्बन का जमना शायद घी तेल या फिर रूई पर किसी केमिकल के प्रभाव से कम ज्यादा हो सकता है। कम होने की सूरत में कार्बन साथ-साथ जा जाता है सो पता नहीं चलता।
गगन शर्मा जी की बात से सहमत हूँ।
मानो तो मैं गंगा माँ हूँ, न मानो तो बहता पानी. सबकी अपनी अपनी आस्था और मान्यताऐं हैं.
लोगों कि आस्था इस हद तक बढ़ चुकी है इन चीजों पर कि उन्हें यकीन दिलाना काफी मुश्किल है कि ये चमत्कार नहीं अन्धविश्वास है. वैसे गगन जी कि बात से सहमत हूँ.
sab k apne apne vichar hote hain. main scientiffic thinking rakhta hun. yah normal bat hai.
agr kabhi aapko waqt mile to mera blog bhi dekhen
ये चमत्कार नहीं अन्धविश्वास है.
मानो तो भगवान न मानो तो पत्थर
भाटिया जी एवं गगन जी से पूर्णत: सहमत..किन्तु विश्वास तथा अंधविश्वास में फर्क करना बहुत मुश्किल हैं.क्य़ों कि बीच में श्रद्धा जो आडे आ जाती है.
apne mera blog padha aur saraha, shukria. chetan anand
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