मुझसे अच्छी है तुम्हारी इन
किताबों की किस्मत
जिन्हें हर रोज तुम
अपने सीने से लगाती हो,
मेरे बालों से भी
अधिक खुशनसीब हैं
तुम्हारी किताबों के पन्ने
जिन्हें तुम हर रोज
प्यार से सहलाती हो,
मेरी रातों से भी हसीं हैं
तेरी इन किताबों की रातें
जिन्हें तुम अपने
पास सुलाती हो,
इतनी खुशनसीबी देखकर
तुम्हारी इन किताबों की
मेरी आँखे सुबह शाम
बार बार बस रोती हैं,
क्योंकि हर नए साल
तुम्हारे सीने से लगी
एक नई किताब होती है,
और वो पुरानी किताब
पड़ी रहती है
अलमारी में एक तरफ
गोविंद की तरह
इस उम्मीद के साथ कि
एक बार फिर उठाकर
अपने सीने से लगा लो
शायद तुम उस किताब को ।
3 comments:
महाराज!! सब ठीक ठाक तो है न!! :)
बहुत उम्दा रुमानी रचना उतार लये प्रभु!!
नारायण नारायण!!
ati sundar...chaahne ki bhi had hai..
गज़ब का दर्द छलक रहा है ...बेहद उम्दा रचना.
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