श्रीगंगानगर-अपने आप को कैलाश पर्वत के सम्मुख पा अनेक यात्रियों की
आँखों से श्रद्धा बहने लगी. अनेक विस्मय से सब देख रहे थे बिना पलक झपके.
कई तो ऐसे हो गए कि किस दृश्य को आंखों में समेटे और किसको छोड़ें. सब के
सब श्रद्धा से अभिभूत.ख़ुशी से सराबोर.जिस अलौकिक दृश्य के बारे में केवल
किताबों में पढ़ा था,संतों और कथा वाचकों के मुख से सुना था, वह साक्षात
उनकी आंखों के सामने था. दृष्टि उससे परे जाने को तैयार ही नहीं थी. पुलकित
और आनंदित मन उस शिव से हटने को तैयार नहीं,जिसके बारे में कहा जाता है
कि वह आज भी कैलाश पर्वत पर विराजमान है.प्राचीन शिवालय के महंत कैलाश नाथ
जी कैलाश मानसरोवर की तीसरी बार यात्रा करके आए हैं.इससे पहले वे 1998 और 2001 में यह यात्रा कर चुके हैं. वे सामान्य बात चीत ये सब बताते हैं.इस
बार की यात्रा अधिक महत्वपूर्ण थी. क्योंकि इस बार कुम्भ है कैलाश पर.
इसलिये इस बार की यात्रा कैलाश मानसरोवर की 13 यात्रों के तुल्य है.वे
कभी किसी को बता देते हैं कि पूर्णिमा की रात को उधर ऐसा अद्भुद दृश्य था,
जिसको शब्दों में बांधा नहीं जा सकता. उस रात को कैलाश पर्वत के निकट
जिसने जो देखा और महसूस किया वह बताना मुश्किल है. ऐसा लगा जैसे चन्द्रमा
अपनी पूरी क्षमता से शिव की परिक्रमा के साथ वंदना कर रहा हो.सबकी अपनी
अपनी अनुभूति. कैलाश पर्वत के चारों तरफ आठ पहाड़ हैं.उसकी आकृति शिव की तरह
है.पीछे शिव की जटा दिखाई देती है.अग्र भाग में कैलाश के सामने नंदी है.
कैलाश पर्वत पूरी तरह सफ़ेद. मन को मोहित कर देने वाला. आंखों सम्मोहित कर
देने वाला.स्फटिक मणि की तरह से. उस कैलाश की परिक्रमा कर भगवान शिव को
याद किया गया,जो उसी पर्वत पर विराजमान रहते हैं. कैलाश नाथ जी तीन दिन उधर
ठहरे. हवन किया. जिसकी पूरी सामग्री वे अपने साथ लेकर गए थे. दो दिन वे
मानसरोवर रुके. उसकी प्रक्रिमा कर स्नान किया. उधर क्या अनुभव हुआ? क्या
देखा? क्या दिखाई दिया? इन प्रश्नों का उनके पास एक ही जवाब था, यह सब
बताना असंभव है. उन्होंने मोबाइल से अपने एक साथ यात्री से बात करवाई. वह
भी इतना ही कह सका,मैंने यात्रा की नहीं,मुझे तो ऐसे लगा जैसे कोई मेरी
ऊँगली पकड़ कर यात्रा करवा रहा हो. क्योंकि यह संसार की सबसे विकट यात्रा
है. वह बोला,मैं तो कैलाश के सामने बैठ गया. कैलाश पर्वत को निहारता रहा.
उसकी छवि नेत्रों में बसाने की कोशिश की. दर्शनों के लिए जैसे ही शिव का
आभार प्रकट किया,आँख से आंसू बहने लगे.ऐसा एक बार नहीं कई बार हुआ.करोड़ों
व्यक्तियों में से शिव ने मुझे अपने निकट बुलाया इससे अधिक मेरे लिए
सौभाग्य की कोई बात हो ही नहीं सकती,बस! जब से कैलाश नाथ यात्रा से लौटे
हैं तब से उनके पास यात्रा की बातें सुनने के लिए लोगों का आना जाना लगा
हुआ है.यात्रा की किसी फोटो को देख रोमांच और विस्मय होता है तो किसी फोटो
पर नजर पड़ते ही मन में श्रद्धा उत्पन्न हो जाती है. कैलाश नाथ कहते हैं,
पैर फिसला तो समझो,जय राम जी की. अर्थात सीधे काली गंगा में जाएगा यात्री.
वे बताते हैं,यात्रा के दौरान ऐसी गुफा आती है जिसमें पारिजात का वृक्ष है.
कामधेनु गाय है.भैरों की जीभ है. सफ़ेद हंस. सब के सब पत्थर के. ये सब वही
हैं जिनका जिक्र शास्त्रों में हैं.भैरों की जीभ से लार टपकती रहती है.
कैलाश नाथ के शब्दों में,मौसम बर्फानी रहता है. कैलाश पर्वत पर कभी बरसात
नहीं होती. सुबह तमाम देव शिव की आराधना कर बर्फ की चादर उस पर चढ़ाते
हैं.वहां की हवा इंसान के शरीर को काला कर देती हैं.कैलाश नाथ के अनुसार
वे पांच दिन तक सोए नहीं. लेटते थोड़ी देर,फिर उठकर बैठ जाते. चाइना सरकार
ने यात्रियों के लिए बढ़िया इंतजाम कर रखा था. हर प्रकार की सुविधा थी. पहले
इतने इंतजाम नहीं हुआ करते थे. यात्रा में भी किसी प्रकार की कठिनाई नहीं
हुई. सरकार की ओर से डॉक्टर,गाइड की व्यवस्था होती है.भारतीय क्षेत्र में
भारत सरकार की व्यवस्था होती है और चीन की तरफ चीन सरकार की. 22 दिनों
में तीन सौ किलोमीटर की यात्रा करनी होती है.काली गंगा के किनारे किनारे.हर
यात्री को यात्रा के बाद प्रमाण पत्र दिया जाता है. जिस पर उसका चित्र भी
होता है. कैलाश नाथ जी को आए अभी अधिक दिन नहीं हुए कि वे अगले साल फिर इस
यात्रा पर जाने की योजना बना रहे है.बातें बहुत हैं,लेकिन बहुत सी ऐसी होती
हैं जिनको बताने और लिखने के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं.वैसे भी श्रद्धा से
जुडी बातों का ना तो कोई आदी होता है और ना अंत. शायद तभी तुलसीदास ने कहा
था--हरि अनंत हरि कथा अनंता,कहहु सुनहु बहु विधि सब संता.
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