धरा पर गर्जन करते
समंदर का निर्माण
तुमने किया है,
गंगा,यमुना,सरस्वती को
रास्ता तुमने दिया
है,
सृष्टि को जीवंत
करने वाले
दिन को जरूर
तुमने ही बनाया होगा,
रात को चांद तारों
से झिलमिल
आकाश को धरती के ऊपर
तुम्ही ने सजाया
होगा,
सैकड़ों किस्म के
मनभावन फूल
तुमने ही खिलाए
होंगे,
दिलकश रंग भर के ये
सब
तुमने ही महकाए
होंगे,
प्यारे सलोने
परिंदों ने
तुमसे ही सीखा होगा
उड़ान भरना,
अपनी मीठी बोली से
तुम्हारे ही दिल में
बसना,
तुम जानते हो ये सब
तुम्हारे बस में बिलकुल नहीं है,
तुम तो बस
रूप बदलने में माहिर
हो,
रूप चाहे खुद का हो या
प्रकृति के उपहारों
का,
रूप बदल तुम
अकड़ के चलते हो
किस और को नहीं
तुम खुद को छलते हो।
3 comments:
वाह....
बहुत सुन्दर भाव...
अनु
बहुत सुन्दर भाव !
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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सब भ्रम जाल सा है ...सुंदर प्रस्तुति
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