Wednesday, April 11, 2012

संधू एंड कंपनी और गौड़ अब राजनीति में साथ साथ

श्रीगंगानगर-राजनीति में किसी से किसी भी प्रकार का संबंध कभी स्थाई नहीं हो सकता। यहां नए रिश्ते बनते भी देर नहीं लगती और पुराने बिगड़ते भी। एक से अनेक हो जाते हैं और अनेक से एक। कोई अधिक समय नहीं हुआ जपृथ्वीपाल सिंह संधू एंड कंपनी के रिश्ते सेठ से बहुत प्रगाढ़ थे। पारिवारिक कहे जाते थे। दिल्ली जयपुर के राजनीतिक गलियारों में एक साथ जाना। राजनीति में गोटी फिट हो गई। किस्मत ने साथ दिया। सेठ न्यास के अध्यक्ष बन गए। संधू एंड कंपनी की बल्ले बल्ले हो गई। पर ये समय है...एक समान कहां,कब रहता है। पलट गया समय... अध्यक्ष बने सेठ ने संधू के बंदों के अहम पर चोट की...मतलब इनके तालाब की मछली इनको ही आँख दिखाने लगी। सेठ और संधू एंड कंपनी का याराना टूट गया। रिश्ते बिगड़ गए। संबंध समाप्त। रास्ते अलग अलग। इसके बावजूद संधू एंड कंपनी के दिलो दिमाग पर सेठ के साथ रिश्ते की मिठास और उसका रस आज भी है। लेकिन ये राजनीति हैं...यहां स्वार्थ,अहम जब टकराते हैं तो फिर रसगुल्ले जैसी मिठास और रस वाले रिश्तों की परवाह नहीं की जाती। नए रिश्ते तलाश किए जाते हैं। यह तलाश राजकुमार गौड़ पर जाकर समाप्त हो गई। इसमें कोई पर्दा नहीं है कि संधू एंड कंपनी ने विधानसभा चुनाव में गौड़ साहब की कितनी और किस प्रकार मदद की थे। परंतु यही तो राजनीति है...दोनों को एक दूसरे की आज जरूरत है। गौड़ साहब को थोड़ी आशंका है कि सेठ उनका प्रतिद्वंद्वी ना बन जाए। इसलिए उसको कमजोर रखना जरूरी है....संधू एंड कंपनी उसको आँख दिखाने का परिणाम दिखाना चाहती हैं। दोनों की मंजिल एक थी इसलिए ये दोनों नजदीक आ गए।श्री गौड़ का श्रीगंगानगर विधानसभा क्षेत्र में अपना महत्व है। मुख्यमंत्री से उनके रिश्ते भी बढ़िया है। संधू एंड कंपनी की दिल्ली जयपुर में अच्छी लाइजनिंग है। अब गौड़ और संधू गुट फिलहाल एक है। यह एकता केवल सेठ जी को निपटाने तक ही है या दूर तक दिखाई देगी ये कहना मुश्किल है। क्योंकि यह ऊपर लिखा जा चुका है कि राजनीति में रिश्ते बनते बिगड़ते रहते हैं। वैसे श्रीगंगानगर में ये दोनों गुट ही अधिक प्रभावी हैं। किन्तु फिलहाल दोनों को एक दूसरे की जरूरत है। चाहे दिखावे के लिए ही सही।

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