किसी बड़े साहब या बड़े आदमी की बीबी को कोई भाभी कहने की हिम्मत नहीं करता। उसको बहिन जी,दीदी या मैम कहकर बुलाया जाता है। किंतु साधारण व्यक्ति की ज्ञानवान,गुणवान,संस्कारी और व्यवहार कुशल पत्नी को भी सब भाभी कहने में आनंद का अनुभव करते हैं। ऐसा ही कुछ कर रहा है श्रीगंगानगर से प्रकाशित एक बहुत बड़े समूह का अखबार। राजस्थान पत्रिका नामक इस जाने माने अख़बार के सम्पादकीय पेज के ऊपर लिखा रहता है"हो सकता है मैं आपके विचारों से सहमत न होऊं फ़िर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकारों की रक्षा करूँगा। -वाल्तेयर"। फ़ैसला पाठकों को करना है की यहाँ के सम्पादकीय से जुड़े सम्मानित जन ऐसा करते हैं या नहीं। हम तो केवल कुछ ख़बरों की जानकारी देंगें। श्रीगंगानगर में सोमवार को नगर के कई प्रतिष्ठित कपड़ा और चांदी-सोने के कारोबारियों के यहाँ आयकर विभाग ने कार्यवाही की। विभाग के अधिकारियों के साथ बड़ी संख्या में पुलिस भी थी। यह ख़बर पत्रिका के अन्तिम पेज पर "आयकर सर्वे से हड़कंप" हैडिंग से प्रमुखता से प्रकाशित हुई। ख़बर में बताया गया किअपर आयकर आयुक्त ने फर्म संचालको से देर शाम तक पूछताछ की, उनको नोटिस देकर बुलाया गया था। मगर पत्रिका में किसी फर्म का नाम नही लिखा। ऐसा ही २७ फरवरी को प्रथम पेज पर प्रकाशित ख़बर में किया गया। ख़बर का हैडिंग था"निजी चिकित्सा संस्थान पर आयकर छापा"। बड़ी ख़बर थी, लेकिन किसके खिलाफ यह कार्यवाही हुई ,नाम नहीं था।
अब दो दिन पहले की बात करें। पुलिस ने नगर के सभी साईबर कैफे के यहाँ जाकर रिकॉर्ड की जाँच की। उनको रिकॉर्ड किस प्रकार रखना है उसके बारे में निर्देश दिए। यह ख़बर पत्रिका ने नाम सहित छापी। बाकायदा साईबर कैफे के नाम लिखे गए जहाँ जहाँ पुलिस गई।
फर्क इतना ही है कि साईबर वालों का कोई माई बाप नहीं है, ना ही इनके पास अरबों रुपयों का कारोबार है। इसलिए इनके नाम छाप देने से कोई तूफान नहीं आने वाला था।
ख़बर में क्या लिखा जाएगा,किसका नाम होगा,नहीं होगा। यह उनकी पालिसी हो सकती है। लेकिन निष्पक्षता नहीं। चूँकि संपादक के पास सर्वाधिकार सुरक्षित हैं इसलिए उनको कुछ कहना सूरज को दीपक दिखाना है। किंतु एक पाठक यह प्रश्न तो कर ही सकता है कि क्या निष्पक्षता इसी को कहतें हैं? अगर कोई निष्पक्ष आदमी श्रीगंगानगर के सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित उक्त कार्यवाही से सम्बंधित समाचार पढ़े तो वह जान जाएगा की ऐसी "निष्पक्षता"तो छोटे अख़बार भी नहीं दिखाते। जिनको हर रोज आर्थिक संकट से दो चार होना पड़ता होगा।
मैं जानता हूँ किसी बड़े पर टिप्पणी करने से मुझ पर संकट आ सकता है मगर जो हो रहा है उसके बारे में लाखों पाठकों को जानकारी तो होनी ही चाहिए।
3 comments:
" interesting to read.."
Regards
बिलकुल सही लिखा, यानि यह समाचार पत्र वाले भी इन लोगो की रखेल बन गये है सीधे साधे ओर सचे शव्दो मै तो यही कहा जायेगा, फ़िर इन पर केसा विश्वास.
धन्यवाद, एक सच को उजागर करने के लिये
इससे तो यही पता लगता है की समाचार पत्रों मैं आनेवाले समाचारों की भी क्या असलियत होगी, जो हम पढ़ते हैं वो समाचार हैं भी की नहीं?
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