Friday, March 6, 2009

चील,कौव्वे और गिद्ध


लोकतंत्र में
बार बार
हर बार
यही हो रहा है सिद्ध,
खरगोश, मेमने
चुनाव जीतते ही
बन जाते हैं
चील,कौव्वे और गिद्ध,
चुनाव के समय
डरे,सहमे जो
खरगोश,मेमने
जन जन के सामने
मिमियाते हैं,
चुनाव जीतने के बाद
चील,कौव्वे,गिद्ध
में तब्दील हो
देश और जनता को
नोच नोच कर खाते हैं,
लोकतंत्र की
विडम्बना देखो,
यही चील,कौव्वे,गिद्ध
अपने इस रूप में
जनसेवक कहलाते हैं।

5 comments:

राजकुमार ग्वालानी said...

जन सेवको को सबक सीखने की पहल होनी ही जरुरी हैं

राजकुमार ग्वालानी said...

जन सेवको को सबक सीखने की पहल होनी जरुरी हैं

Yogendramani said...

बहुत अच्छी रचनाहै।जन्सेवकों के रूप मेंकफन खोरों की जमात पनप रही है इसे रोकना ही होगा

मनोज कुमार सिंह said...

रचना परम्‍परा गत लगी कुछ उनके वारे में भी सोचना चाहिये जो जन सेवक बनाते हैं

मनोज कुमार सिंह said...

रचना परम्‍परागत लगी