दरवाजे पर खड़ी खड़ी
सजनी करे विचार,
फाल्गुन कैसे गुजरेगा
जो नहीं आए भरतार।
---
फाल्गुन में मादक लगे
जो ठंडी चले बयार,
बाट जोहती सजनी के
मन में उमड़ा प्यार।
---
साजन का मुख देख लूँ
तो ठंडा हो उन्माद ,
महीनों हो गए मिले हुए
रह रह आवे याद।
---
प्रेम का ऐसा बाण लगा
रिस रिस जावे घाव ,
साजन मेरे परदेसी
बिखर गए सब चाव।
---
हार श्रृंगार छूट गए
रही ना कोई उमंग,
दिल पर लगती चोट है
कौन बजा रहा चंग।
---
परदेसी बन भूल गया
सौतन हो गई माया,
पता नहीं कब आएंगे
जर जर हो गई काया।
---
माया बिना ना काम चले
ना प्रीत बिना संसार,
जी करता है उड़ जाऊ
छोड़ के ये घर बार।
---
No comments:
Post a Comment