श्रीगंगानगर-सत्ता
के प्रतीक सांसद,विधायक हाथ
बांधे बैठे/खड़े हों। प्रशासन जिससे मिलने को लालायित हो। मीडिया से जुड़े अधिकांश
व्यक्ति ओबलीगेशन के तलबगार हों। जन-जन जिसमें असीम संभावना देख रहा हो। वक्त
जिसकी मुट्ठी में हो। ऐसा व्यक्ति मुट्ठी खोलने की भूल करेगा? सवाल केवल यहीं नहीं है, उन सभी आंखों में हैं जो इस बात को समझते हैं।
क्योंकि बंद मुट्ठी लाख की होती है। खुल गई तो खाक की हो जानी है। समझदार व्यक्ति
मुट्ठी क्यों खोलने लगा। इस दौर में समझदार वही है जिसके सामने सत्ता हाथ बांधे
खड़ी हो। प्रशासन मिलने को लालायित हो और मीडिया तलबगार। हाल फिलहाल तो ऐसा तो एक
ही है इस क्षेत्र में। वो है बी डी अग्रवाल। जमींदारा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष
बी डी अग्रवाल। राजस्थान में दो सौ सीटों पर चुनाव लड़ने की बात करने वाले बी डी
अग्रवाल। जिनके बारे में कहा जाता है कि बीकानेर संभाग सहित कई अन्य जिलो में इनका
काफी प्रभाव है। प्रभाव की केवल चर्चा है। यह प्रभाव अभी
साबित नहीं हुआ है। चुनाव में बी
डी अग्रवाल के उम्मीदवारों का क्या होगा अभी कुछ नहीं पता। क्योंकि पैसा और नाम ही चुनाव जीतने
की गारंटी होता तो 1993 में भैरो सिंह शेखावत श्रीगंगानगर से विधानसभा का चुनाव
नहीं हारते। ना बिड़ला जी को एक अदने से आदमी के साथ अपने ही क्षेत्र में हार का
मुंह देखना पड़ता। वैसे जब सब कुछ वैसे ही मिल रहा है तो चुनाव की रिस्क किसलिए? चुनाव में कल को बंद मुट्ठी खुल गई तो जो है
वह भी नहीं रहेगा। इसलिए जरूरी नहीं कि बी डी अग्रवाल चुनाव के रास्ते आगे बढ़ें। संभव है चुपचाप सभी को आशीर्वाद
दें और खुद तमाशा देखें जीत हार का। जो जीता
वह उनका। आज तो विधायक,सांसद सहित अनेक जनप्रतिनिधि उनकी हाजिरी में हैं। प्रशासन में भी जो चाहे
करवा सकते हैं। चुनाव में जमींदारा पार्टी का कोई बंदा नहीं
जीता तो फिर ना कोई जनप्रतिनिधि हाजिरी भरेगा ना कोई स्वाभिमानी अधिकारी। आने वाले सरकार की
नाराजगी का डर अलग से। राजनीतिक
विश्लेषक मानते हैं कि इनकी टेंशन लेने से
बेहतर है कि बी डी अग्रवाल “एक सबके लिए,सब एक के लिए’ के वाक्य को
सार्थक कर हर वक्त मौज में रहें। वैसे भी कोई भी बड़ा
कारोबारी सीधे चुनाव के चक्कर में नहीं पड़ता। इसलिए हो सकता है कि बी डी अग्रवाल
भी विधानसभा चुनाव आते आते अपनी पार्टी के उम्मीदवार मैदान में उतारने की बजाए
अंदर खाने कुछ खास व्यक्तियों पर दाव लगाएं। वरना केवल महारथियों के सहारे चुनाव लड़ने
का मतलब तो मुट्ठी को खोलना ही होगा। क्योंकि बी डी अग्रवाल के पास पैदल सैनिक
मतलब कार्यकर्ता तो अभी तक है नहीं जिनके बल बूते पर चुनाव लड़ा जाता है।
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