श्रीगंगानगर-तीन दृश्यों का जिक्र कर आगे
चलेंगे।दृश्य एक- युवती के दोनों हाथों में
ऊपर तक काफी चूड़ियां....सुर्ख लाल सफ़ेद...शालीन ड्रेस...खूब सिंगार और चलने की अदा बता रही थी कि शादी को अधिक समय
नहीं हुआ।साथ में टी शर्ट/शर्ट निक्कर पहने हुए पति जी।दृश्य दो-धार्मिक आयोजन....युवती कुछ अधिक
ही स्लीव लैस जम्पर वाले पहनावे के साथ पति के संग आई.....दरबार में मत्था टेकना है ताकि आयोजक को आने की जानकारी हो...वहां तक जाने में झिझक.... किसी से दुपट्टा
लिया...सिर और कंधे ढके तब मत्था टेका। दृश्य तीन-एक कोचिंग इंस्टीट्यूट
में जाने का मौका मिला। कुर्सी पर लगभग पसरे हुए युवक से,जिसकी शर्ट का ऊपर का बटन
खुला हुआ आता, परिचय करवाया
गया....ये जी के पढ़ाते हैं। हमने
वही तो देखा जो था। इसलिए ना तो नजर खराब
है और ना नीयत। कभी कभी ऐसा लगता है कि निक्कर श्रीगंगानगर की संस्कृति बन गई।
निक्कर कभी पांच-सात साल के बच्चे पहना करते थे। अब युवक अपनी नई नवेली पत्नी के
साथ इसे पहन सड़क पर घूमते हैं। सफर करते हैं। एक दूसरे के घरों में
आते जाते हैं। कोई हिचक नहीं....कोई झिझक नहीं। रात को या घर के
लिए बना पहनावा सड़क पर आ गया। दूसरे दृश्य के बारे में कुछ कहेंगे तो आप कहोगे, धर्म तो आस्था और विश्वास की बात
है....पहनावा कैसा भी हो क्या
फर्क पड़ता है। मन में श्रद्धा होनी चाहिए। कोई फर्क नहीं पड़ता जी। लेकिन वो हो तो आयोजन
के अनुरूप। इसमें कोई शक नहीं कि आपको कोई टोकेगा नहीं...लेकिन इसका ये मतलब तो
नहीं कि आप दिवाली पर फाग गाओ। आपको दुपट्टा मांग कर मत्था टेकना पड़े। खुद को अटपटा लगा तभी तो दुपट्टा मांगना पड़ा।
अगर आयोजन के अनुरूप ड्रेस होती तो ऐसा नहीं करना पड़ता। कोई फैशन शो
है....सौंदर्य प्रतियोगिता है.....तब तो आपको अलग बात है। यही बात टीचर की। उसका बैठने,उठने,चलने और हर आचरण
में शिक्षक दिखना चाहिए...झलकना चाहिए। शिक्षक का अपना महत्व है। वह समाज का पथ प्रदर्शक होता है। उसके मान सम्मान में एक आदर
का भाव भी सम्मिलित रहता है। बच्चा शिक्षक की गलती से बताई,समझाई गलत बात को भी सही मानेगा। इससे अधिक उसकी महता क्या
होगी! बात बेशक छोटी सी हैं। परंतु ये हैं वो जो हमारे समाज में आ रहे बदलाव को
बताती हैं। ये शुरुआत है तो अभी बहुत कुछ देखना बाकी है। ऐसा कुछ जो इससे भी आगे
की कथा कहने को “प्रेरित: करेगा।
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