श्रीगंगानगर-कोई भूमिका नहीं,बस आज सीधे सीधे यही कहना है कि जिन नेताओं के हाथ में देश सुरक्षित नहीं
है,देश की रक्षा करने वाले जवान सुरक्षित नहीं है उनको सुरक्षा देने का कोई औचित्य नहीं। उनकी सुरक्षा
क्यों करें सुरक्षा बल। उन्हे
सुरक्षा किस लिए! इसलिए ताकि सुरक्षा बालों का हौसला गिरे या फिर इसलिए ताकि उनके
राज में दुश्मन देश जब जो चाहे हरकत कर मेरे महान भारत और भारतियों की
खिल्ली उड़ाता रहे! उनकी सुरक्षा में डटे सभी जवानों,अधिकारियों को हट जाना चाहिए। खुला छोड़ देना चाहिए ऐसे
नेताओं को ताकि जनता उनको पत्थरों से नहीं तो अपनी तीखी नजरों से मार दे। इस देश
का भाग्य देखो कि सुरक्षा बल उन नेताओं की सुरक्षा कर रहें हैं जिनको भारत की आन,बान,शान की कोई चिंता नहीं। सुरक्षा बल उनकी चौकसी करने को मजबूर हैं जो ना तो
सीमाओं की रक्षा कर पा रहें हैं और ना सीमाओं की रक्षा करने वालों की। जब ये नेता
किसी काम के नहीं तो फिर इनको सुरक्षा किस बात की! कूड़े कचरे की सुरक्षा
करने की जरूरत ही क्या है! पाक जब चाहे हमारी सीमा में आकर जवानों को मार देता है।
उनके सिर काट कर साथ ले जाता है। और हमारे भांत भांत के नेता अपने सिरों
पर सत्ता का ताज लिए बस खाली शब्द बाण छोड़ देते हैं। ये शब्द बाण पाक का तो कुछ
नहीं बिगाड़ते हाँ अपने देश की जनता की छाती भेद कर दिल में उतर जाते हैं। वह रोती है...चीखती
है....आक्रोशित होती है.....परंतु नेता राजनीति का खेल खेलते रहते हैं। सत्ता
पाने या आई हुई सत्ता को बचाने के जुगाड़ के अतिरिक्त कुछ नहीं करते ये नेता । कैसी
लाचारी है इस देश की। कैसी बेबस है इस देश की जनता। आज पूरा देश गुस्से में है....बच्चे से लेकर बुजुर्ग
तक की आँखों में एक ही सवाल कि ये हो क्या रहा है! कब तक,आखिर कब तक पाक इस प्रकार से हमारे
सैनिकों को मार हमारे गौरव को ललकारता
रहेगा! देश का हर नागरिक जानता है कि आर्थिक,सामाजिक,धार्मिक,राजनीतिक,कूटनीतिक
मोर्चे पर सब कुछ तहस नहस हो चुका है। इसके बावजूद ये नेता अपनी सत्ता लोभी हरकतों
से बाज नहीं आते। ये ठीक है कि जवाबी कार्यवाही करने से पहले कूटनीति,राजनीति,विदेश नीति के बारे में बहुत कुछ देखना और सोचना पड़ता
है। लेकिन इसका ये अर्थ तो नहीं कि कोई आपके देश पर हमला करे.....एक बार ...दो बार...बार बार.....इसके बावजूद
आप कोई जवाब ना दें। केवल इन नीतियों के भरोसे तो देश की सुरक्षा नहीं हो सकती।
इनके कारण देश को दुश्मनों के हाथ तो नहीं सौंपा जा सकता। अगर इन नीतियों में
घुटने टेकना लिखा है इनको बदल दिया जाना चाहिए। जब तक देश को भरोसा नहीं
हो जाता कि ये नेता कुछ करेंगे तब तक इनको राम भरोसे छोड़ देना चाहिए।
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