Sunday, July 27, 2014

एसपी/डीएम जी!कभी आदमी बन के शहर में घूमो


श्रीगंगानगर-सरकार को इस क्षेत्र का दौरा करके गए एक माह होने को आया. ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे ये लगे कि सरकार का दौरा सफल रहा. जिले के एसपी और डीएम आज तक शायद ही कभी दफ्तरों से बाहर निकलें हों. एसपी और डीएम के रूप में तो निकले ही होंगे,किसी प्रोग्राम में चीफ गेस्ट के नाते. किसी कार्यक्रम का उद्घाटन करने के लिए. किसी सेठ या नेता के साथ किसी साईट पर. परन्तु इनसे यह पता नहीं लगता कि शहर के हालत क्या है. एसपी/डीएम  आम आदमी के रूप में
शहर की गलियों में निकले तो उनको ज्ञात होगा कि उनके राज में इस शहर में हो क्या रहा है. एसपी को शायद दिखाई दे जाए कि उनका ट्रैफिक इंचार्ज सिवाए चालान काटने के कुछ नहीं करवाता.ट्रैफिक व्यवस्था को ठीक करवाना शायद वह अपनी ड्यूटी नहीं समझता. एसपी को यह भी दिख जाएगा कि गली गली में किस प्रकार लावारिस गाड़ियां खड़ी रहती हैं जो ट्रैफिक व्यवस्था में बाधा बनती है.मगर ट्रैफिक इंचार्ज को इससे कोई मतलब नहीं.इतना ही नहीं आम आदमी के रूप में ही वे जान पाएंगे कि किस किस क्षेत्र में लड़कियों का सहज रूप से सड़क पार करना मुश्किल हो चुका है. जो पुलिस कर्मी ड्यूटी पर लगाये जाते हैं वे उन लड़कों के साथ गलबहियां होते हैं जिनकी नजर लड़कियों पर रहती है. जब एसपी आम आदमी के रूप में सड़क पर आएंगे तो शायद ये जान सकें कि किस गली में गलत काम होता है और उनका बीट कांस्टेबल इस बात से अनजान है. ऑफिस में बैठे बैठे एसपी साहब वह सब नहीं जान सकते जो पब्लिक जानती है. आपके सभी मातहत क्या कर रहे हैं ये केवल आम आदमी बन जान सकते हो. डीएम हर सप्ताह अनेक बैठके लेते हैं. सड़क पर निकले तो खुद मान जाएंगे कि इन बैठकों का कोई अर्थ नहीं है. नगर परिषद हो या नगर विकास न्यास दोनों के अधिकारी क्या कर रहे हैं यह सड़क पर आने से ही मालूम होगा डीएम को. कोई सड़क ऐसी नहीं जिस पर कब्ज़ा ना हो प्रभावशाली को कोई पूछता नहीं.डीएम साहब,आप आम आदमी के रूप में रात को किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में अपना इलाज करवा के दिखा दो.कोई हॉस्पिटल वाला दरवाजा तक नहीं खोलता. आपने जानकारी से खुलवा लिया तो वे सीधे आपको रैफर कर देंगे लुधियाना,जयपुर. कोई कुछ नहीं कर सकता. आप कलक्टर बन कर कितनी ही बार सरकारी हॉस्पिटल गए. कभी आम आदमी बन के जाओ तो पता लगे कि कैसे क्या होता है. कौन कितने मुश्किल में है.केवल आदेश और निर्देश देने से कुछ नहीं होता.एक साधारण इंसान जैसे आप शहर का दौरा करोगे तो आपको खुद ये महसूस होगा कि आप जो ऑफिस में कर रहे हैं उससे कहीं अधिक करने की जरुरत है. एसपी/डीएम के रूप में आपको वही दिखेगा जो अफसर दिखाएंगे. वह नहीं जो आम जन भोगता है. इधर कोई नेता नहीं है. जनता भी मस्त है, इसलिए आपका काम चल रहा है. कोई पूछने वाला नहीं.जिम्मेदारी याद दिलाने वाला नहीं. इसलिए जो आप दफ्तरों में बैठकर करो ठीक लगता है. लेकिन ऐसा नहीं है. सड़क पर आम आदमी बन कर आओ तब पता लगेगा कि क्या हो रहा है और क्या होना चाहिए. 

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