Tuesday, October 27, 2009

मायका है एक सुंदर सपना


नारदमुनि कई दिन से अवकाश पर हैं। अवकाश और बढ़ने वाला है। जब तक नारदमुनि लौट कर आए तब तक आप यह पढो, इसमें विदा होती बहिन के नाम कुछ सीख है। मायके वालों का जिक्र भी है। जिक्र उस स्थिति का जब उनके घर से उनकी लड़की,बहिन,ननद.....कई रिश्तों में बंधी बेटी नए रिश्ते बनाने के लिए अपना घर झोड़ कर अंजान घर में कदम रखती है। उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि यह आप सबको बहुत ही भली लगेगी। क्योंकि यह तो घर घर की कहानी है।

8 comments:

Randhir Singh Suman said...

घर घर की कहानी है।nice

मनोज कुमार said...

पढ़ने वाले को उसकी अपनी कथा लगती है।

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया आप कहते है तो पढ़ते रहेंगे. नारायण नारायण

राज भाटिय़ा said...

जो भी अपनी बेटी को ऎसी शिक्षा दे गा, उस की बेटी अपनी ससुराल मे राज करेगी, बहुत सुंदर लिखा. धन्यवाद
अच्छे संस्कारो से भरी यह कविता.
धन्यवाद

Bhoopendra pandey said...

bahut accha.....

Bhoopendra pandey said...

bahut accha.......

रचना दीक्षित said...

नारद मुनि जी मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद व संसकारों से ओत प्रोत कविता के लिए बधाई

पंकज वर्मा said...

मैं अपनी ध्रिष्ठता के लिए क्षमा चाहता हूँ. लेकिन इस कविता को लेकर मैं आपसे सहमत नहीं हूँ. आपने जो भी लिखा है, वो सत्य हो सकता है, परन्तु क्या हमें बदलते दौर में बदलाव की बात नहीं करनी चाहिए. आखिर पति की इच्छा सर्वोपरि क्यूँ मानी जाए? एक नारी से ही त्याग की उम्मीद, सच होते हुए भी ये गलत लगता है.