उठ मां,
मुझ से दो बातें करले
नो माह के सफर को
तीन माह में विराम
देने का निर्णय कर
तू चैन की नींद सोई है,
सच मान तेरे इस निर्णय से
तेरी यह बिटिया बहुत रोई है,
नन्ही सी अपनी अजन्मी बिटिया के
टुकड़े टुकड़े करवा
अपनी कोख उजाड़ दोगी!
सुन मां,
बस इतना कर देना
उन टुकडों को जोड़ कर
इक कफ़न दे देना,
ज़िन्दगी ना पा सकी
तेरे आँगन की चिड़िया
मौत तो अच्छी दे देना,
साँसे ना दे सकी ऐ मां,मुझे तू
मृत रूप में
अपने अंश को देख तो लेना
आख़िर
तेरा खून,तेरी सांसों की सरगम हूँ,
ऐ मां,मुझसे इतनी नफरत ना करना
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लेखक--डॉ० रंजना
३१६/अर्बन एस्टेट सैकिंड
भटिंडा[पंजाब]
यह कविता डॉ० रंजना के भाई डॉ० विवेक गुप्ता के बताकर यहाँ पोस्ट की गई है।
8 comments:
रूला देने वाली पोस्ट...सुंदर अभिव्यक्ति हुई है विचारों की।
साँसे ना दे सकी ऐ मां,
मुझे तू मृत रूप में
अपने अंश को देख तो लेना
आख़िर तेरा खून,तेरी सांसों की सरगम हूँ,
ऐ मां,मुझसे इतनी नफरत ना करना
" सबसे उपर वाला चित्र देख कर ही मन व्यथित हो गया और जब पढना शुरू किया तो ......आंसुओ को रोक ही नही पाई .....एक अजन्मी बेटी की ये करुण पुकार दिल मे उथल पुथल मचा गयी.....क्यों एक माँ ऐसा फ़ैसला लेने पर मजबूर होती है......किस किस शब्द या पंक्ति का जिक्र करू , सरे शब्द जैसे जीवित चित्र बन गये आंखों के सामने.. इतना जानती हूँ की ये कविता रुला गयी......बहुत तकलीफ हुई....."
Regards
भावपूर्ण अभिव्यक्ति है आभार .
नारायण नारायण नमो नारायण
बड़ी मार्मिक और सारगर्भित कविता !!!!!!!!!!!!!!
दिल को छू गयी
बड़ी मार्मिक और सारगर्भित कविता !!!!!!!!!!!!!!
दिल को छू गयी
what a touching post!!made me very emotional & sad.
Wow.. Absolutely Stunning Post..
Thanks for bringing this to our Vision..
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