श्रीगंगानगर-मोहन! इससे पहले कि मोहन जवाब देता उसकी लड़की बोली, “आ जाओ चाचा जी।“ “पापा हैं क्या” आने वाले ने पूछा। “क्यों पापा नहीं
होंगे तो अंदर नहीं आएगा क्या”,मोहन ने उसे बुलाते हुए कहा। आवाज
देने वाला चचेरा भाई था। “भाई घर नहीं तो मेरा अंदर क्या काम” चचेरे भाई ने मोहन से कहा। “ताई होती तब”,मोहन बोला। तब तो अंदर आता, ताई से आशीर्वाद लेता, चचेरे भाई ने जवाब दिया। चाहे
इस संवाद को कल्पना समझो या हकीकत परंतु मुश्किल से एक
मिनट का संवाद यह तो बताता ही कि रिश्तों को बनाए रखने
में बुजुर्गों की कितनी बड़ी भूमिका होती है। बेशक
आज की जनरेशन माँ-बाप की अहमियत समझें सा समझें। किन्तु उनका महत्व उन परिवारों से पूछो जहां इन्होने
आपस के खट्टे मीठे रिश्तों में
पुल का काम किया। भाई-बहिनों में टूटते रिश्तों को संवाद के माध्यम से बांधे रखा।
नाराज भाई बहिन किसी ना किसी बहाने इसी पुल से होकर एक दूसरे से मिले। आमने सामने
होंगे तो दूरियाँ भी कम होंगी ही। जब ये पुल टूटते हैं तो रिश्ते भी छूट जाते हैं।
टूट जाते हैं। कितने ही ऐसे परिवार होंगे जहां किसी बुजुर्ग के होने से वहां रौनक
लगी रहती है। सुबह नहीं तो शाम को। एक दिन नहीं तो दूसरे दिन। और कुछ नहीं तो
रविवार को किसी वार त्योहार को। किसी छुट्टी के दिन। मतलब ये कि उनके बहाने बहिन ,भाई,रिश्तेदार का आना हो ही जाता था। कहते हैं कि
वो परिवार भाग्यशाली होता हैं जिनके घर रिश्तेदारों,अपनों का आना जाना
रहता है। बुजुर्ग के बहाने आया
है तो बैठेगा भी उनके पास। घर के मेम्बर भी आएंगे। भाई से भाई मिलेगा....बहिन भावज से
मिलेगी...संवाद कायम रहेगा। मिलना मिलाने का सिलसिला भी लगातार चलेगा। बुजुर्ग
माँ-बाप हैं तो छोटा, बड़ा भाई
अपने भाई के घर जाने से नहीं हिचगेगा। घर के बच्चे भी रिश्तों को समझेंगे। उनसे
पहचान करेंगे। अपनापन बढ़ेगा। घर परिवार के संबंध गहरे होंगे। उनकी गरमाहट बहुत देर
तक रहेगी। अब उन घर परिवारों पर नजर दौड़ाओ जिनके
बुजुर्ग प्रस्थान कर गए। बुजुर्गों ने क्या प्रस्थान किया जैसे घर की रौनक ही चली गई। माँ-बाप
नहीं रहे तो भाई-बहिन का आना भी नियमित नहीं रहा। जो रिश्तेदार बार त्योहार माँ-बाप से
मिलने आते उनका आना भी धीरे धीरे कम होने लगा। होता भी कैसे नहीं, पुल जो नहीं रहे रिश्तों के बीच। सब अकेले के
अकेले। जर्जर पुलों को कोई बचाता भी कब तक! एक
ना एक दिन टूटने ही थे। जिस दिन टूटे उस दिन पुल के साथ साथ भाई बहिनों के रिश्ते बिलकुल टूटे नहीं तो छूट जरूर गए।
6 comments:
बिलकुल सही कहा .... बुजुर्ग रिश्तों में पल का काम करते हैं ...
सटीक बात....
सार्थक पोस्ट के लिए शुक्रिया.
अनु
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 07-02 -2013 को यहाँ भी है
....
आज की हलचल में .... गलतियों को मान लेना चाहिए ..... संगीता स्वरूप
.
बुजुर्ग रिश्तों में पुल का काम करते हैं ।
यही होता है,माता-पिता नहीं रहते तो मायके का अपना घर वह पहलेवाला घर नहीं रहता!
BAT ME DAM HAI
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