मृत देह का दान सचमुच अनुकरणीय है। इस से मैडिकल के विद्यार्थी शोध करते हैं। कामरेड की देह भी कल दान कर दी जाएगी। भारतीय संस्कृति में तो जरा से दान का भी बहुत महत्व है, ये तो देह का दान है। लेकिन एक जिज्ञासा है कि क्या ज्योति दा की देह से शोध कार्य हो सकेगा? ऐसा कौनसा विद्यार्थी होगा जो ज्योति दा से अंजान हो। ऐसे में क्या कोई विद्यार्थी देह की चीर फाड़ कर सकेगा ? जैसी ही विद्यार्थी उनके निकट जायेंगे,उनमें उस देह के प्रति सम्मान,श्रद्धा,मान के भाव आ जायेंगें। क्योंकि वे जानते होंगें कि जिस देह को वे खोलने वाले हैं वह कौन था। हम शरीर को ही पहचानते हैं। आत्मा को नहीं। आत्मा,जिससे कोई वास्ता नहीं वह देह में नहीं है। शरीर के रूप में उसकी पहचान सबके सामने है। व्यक्ति,चाहे वह कोई भी हो, उसकी कमजोरी है कि अपनों के सामने उसके स्वभाव में थोडा बदलाव आता ही है।सामने जाना माना इन्सान हो तो फिर और भी भाव आते हैं। ज्योति दा की बात ही अलग है। उनके प्रति तो उनके विरोधियों के दिलों में मान सम्मान,आदर है। ऐसी स्थिति में ज्योति दा की यह इच्छा पूरी हो पायेगी कि उनकी देह शोध के काम आये। पता नहीं मैं गलत हूँ या सही,लेकिन प्रश्न है कि दिल,दिमाग से निकल नहीं रहा। कहीं ऐसा ना हो कि कामरेड की देह हॉस्पिटल में सबके देखने भर की " वस्तु" रह जाये। कामरेड को लाल सलाम।
5 comments:
विद्यार्थियों के मन में ऐसे भाव आना सहज है पर वे ये भी जानते है की इस देह में अब सिर्फ हाड मॉस के अलावा कुछ नहीं है !
महाप्रयाण एक युग का.......
jyotidaa ke vichar our aatma pahale hi dusro ke liye samarpit tha,jaate-jaate apni haddi our maans bhee dekar chale gaye.-------great.
pls visit. krantidut.blogspot.com
nice
pata nahi mujhe nahi lagta ki students aisi soch rakh kar r&d na kar sake.
nice sharing.
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