आशंकाओं के बिल्कुल उलट पाकिस्तान में सब कुछ ऐसे शांत हो गया जैसे कहीं कुछ अशांत था ही नहीं। मीडिया पाक में पता नहीं क्या क्या होने की आशंका,संभावना जाता रहा था, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। वहां के सैनिक अफसर,राजनेता,सरकार कैसी है इस बारे में कोई बात नहीं करेंगे। बात उस जनता की जिसको लोकतंत्र में रहने की आदत नही इसके बावजूद उसने परिपक्वता का परिचय दिया। इतना लंबा मार्च,हजारों हजार जनता,सब के सब अनुशासित। सरकार के खिलाफ आक्रोश परन्तु सरकारी सम्पति को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुँचाया। मीडिया में एक भी ख़बर ऐसी नहीं थी जिसमे ये बताया गया हो कि जनता ने फलां स्थान पर सम्पति को नुकसान पहुँचाया। इसको परिपक्वता नहीं तो और क्या कहेंगें।
इसके विपरीत हिंदुस्तान में अगर ऐसा होता तो सबसे पहले सरकारी सम्पति की ऐसी की तैसी होती। सबसे बड़े लोकतंत्र वाहक रेल पटरियां उखाड़ देते, सरकारी भवन,सरकारी वाहनों को आग के हवाले कर दिया होता। जो उनके रास्ते में आता तहस नहस हो जाता। हिंदुस्तान में इस प्रकार से न जाने कितनी बार हो चुका है। हमारी तो फितरत है, " हारेंगें तो मारेंगें,जीतेंगें तो लूटेंगें"। पाकिस्तानियों ने ऐसा कुछ भी नहीं किया।
लोकतंत्र की डींग मारने वाले हिन्दुस्तानी अपने पड़ौसी से कुछ तो सीख ही सकते हैं। पाकिस्तान की जनता को सलाम करने में मेरे ख्याल से कोई बुराई नहीं है। चाहे पाकिस्तान में यह सब कुछ दिनों के लिए ही हो , किंतु जब अच्छा हुआ तब तो उसकी प्रशंसा कर ही देनी चाहिए।
4 comments:
जी हाँ आपने वाकई एक अहम प्रश्न उठाया है..
" really matter of thought and concern.."
Regards
मीडिया पाकिस्तान में बढ़ रहे तालिबान और उन के साथियों की ताकत को तो बढ़ा चढ़ा कर बता रहा है। लेकिन वहाँ जनतंत्र की ताकतें जो मजबूत हो रही हैं उन का कोई मूल्यांकन नहीं कर रहा है।
सत्य वचन .
नारायण नारायण
Post a Comment