Tuesday, June 2, 2009

सौ सौ रूपये बस, इतनी मंदी है क्या

बात पाँच चार साल पुरानी होगी। नगर के बहुत बड़े सेठ के यहाँ से शादी का कार्ड आया। कार्ड आया तो जाना ही था। चला गया। लिफाफा ना देने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था। दूसरे दिन बड़े भाई साहब ने घर पर कार्ड देखा और बोले, शादी में गया था? क्या दिया? मैंने बताया, इकतीस रूपये दिए। उन्होंने कहा, इतने बड़े सेठ के केवल इकतीस! मैंने उनसे कहा, भाई साहब मैंने उनकी हैसियत के हिसाब से नही अपनी हैसियत के अनुसार दिए हैं। उनकी हैसियत से तो जो भी देता कम ही पड़ते। यह सच्ची बात आज नॉएडा में हुई उस प्रेस कांफ्रेंस की भूमिका में जिसमे प्रेस नोट के लिफाफे में सौ सौ रूपये दिए गए पत्रकारों को। मेरे हिसाब से तो आयोजकों ने अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत से सौ सौ रूपये दिए। अगर उन्होंने पत्रकारों की हैसियत के अनुसार दिए तो यह बहुत ही चिंता का विषय है। चिंता इसलिए कि जहाँ मीडिया की तोपें रहतीं हैं वहां प्रेस कांफ्रेंस में केवल सौ सौ रूपये! बड़े ही अफ़सोस की बात है। इतनी मंदी तो नहीं है कि केवल सौ सौ रूपये में काम चलाया जाए। एक टीवी चैनल पर मैंने ख़ुद देखा। लिफाफे में सौ का नोट था। अगर नॉएडा जैसे महानगर में प्रेस कांफ्रेंस का यह स्तर है तो हमारे शहर में क्या होगा? हे भगवन ! किसी लीडर ने यह ख़बर ना देखी हो,वरना यहाँ तो फ़िर पाँच-पाँच,दस -दस ही लिफाफे में आयेंगें। ऐसे में तो जीना मुश्किल हो जाएगा।
चैनल वाले न्यूज़ एंकर ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि पत्रकार क्यों भड़के? केवल और केवल सौ रूपये देख कर या रूपये देख कर। वैसे जब चुनाव में खुल्लम खुल्ला रूपये लेकर खबरें छापी और छपवाई गई तो उसके बाद यही तो होना था। सब नेता जानते हैं कि ख़बर तो मालिक ने छापनी है। प्रेस कांफ्रेंस में आने वाले तो बस कर्मचारी हैं। इसलिए जो उनके दे दिया वह उनपर अलग से मेहरबानी ही तो है। इसमे इतना लफड़ा करने की क्या बात है। जिसने लेना है ले जिसने नही लेना ना ले।

7 comments:

श्यामल सुमन said...

किरदार चौथे खम्भे का हाथी के दाँत सा।
क्यों असलियत छुपा के दिखाती है जिन्दगी।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Gyan Darpan said...

पता नहीं आयोजकों ने अपनी हैसियत के हिसाब से नोट दिए थे या फिर इनकी औकात देख कर ?

समयचक्र said...

ये भी एक मंदी बस सौ रुपये
नारायण नारायण

अजय कुमार झा said...

are patrakaar sammelano mein lifafe bhee baantein jaate hain ...ye to pehlee baar hee pata chala....kamaal hai ....daam ke daam .guthliyon ke daam....kaahe kee mandi....fir to theek hai yaar....

Murari Pareek said...

हूँ मुझे लगता है पत्रकारों की एक स्टैण्डर्ड रेट होनी चाहिए या पहले अपना मेनू भिजवा देना चाहिए !!! हा..हा..हा...

Mohammed Umar Kairanvi said...

आप तो कथ‍ित नारद की तरह मुझे अक्‍सर नज़र आते रहे, आज आपके लेख भी देखे, पत्रकारों संबंध में आपने अच्‍छा लिखा, मेरे मित्र भी अधिकतर पत्रकार ही हैं, उन्‍हें भी आपका यह लेख भेजूंगा, बहुत अच्‍छा लगा,
नारदमुनि से अंतिम अवतार के मामले में कैसे चूक होगई ? नारदमुनि जी आपने अनुसर्ण किया antimavtar ब्‍लाग का और टिप्‍पणी दी है antimawtar ब्‍लाग पर, इस विषय पर आगे भी मेरे पास बहुत कुछ है वह में W वाले अर्थात antimawtar पर ही पोस्‍ट करूंगा, यदि आप अनुसर्ण करना चाहते हैं तो W से लिखे अंतिम अवतार का करें, आप जैसे प्रसिद्ध ब्‍लाग्‍ार के अनुसर्ण करने के कारण ही मुझे वहाँ लिखना पडाः

उर्दू पुस्‍तक में W और V के प्रयोग बारे में पढा था कि जब व के पश्‍चात अ की आवाज निकले तो w और अगर इ या ई की आवाज आये तो V का प्रयोग होगा, अतः उस नियम के अनुसार antimawtar ब्‍लाग बुक कर लिया, जबकि प्रचलित antimavtar था, जनहति या धर्म हित में समझें यह नाम भी बुक कर लिया, आज 3 june के delhi times, page 8 पर अवतार शब्‍द का तीसरा रूप अर्थात v के पश्‍चात 'a' भी देखने को मिला, उक्‍त समाचारपत्र मे शब्‍द 'avatar' लिखा है, मैं किया करूँ? आप बतायें, ब्‍लाग नाम V के पश्चात A से antimavatar.blogspot.com भी बुक करूँ?

डॉ. मनोज मिश्र said...

इसकी भी अजबय हाल है .