Monday, July 27, 2009

प्रेम,लगाव, हिंसा और तोड़फोड़

हिन्दूस्तान के लोगों में प्रेम,स्नेह,लगाव,आस्था,श्रद्धा प्रकट करने का तरीका बहुत ही अलग है। हम प्राणी मात्र के प्रति अपने लगाव का प्रदर्शन भी इस प्रकार से करते हैं कि उसकी चर्चा कई दिनों तक रहती है। हमारे इस प्रदर्शन से किसको कितना दर्द, तकलीफ पहुंचती है,उससे हमें कोई लेना देना नही है। गत दिवस हमरे निकट एक कस्बे में चार सांड और दो बच्छियों की संदिग्ध मौत हो गई। वहां के थानेदार ने यह कह दिया कि यह तो रोड एक्सीडेंट से हुआ। बस, फ़िर क्या था। कस्बे में हंगामा हो गया। हिंसा, तोड़फोड़,पत्थर बाजी हुई। सरकारी बस को आग लगा दी गई। रेल गाड़ी को रोका गया। तोड़ फोड़ की गई। कई घंटे अराजकता रही। अब जिले के कई स्थानों पर गो भक्तों का आन्दोलन शुरू हो रहा है। कोई गिरफ्तारी देने की बात कर रहा है तो कोई बाज़ार बंद करवाने की। ठीक है, आस्था और श्रद्धा की बात है। मगर यह आस्था और श्रद्धा उन सांडों और गायों के प्रति क्यूँ नहीं दिखाई जाती जो गलियों में गन्दगी खाती घूमती हैं। ये धार्मिक लोग तब कहाँ चले जाते हैं जब लोग गलियों में इनपर लाठियाँ बरसाते हैं। ये प्रश्न इन लोगों से पूछा ही जाना चाहिए कि इतनी गोशालाएं, जिनके पास करोडों रुपयों की एफडी होती हैं, होने के बावजूद गायें,गोधे लावारिस क्यों घूमते हैं। इतने हमदर्द होने के बावजूद इनका दर्द क्यों नहीं दूर किया जाता? जब ये जिन्दा होते हैं तब तो गंदगी खाकर अपना जीवन बितातें हैं और जब किसी हादसे का शिकार हो जाते हैं तब इनके लिए हिंसा की जाती है। यह तो वैसा ही है जैसे हम बुजुर्ग माता पिता को दवा के अभाव में मरने देते हैं,मौत के बाद समाज को दिखाने के लिए हजारों हजार रूपये खर्च करते हैं उनके ही नाम पर। ये कैसा चरित्र है हमारा? बाहर से कुछ और अन्दर से और। इसमे कोई शक नहीं कि हम प्राणी मात्र के प्रति प्रेम करते हैं, किंतु यह प्रेम उनके मरने के बाद ही क्यूँ बाहर आता है?वह प्रेम किस काम का जिसके कारण सरकारी सम्पति बरबाद हो जाए,लोग तंग परेशान हों।

13 comments:

वाणी गीत said...

है तो बात पते की ..!!

समयचक्र said...

सही है नारायण नारायण...

seema gupta said...

दुखद...

regards

निर्मला कपिला said...

नारायण नारायण सुबह सुबह बेचारे लोगों पर इतना बडा प्रश्न दाग दिया भाई जिन्दा रहते तो ये मा बाप को नहीं पूछते मरने पर श्राध करते हैं और पंडितों को क्सीर हलवा खिलाते हैं फिर ये तो पशू हैं बहुत सत्य बात कही आपने आभार्

डॉ. मनोज मिश्र said...

सही है .
नारायण नारायण...

Unknown said...

baat mein dam hain shreemaan

Pawan Kumar Sharma said...

बात है तो पते की

Unknown said...

गाय हमारी माता तो है... उसे रोटी भी देंगे लेकिन तभी देंगे जब वो बासी हो जाये तभी जब वो खाने लायक न रहे.... दोहरी मानसिकता के पुराने शिकार हैं हम सब...
क्या करेंगे....
www.nayikalam.blogspot.com

Anonymous said...

Hi,

Thank You Very Much for sharing this informative article here.

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Nice Work Done!!

Paavan

शोभना चौरे said...

bahut shi kha hai .

शशांक शुक्ला said...

प्रेम किसी पर भी कभी भी उमड़ सकता है!!!!!

राजन अग्रवाल said...

किसी को गाय या सांड से मतलब नहीं है. सबको मौका चाहिए राजनीति चमकाने का, मीडिया में आने का.. और क्या.. वैसे ये काफी दुखद है..

डॉ महेश सिन्हा said...

gaya hamari mata hai , hamko kuch nahi aata hai