Monday, March 14, 2011
घोड़े की नाल की मार्केटिंग
श्रीगंगानगर --वो जमाना और था जब कोई बेहतर सामान बिना किसी अधिक एड और पीआरओ शिप के बिकता था। मार्केटिंग का कोई दवाब नहीं था। अब वक्त बदल चुका है। आप को अपने सामान की बढ़िया से बढ़िया मार्केटिंग करनी होती है। उसमे भी तरीके रोचक,नए हों तो बात अधिक लोगों तक पहुँचती है। पत्रकारिता में प्रोडक्ट को बेचने के फंडे पढाए और समझाए नहीं जाते। यहाँ तो ज़िक्र करेंगे काले घोड़े की नाल बेचने के नए ढंग का। काले घोड़े की नाल का तंत्र,मन्त्र,ज्योतिष में बहुत अधिक महत्व है। कई प्रकार के टोटके उस से किये जाते हैं। बहुत से इन्सान इसको घर के बहार टांगते हैं। बहुत से छल्ला बनाकर अंगुली में पहनते हैं। इसका मिलना मुश्किल होता है। अब इसको आसन बना दिया है एक तरकीब ने। गत कई सप्ताह से शहर के अलग अलग इलाके में किसी सड़क के किनारे एक या दो काले घोड़े खड़े दिखाई देते हैं। उनके साथ होते हैं उनके पालक युवक। घोड़े के पास ही एक दो नाल पड़ी होती हैं। एक युवक घोड़े के खुर को पकड़ कर ऐसा कुछ कर रहा होता है जैसे खुर से अभी अभी नाल गिरी हो और वह उसके स्थान पर दूसरी नाल लगा रहा है। आज घर घर में टेंशन है। हर प्राणी थोड़े या अधिक अवसाद में है। मुस्कुराना भूल गया है। परेशानी से छुटकारा पाने की चिंता उसे हर पल लगी रहती है। ऐसे में जैसे ही उसे काला घोडा,नाल दिखाई देती है तो उसके कदम,वाहन धीमे हो जाते हैं। वह देखता है। यही तो घोड़े वाले चाहते हैं। सबके सामने है,काला घोडा, असली नाल। मोल भाव शुरू होता है। जैसी सूरत वैसे दाम। ढाई सौ से आरम्भ होकर सौ रूपये तक आ जाते हैं। बहुत मुश्किल से खोजबीन ,लम्बे इंतजार के बाद भी जो असली घोड़े की नाल मिलनी आसान ना हो वह बिना किसी प्रयास के सुलभ हो जाये तो इन्सान उसे खरीद ही लेता है। ऐसा हो भी रहा है। मीरा मार्ग,रवीन्द्र पथ,भगत सिंह चौक, भगत सिंह चौक और गंगा सिंह चौक के बीच सहित अनेक इलाकों में इस प्रकार घोड़े की नाल बेचीं जा रही है। इस से बढ़िया किसी वस्तु की मार्केटिंग और क्या हो सकती है! इसको कहते हैं जानदार,शानदार,दमदार पीआरओ शिप। ज्योतिष के लिहाज से यह नाल कितनी पुरानी होनी चाहिए इसको लेने और देने वाले जाने। बेचने वाला तो क्या जाने उसको तो अपना माल बेचना है। हम ये नहीं कहते कि वह किसी से कोई धोखा कर रहा है। वह तो बस लोगों की भावनाओं को अपने लिए कैश कर रहा है। वैसे ज्योतिष विद्या के माहिर लोगों का ये कहना है कि घोड़े की नाल जितनी पुरानी हो उतना ही बढ़िया। ऐसा नहीं कि एक दिन चलाई और उतारकर बेच दी। ऐसी नाल अधिक असरदार हो ही नहीं सकती। यह नाल अधिक से आधिक घिसी हुई होनी चाहिए। घिस घिस कर घोड़े की नाल का रंग एक दम चमकने लगता है ऐसे जैसे कि वह लोहा नहीं स्टील हो। वैसे किसी के भाग्य को कोई बदल नहीं सकता। कई बार अच्छी दवा काम नहीं करती एक चुटकी राख से मर्ज ठीक हो जाता है।
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