Monday, February 9, 2009

भिखारिन के जज्बे को सलाम


आदमी थोड़ा देकर बहुत नाम कमाने की भावना दिल और दिमाग में रखता है। बहुत से ऐसे भी हैं जो सौ रुपल्ली का सामान अस्पताल में बाँट कर दो सौ रूपये उसके प्रचार में लगा देते हैं। मगर यह पोस्ट उनको समर्पित नहीं है। यह समर्पित है उस भिखारिन को जिसको भिखारिन कहना ही नही चाहिए। श्रीगंगानगर से प्रकाशित "प्रशांत ज्योति" दैनिक अखबार में एक ख़बर है। ख़बर यह बताती है कि एक भिखारिन ऐसे लोगों के लिए लंगर लगाती है जो असहाय है। इस भिखारिन के जज्बे को सलाम करते हुए यही कहना है कि हमें ऐसे लोगों से कुछ तो प्रेरणा लेनी ही चाहिए। "मजबूर" ने अपनी किताब "डुबकियां" में लिखा है---"कुछ देने से सब कुछ नहीं मिलता मजबूर,सब कुछ देने से कुछ मिलता है जरुर"। वे ये भी कहतें हैं--" हर जिंदगी है मुश्किल,हर जिंदगी है राज, मुझ से हजार होंगें,मुझ सी दास्ताँ नहीं"।

5 comments:

निर्मला कपिला said...

aapki is prerak post ke lite bahut bahut dhanyavaad aur bdhai

Vinashaay sharma said...

bhikarin ke is jajbe ko salam.

Udan Tashtari said...

मुझ से हजार होंगें,मुझ सी दास्ताँ नहीं..बिल्कुल सही.

अच्छी पोस्ट.

seema gupta said...

दिल खुश हुआ ऐसी भिखारिन महिला के बारे मे जान कर.....उनके जज्बे और पुन्य कार्य को सलाम..."

Regards

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

पता नहीं किन परिस्थितियों के वश इंसान को ऐसा समय देखना पड़ता है जब उसे दूसरों के सामने हाथ पसारने पड़ते हैं। उस महिला को सलाम है जिसने अपनी हालत को नकारते हुए दूसरों का ख्याल रखा। ऐसी ही एक घटना मेरे मित्र ने मुझे बताई थी। एक बार वह किसी पूजा के बाद खाने का सामान ले बांटने निकले थे। उन्होंने जब एक भिखारिन को खाना देना चाहा तो उसने यह कह कर मना कर दिया कि उसने आज का भोजन कर लिया है आप इसे और किसी जरूरत मंद को दे दें।