सालों पहले रोटी कपड़ा और मकान फ़िल्म में एक गाना था। उस गाने में कहा गया था...... पहले मुठ्ठी में पैसे लेकर थैला भर शक्कर लाते थे,अब थैले में पैसे जाते हैं और मुठ्ठी में शक्कर आती है।
एक फ़िल्म और थी, गोपी। उसका गाना था....रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा, हंस चुगेगा दाना तुनका कौव्वा मोती खायेगा। इसी गाने में कहा गया था.....चोर उच्चके नगर सेठ और प्रभु भगत निर्धन होंगें,जिसके हाथ में होगी लाठी भैंस वही ले जाएगा.....
क्या कमाल की बात है कि जो आज हो रहा है वह हमारे गीतकारों ने उसकी कल्पना सालों पहले ही कर ली थी। उक्त गानों के ये बोल हमारे आज के जीवन में पूरी तरह से फिट है। वैसे इन बातों को ऐसे भी कह सकतें हैं कि घोडों को घास नहीं मिलती और गधे गुलाबजामुन खा रहे हैं।
2 comments:
नारायण-नारायण्।
जो बढ़ती ही बढ़ती है घटती नहीं वही तो महंगाई है।
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