Friday, March 18, 2011

फाल्गुन कैसे गुजरेगा सजनी करे विचार

दरवाजे पर खड़ी खड़ी
सजनी करे विचार,
फाल्गुन कैसे गुजरेगा
जो नहीं आए भरतार
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फाल्गुन में मादक लगे
जो ठंडी चले बयार,
बाट जोहती सजनी के
मन में उमड़ा प्यार
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साजन का मुख देख लूँ
तो ठंडा हो उन्माद ,
महीनों हो गए मिले हुए
रह रह आवे याद
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प्रेम का ऐसा बाण लगा
रिस रिस जावे घाव ,
साजन मेरे परदेसी
बिखर गए सब चाव
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हार श्रृंगार छूट गए
रही ना कोई उमंग,
दिल पर लगती चोट है
कौन बजा रहा चंग
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परदेसी बन भूल गया
सौतन हो गई माया,
पता नहीं कब आएंगे
जर जर हो गई काया
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माया बिना ना काम चले
ना प्रीत बिना संसार,
जी करता है उड़ जाऊ
छोड़ के ये घर बार
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