कुछ पाने के लिए बहुत खोया
ठीक है कुछ पाने के लिए कुछ ना कुछ खोना ही पड़ता है,मगर ये नहीं जानता था कि मैं, कुछ पाने के लिए इतना कुछ खो दूंगा कि मेरे पास कुछ और पाने के लिए कुछ भी तो नहीं बचेगा,और मैं थोडा सा कुछ पाने के लिए अपना सब कुछ खोकर उनके चेहरों को पढता हुआजो मेरे पास कुछ पाने की आस लिए आये हैं,लेकिन मैं उनको कुछ देने की बजाएअपनी शर्मसार पलकों को झुका उनके सामने से एक ओर चला जाता हूँ किसी और से कुछ पाने के लिए।
6 comments:
insaan ki fitrat bata di aakhiri panktiyon me ....bahut khoob..
नारायण नारायण! प्रभू की लीला भी गजब की है। बुद्धि तो सबमे दिया है। विवेक इस्तेमाल की शक्ति हासिल करना उन पर छोड़ दिया है। और यही कारण है कि आपकी लिखी अंतिम पंक्तियों मे इन्सान की फ़ितरत दिखाई पड रही है। बधाई।
नारायण-नारायण !!
वैसे एक बात बोलूँ , नारद का ये नारायण-नारायण सुमन जी के nice से कुछ कम नहीं :)
आपकी पोस्ट में खो कर पा गए हम!
BADHIYA LIKHA HAI AAPNEN.
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