Wednesday, January 23, 2013

चुनावी चंदे की लालसा में सब कुछ सिर माथे है जी


श्रीगंगानगर-कुछ पाने की लालसा में सभी पार्टी के छोटे बड़े नेता सब कुछ सहन कर रहे हैं। जिसका दशकों का वजूद है वह भी और जो राजनीति में कदम जमा रहा है वह भी। बात कर रहें हैं चुनावी चंदे की। जी, चुनावी चंदा। देने वाले कौन होते हैं बड़े बड़े सेठ। उद्योगपति। ठेकेदार। अफसर भी। इस बार सबकी निगाह सेठ बी डी अग्रवाल पर है। मोटा सेठ है तो चंदा भी मोटा ही होगा। इसलिए उसकी हर बात सिर माथे। कोई छोटा मोटा नेता, किसी संगठन का आदमी किसी पार्टी के बड़े नेता के बारे में कभी कोई छोटी बात गलती से भी कह दो उस पार्टी के नेता टूट कर उसके पीछे पड़ जाते हैं। हाय तौबा मचाते हैं। लेकिन जमींदारा पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बी डी अग्रवाल हर मंच से बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं को खूब बुरा भला कहता है। आज तक किसी नेता ने उसकी आलोचना नहीं की। सबको सुनाई देता है। लेकिन बी डी अग्रवाल की बात सबको मिश्री जैसी लगती है। क्योंकि बी डी अग्रवाल की आज ऐसी हैसियत है जो किसी भी बीजेपी/कांग्रेस नेता की नहीं है। ये नेता बेशक वे बड़े होंगे लेकिन अपने आप को ये सभी  बी डी अग्रवाल से छोटा समझते हैं। या यूं कहें कि छोटा बनाए हुए हैं। इसकी वजह है आने वाले विधानसभा चुनाव। चुनाव कोई ऐसे तो लड़ा जाता नहीं। पैसा तो बाजार से ही आता है। और आज के दिन एक मात्र बाजार है सेठ  बी डी अग्रवाल। इसलिए बी डी अग्रवाल को नाराज करने का मतलब है अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना। बी डी अग्रवाल कहते हैं तो क्या हुआ, चुनाव में सहयोग भी तो यही करेंगे। इसलिए सब के सब चुप्प हैं। राधेश्याम गंगानगर जैसे धुरंधर राजनीतिक व्यक्ति  तक चुप हैं जिसके बारे में बी डी अग्रवाल ने कहा था की बीजेपी की टिकट राधेश्याम को मैंने दिलाई। अब चुनाव को कुछ समय ही बचा है। एक दो को छोड़ दें तो सभी की निगाह बी डी अग्रवाल पर है। वही है जो सबसे अधिक चुनावी फंड सभी पार्टियों के उम्मीदवारों को उपलब्ध करवा सकता है। इसलिए सब के सब नेता सुन रहे हैं अपने आकाओं के बारे में अपमानजनक बातें। बी बी अग्रवाल की जगह कोई और वसुंधरा राजे सिंधिया या अशोक गहलोत के बारे में कुछ कहता तो ये नेता कभी के बुरा भला कहने वाले के लत्ते फाड़ चुके होते। बी डी अग्रवाल की बात और है। वो समर्थ हैं। इसलिए उनका कहा हर शब्द सिर माथे। फिर राजनीति का क्या पता! कौनसा नेता कब बी डी अग्रवाल के गले मिलता नजर आ जाए। इसलिए चुप्प ही ठीक है। बड़े कहते भी हैं...एक चुप्प सौ को हराए

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