दिल्ली से श्रीगंगानगर के लिए चलने वाली इंटरसिटी एक्सप्रेस ट्रेन में ऐसा बहुत कुछ देखने और महसूस करने को मिला जिसका जिक्र करना लाजिमी सा लगा। ट्रेन के डिब्बे में मैले -कुचैले,फटे कपड़े पहने, बदन पर लटकाए कोई लड़का डिब्बे की सफाई करता हुआ कुछ पाने की आस में हाथ फैलाता है। कोई हाथ पर रखता है कोई उसकी और से मुहं फेर लेता है। कई दयालु यात्री उसको खाने को दे देते हैं। पत्थर के दो छोटे टुकड़े बजाकर गाना सुनाते हुए कोई लड़का या लड़की डिब्बे में आकर आपका ध्यान अपनी ओर खींच सकता है। गाने चाहे कानों में रस ना घोले मगर पत्थर के दो टुकड़े बजाने के अंदाज औरआवाज अवश्य आंखों , कानों को अच्छे लगते हैं। कुछ समय बाद आपको चार पाँच साल के लड़का लड़की जिम्नास्टिक करते दिखेंगें। ये सब कुछ ना कुछ करके, या अपनी टूटी फूटी कला का प्रदर्शन करके कुछ पाने के लिए यात्रियों के आगे हाथ फैलाते है। इनको भिखारी नही कहा जा सकता। कई यात्री इनसे सहानुभूति दिखाते हैं कई इनके बारे में अपमान जनक टिप्पणी करते हैं। ये तो साबित है कि ये भिखारी नही हैं। सम्भव है कभी ऐसा हो कि इनमे से कोई किसी फ़िल्म का पात्र नजर आए। क्योंकि भारतीय गरीबी की तो विदेशों में बहुत अधिक मांग है। कुछ भी हो ये बच्चे भिखारियों से तो बेहतर हैं। फ़िर भी ऐसे बच्चों के लिए किसी ना किसी को तो कुछ करना ही चाहिए। कहीं ऐसा ना हो कि इनका जीवन इसी प्रकार इस ट्रेन में ही समाप्त हो जाए।
ट्रेन के शौचालयों में अश्लील वाक्य भी बहुत अधिक मात्र में लिखे हुए थे। लिखने वाले कितनी गन्दी मानसिकता के होंगें यह आसानी से समझा जा सकता है। लेकिन ट्रेन की सफाई के जिम्मेदार अधिकारियों/कर्मचारियों को तो इनको साफ़ कर देना चाहिए।
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