चील,कौव्वे और गिद्ध
लोकतंत्र में
बार बार
हर बार
यही हो रहा है सिद्ध,
खरगोश, मेमनेचुनाव जीतते ही बन जाते हैंचील,कौव्वे और गिद्ध,चुनाव के समयडरे,सहमे जो खरगोश,मेमने जन जन के सामने मिमियाते हैं,चुनाव जीतने के बादचील,कौव्वे,गिद्ध में तब्दील हो देश और जनता कोनोच नोच कर खाते हैं,लोकतंत्र की विडम्बना देखो,यही चील,कौव्वे,गिद्धअपने इस रूप में जनसेवक कहलाते हैं।
5 comments:
जन सेवको को सबक सीखने की पहल होनी ही जरुरी हैं
जन सेवको को सबक सीखने की पहल होनी जरुरी हैं
बहुत अच्छी रचनाहै।जन्सेवकों के रूप मेंकफन खोरों की जमात पनप रही है इसे रोकना ही होगा
रचना परम्परा गत लगी कुछ उनके वारे में भी सोचना चाहिये जो जन सेवक बनाते हैं
रचना परम्परागत लगी
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