Friday, October 16, 2009

जो बोया वही काटेंगे

बंगाल की टीवी रिपोर्टर शोभा दास के खिलाफ केस, चंडीगढ़ में प्रेस से जुड़े लोगों को कमरे में बंद किया, जैसी खबरें अब आम हो गई हैं। महानगरों में रहने वाले,बड़ी बड़ी तनख्वाह पाने वाले, ऊँचे नाम वाले पत्रकारों को कोई अचरज इन ख़बरों से हो तो हो हमें तो नहीं है। हो भी क्यूँ, जो बोया वही तो काट रहें हैं। वर्तमान में अखबार अखबार नहीं रहा एक प्रोडक्ट हो गया और पाठक एक ग्राहक। हर तीस चालीस किलोमीटर पर अखबार में ख़बर बदल जाती है। ग्राहक में तब्दील हो चुके पाठक को लुभाने के लिए नित नई स्कीम चलाई जाती है। पाठक जो चाहता है वह अख़बार मालिक दे नहीं सकता,क्योंकि वह भी तो व्यापारी हो गया। इसलिए उसको ग्राहक में बदलना पड़ा। ग्राहक को तो स्कीम देकर खुश किया जा सकता है पाठक को नहीं। यही हाल न्यूज़ चैनल का हो चुका है। जो ख़बर है वह ख़बर नहीं है। जो ख़बर नहीं है वह बहुत बड़ी ख़बर है। हर ख़बर में बिजनेस,सनसनी,सेक्स,सेलिब्रिटी,क्रिकेट ,या बड़ा क्राईम होना जरुरी हो गया। इनमे से एक भी नहीं है तो ख़बर नहीं है। पहले फाइव डब्ल्यू,वन एच का फार्मूला ख़बर के लिए लागू होता था। अब यह सब नहीं चलता। जब यह फार्मूला था तब अख़बार प्रोडक्ट नहीं था। वह ज़माने लद गए जब पत्रकारों को सम्मान की नजर से देखा जाता था। आजकल तो इनके साथ जो ना हो जाए वह कम। यह सब इसलिए कि आज पत्रकारिता के मायने बदल गए हैं। मालिक को वही पत्रकार पसंद आता है जो या तो वह बिजनेस दिलाये या फ़िर उसके लिए सम्बन्ध बना उसके फायदे मालिक के लिए ले। मालिक और अख़बार,न्यूज़ चैनल के टॉप पर बैठे उनके मैनेजर,सलाहाकार उस समय अपना मुहं फेर लेते हैं जब किसी कस्बे,नगर के पत्रकार के साथ प्रशासनिक या ऊँची पहुँच वाला शख्स नाइंसाफी करता है। क्योंकि तब मालिक को पत्रकार को नमस्कार करने में ही अपना फायदा नजर आता है। रिपोर्टर भी कौनसा कम है। एक के साथ मालिक की बेरुखी देख कर भी दूसरा झट से उसकी जगह लेने पहुँच जाता है।उसको इस बात से कोई मतलब नहीं कि उसके साथी के साथ क्या हुआ,उसे तो बस खाली जगह भरने से मतलब है। अब तो ये देखना है कि जिन जिन न्यूज़ चैनल और अख़बार वालों के रिपोर्टर्स के साथ बुरा सलूक हुआ है,उनके मालिक क्या करते हैं। पत्रकारों से जुड़े संगठनों की क्या प्रतिक्रिया रहती है। अगर मीडिया मालिक केवल मुनाफा ही ध्यान में रखेंगें तो कुछ होनी जानी नहीं। संगठनों में कौनसी एकता है जो किसी की ईंट से ईंट बजा देंगे। उनको भी तो लाला जी के यहाँ नौकरी करनी है। किसी बड़े लाला के बड़े चैनल,अखबार से जुड़े रहने के कारण ही तो पूछ है। वरना तो नारायण नारायण ही है।

13 comments:

seema gupta said...

झिलमिलाते दीपो की आभा से प्रकाशित , ये दीपावली आप सभी के घर में धन धान्य सुख समृद्धि और इश्वर के अनंत आर्शीवाद लेकर आये. इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए.."
regards

निर्मला कपिला said...

ांअज त्यौहार के दिन भी इतने दीखे तेवर? नारायण नारायण । दीपावली की शुभकामनायें

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

एकदम सही बात कही आपने नारद जी ! कल एक टीवी खबरिया चैनल बार-बार अयोध्या में उसके कैमरामैन पर राजपाल यादव द्वारा थप्पड़ मारने को बार-बार दिखा रहा था ! मै तो कहूंगा की बहुत बढिया किया राजपाल ने, आखिर इन टाटपुन्जुओ को सर में चढाने भी तो यही लोग जाते है ! आपको दीवाली मुबारक !

विनोद कुमार पांडेय said...

बिल्कुल सही कहा आज कल अपने अख़बार और चैनल के प्रचार में सब क्या क्या कह जाते है..

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सुंदर व्यंजनाएं।
दीपपर्व की अशेष शुभकामनाएँ।
आप ब्लॉग जगत में निराला सा यश पाएं।

-------------------------
आइए हम पर्यावरण और ब्लॉगिंग को भी सुरक्षित बनाएं।

Anil Pusadkar said...

नारायण नारायण।
दीवाली की शुभकामनायें

अजय कुमार झा said...

आज जो हालत है मीडिया की ..उसमें ये सब देख कर अब कोई हैरत नहीं होती...हां मगर दुख जरूर होता है।

सामयिक और सार्थक लेख

ओम आर्य said...

बढ़ा दो अपनी लौ
कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,

इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की शुभकामना के साथ
ओम आर्य

Udan Tashtari said...

आज दिवाली है..जाने दिजिये..

सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

-समीर लाल ’समीर’

मनोज कुमार said...

आप दरिया हैं तो फिर इस वक्त हम खतरे में हैं
आप कश्ती हैं तो हमको पार होना चाहिए।
सारे ब्लॉगर चाव से पढने लगे हैं इन दिनों,
आपको नारद नहीं , अखबार होना चाहिए।
नारायण । नारायण ।

धर्मेन्‍द्र चौहान said...

पहले तो देरी से ही सही दीवाली की शुभकामनाएं। ये बात सही जैसा बोओगे वैसा काटोगो। कभी खादी का झोला टांगे, चप्‍पल पहने आदमी किसी नेता से बात कर लेता तो उसकी बारह बज जाती थी। आज कल तो नेताजी कहते आपके मालिक से बात हो गई है। फिर अपना फोन आगे कर कहता है लीजिए बात कर लीजिए।
घोर कलयुग नारायण नारायण

धर्मेन्‍द्र चौहान said...

पहले तो देरी से ही सही दीवाली की शुभकामनाएं। ये बात सही जैसा बोओगे वैसा काटोगो। कभी खादी का झोला टांगे, चप्‍पल पहने आदमी किसी नेता से बात कर लेता तो उसकी बारह बज जाती थी। आज कल तो नेताजी कहते आपके मालिक से बात हो गई है। फिर अपना फोन आगे कर कहता है लीजिए बात कर लीजिए।
घोर कलयुग नारायण नारायण

धर्मेन्‍द्र चौहान said...

पहले तो देरी से ही सही दीवाली की शुभकामनाएं। ये बात सही जैसा बोओगे वैसा काटोगो। कभी खादी का झोला टांगे, चप्‍पल पहने आदमी किसी नेता से बात कर लेता तो उसकी बारह बज जाती थी। आज कल तो नेताजी कहते आपके मालिक से बात हो गई है। फिर अपना फोन आगे कर कहता है लीजिए बात कर लीजिए।
घोर कलयुग नारायण नारायण